Delhi High Court : हाईकोर्ट ने कहा, CAG रिपोर्ट को विधानसभा में पेश करना सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है. इसके जरिये ही सरकार की जवाबदेही तय होती है. रिपोर्ट पेश करने में अत्यधिक देरी संवैधानिक जिम्मेदारी का उल्लंघन होगा.
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Delhi Assembly Election 2025: दिल्ली चुनाव से पहले लंबित कैग रिपोर्ट पेश कराने का बीजेपी का दांव शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट के एक आदेश से फेल हो गया. जस्टिस सचिन दत्ता की अगुवाई वाली बेंच ने दिल्ली विधानसभा में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट पेश करने के लिए विशेष सत्र बुलाने का निर्देश देने से इनकार कर दिया. अदालत ने कहा कि संविधान के तहत सीएजी रिपोर्ट पेश करना अनिवार्य है, लेकिन इसके लिए अभी विशेष सत्र बुलाने की याचिका स्वीकार करने के लिए कोर्ट इच्छुक नहीं है. जज ने कहा, चुनाव के बाद जब नई विधानसभा का पुर्नगठन होगा, जितना जल्दी संभव हो सके सरकार CAG रिपोर्ट सदन में पेश करे.
विपक्ष के नेताओं की मांग
दरअसल पिछले साल विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता और भाजपा विधायकों मोहन सिंह बिष्ट, ओम प्रकाश शर्मा, अजय कुमार महावर, अभय वर्मा, अनिल कुमार बाजपेयी और जितेंद्र महाजन ने एक याचिका दायर की थी. इसमें कैग रिपोर्ट को जल्द से जल्द पेश करने और विधानसभा में इसके लिए विशेष सत्र बुलाने का निर्देश देने की मांग की गई थी.
ऐसे मामले विधानसभा के आंतरिक कामकाज का हिस्सा
सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि चुनाव से पहले रिपोर्ट पेश करने की कोई जल्दी नहीं थी, क्योंकि विधानसभा का कार्यकाल फरवरी में समाप्त हो जाएगा. विधानसभा सचिवालय ने कहा कि इस स्तर पर रिपोर्ट पेश करने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा. उन्होंने कहा, ऐसे मामले विधानसभा के आंतरिक कामकाज के अंतर्गत आते हैं.
अत्यधिक देरी संवैधानिक जिम्मेदारी का उल्लंघन: कोर्ट
दोनों पक्षों को सुनने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, CAG रिपोर्ट को विधानसभा में पेश करना सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है. इसके जरिये ही सरकार की जवाबदेही तय होती है. हालांकि GNCTD एक्ट के सेक्शन 48 के तहत CAG रिपोर्ट को विधानसभा में रखे जाने को लेकर कोई निश्चित समयसीमा नहीं है. इसके बावजूद इन्हें पेश करने में अत्यधिक देरी संवैधानिक जिम्मेदारी का उल्लंघन होगा.
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सरकार की देरी पर कोर्ट खफा
कोर्ट ने कहा, यह एकदम साफ है कि दिल्ली सरकार और मुख्यमंत्री के पास ज्यादातर CAG रिपोर्ट बहुत समय तक पेंडिंग रहीं. जब इस मामले में हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई, उस समय भी दिल्ली सरकार ने कोई तत्परता नहीं दिखाई. 29 अक्टूबर को हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने नोटिस भी जारी किया. इसके बाद विधानसभा सत्र 19 नवंबर से 4 दिसंबर तक चला. CAG रिपोर्ट्स को विधानसभा में रखे जाने में दिल्ली सरकार और मुख्यमंत्री ने बहुत देरी की. ये सवैंधानिक दायित्वों के प्रति उनकी घोर उपेक्षा को दर्शाता है.
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर सत्रावसान के बिना विधानसभा को अनिश्चितकाल तक स्थगित किया जाता है तो ऐसी सूरत में दोबारा सत्र बुलाने का अधिकार सिर्फ स्पीकर के पास ही है. कोर्ट इसके लिए स्पीकर को अपनी ओर से कोई निर्देश नहीं दे सकता. मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने वाला है और नई विधानसभा के लिए चुनाव होने में कुछ ही दिन बचे है. ऐसी सूरत में विधानसभा का विशेष सत्र बुलाना अव्यवहारिक होगा. हाईकोर्ट ने दिल्ली विधानसभा को कैग रिपोर्ट पेश करने के लिए विशेष सत्र आयोजित करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया.
PAC की जांच के बाद ही रिपोर्ट होगी पेश
हाईकोर्ट ने कहा कि नियमों के मुताबिक CAG रिपोर्ट्स को जब सदन के अंदर पेश किया जाता है तो PAC ( लोक लेखा समिति) इनकी जांच करती है. चूंकि मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने वाला है, ऐसी सूरत में जब नई विधानसभा का सत्र बुलाया जाएगा, तभी PAC इनकी जांच कर पाएगी और इसी वजह से कोर्ट स्पेशल सेशन की मांग को स्वीकार करने को इच्छुक नहीं है. इससे पहले की सुनवाई में हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि कैग रिपोर्ट को लेकर जिस तरह से आपने अपने कदम पीछे खींचे हैं, उससे आपकी ईमानदारी पर संदेह पैदा होता है. आपको तुरंत यह रिपोर्ट स्पीकर को भेजनी चाहिए थी और सदन में चर्चा करानी चाहिए थी.
दरअसल चुनाव से पहले कैग रिपोर्ट पेश कराकर बीजेपी जनता के बीच आम आदमी पार्टी की कट्टर ईमानदार छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश में जुटी है. कई प्रेस कॉन्फ्रेंस में वीरेंद्र सचदेवा समेत कई बीजेपी नेता दावा कर चुके हैं कि आम संयोजक ने जनता के हजारों करोड़ रुपये अपनी सुख सुविधाओं पर खर्च कर दिए. इसके लिए बीजेपी ने शीशमहल मुद्दे को जमकर हवा दी.
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