मुफ्त की योजनाओं पर SC की टिप्पणी, पार्टियों को चुनावी वादे करने से नहीं रोक सकते, ये जीत की गारंटी नहीं
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मुफ्त की योजनाओं पर SC की टिप्पणी, पार्टियों को चुनावी वादे करने से नहीं रोक सकते, ये जीत की गारंटी नहीं

मुफ्त की योजनाओं वाले चुनावी वादों पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि है हम किसी भी पार्टी को चुनावी वायदे करने से नहीं रोक सकते है. चुनावी वादे पार्टियों की जीत की गारंटी नहीं हो सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि इस मसले पर सभी पक्षों से अपनी राय रखने को कहा है.

मुफ्त की योजनाओं पर SC की टिप्पणी, पार्टियों को चुनावी वादे करने से नहीं रोक सकते, ये जीत की गारंटी नहीं

अरविंद सिंह/नई दिल्ली: मुफ्त की योजनाओं वाले चुनावी वादों पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि है हम किसी भी पार्टी को चुनावी वायदे करने से नहीं रोक सकते है. चुनावी वादे पार्टियों की जीत की गारंटी नहीं हो सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि इस मसले पर सभी पक्षों से अपनी राय रखने को कहा है. इसके साथ ही कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई सोमवार को होगी.

मुफ्त सुविधाओं को लेकर SC में सुनवाई जारी. CJI ने कहा, हमारे पास आये तमाम सुझाव में से एक ये भी है कि राजनीतिक दलों को अपने मतदाताओं से वायदा करने से नहीं रोका जाना चाहिए. अब सवाल ये है कि किसे मुफ्तखोरी कहा जाए. क्या मुफ़्त स्वास्थ्य सेवाएं, मुफ़्त बिजली, पानी को मुफ्तखोरी कहा जा सकता है. मनरेगा जैसी योजनाए भी हैं, जो सम्मानपूर्वक जीवन का वायदा करती हैं. मुझे नहीं लगता कि राजनीति वायदे ही एकमात्र जीतने की कसौटी हैं. वायदे करने के बाद भी पार्टियां हार जाती है. 

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CJI ने कहा कि आप सभी अपने सुझाव दीजिए. उसके बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है. कोर्ट ने सभी पक्षों को इस बारे में शनिवार तक सुझाव देने को कहा. अगली सुनवाई सोमवार को होगी.

दरअसल, आम आदमी पार्टी ने मुफ्त की योजनाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी. इस मामले में आम आदमी पार्टी ने चुनावी कैंपेन में उपहारों के वादों को समीक्षा के दायरे से बाहर रखा जाए. पार्टी ने मांग की थी कि चुनाव से पहले किए गए वादे, दावे और भाषण की आजादी अनुच्छेद 19.1.ए के तहत आते हैं. इनपर रोक कैसे लगाई जा सकती है. इस मामले में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर शपथ पत्र में कहा कि अनिर्वाचित उम्मीदवारों द्वारा दिए गए चुनावी भाषण भविष्य की सरकार की बजटीय योजनाओं के बारे में आधिकारिक बयान नहीं हो सकते. वास्तव में वे नागरिक कल्याण के विभिन्न मुद्दों पर किसी पार्टी या उम्मीदवार के वैचारिक बयान मात्र हैं. यह नागरिकों को सचेत करने के लिए हैं ताकि वह मतदान में फैसला कर सकें की किस पार्टी का चुनाव उन्हें करना है.

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इस मामले में मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की पीठ के बुधवार को सुनवाई की तारीख दी थी. पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह एक विशेषज्ञ समिति बनाकर मामले को देखना चाहता है, क्योंकि यह गंभीर मुद्दा है. कोर्ट ने आज सुनवाई कि और कहा कि वह किसी भी पार्टी को चुनावी वादे करने से नहीं रोक सकती है. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि चुनावी वादे जीत की गारंटी नहीं हो सकते हैं. फिर इस और लोगों से राय मशविरा करके सोमवार को सुनवाई करेंगे.

 

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