मोरनी क्षेत्र के किसानों के लिए मशरूम की खेती वरदान साबित होते दिख रही है. यहां के युवा भी मशरूम की खेती में अपना भाग्य चमकाते नजर ई रहे हैं. हरियाणा सरकार मशरूम की खेती के लिए अनुदान देकर किसानों का होसला बुलंद कर रही है.
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Haryana News: पंचकूला जिले के मोरनी क्षेत्र के किसानों के लिए मशरूम की खेती वरदान साबित हो रही है. यहां के अधिकतर बेरोजगार युवा सरकार से अनुदान प्राप्त कर मशरूम की खेती मे अपना भाग्य चमका रहे हैं. मोरनी क्षेत्र के किसानों के लिए सबसे ज्यादा मुनाफा इस खेती से प्राप्त हो रहा है. यहां पर पहले किसान परंपरागत तरह से खेती किया करते थे, जिसमें मक्का, गेंहू, सरसों, तिल, टमाटर के अलावा अन्य नकदी फसलें उगाए जाते थे. मगर जंगली जानवरों के डर की वजह से अधिकतर किसान इन फसलों को उगाना बंद करके मशरूम की खेती पर अधिक ध्यान देने लगे. हरियाणा सरकार भी अनुदान देकर किसानों के हौसले बुलंद कर रही है.
खेती के लिए उपयुक्त समय
मोरनी क्षेत्र में मशरूम की खेती के लिए उपयुक्त समय दिसंबर के पहले हफ्ते से शुरू होकर मार्च के अंत तक होता है. इसी से जागरूक होकर मोरनी गांव के बहलों निवासी युद्ध सिंह परमार कौशिक ने मशरूम की खेती शुरू कर दी, जिसमें उन्हें अच्छा मुनाफा मिलने की उम्मीद है. हरियाणा के मोरनी क्षेत्र में मशरूम की खेती के लिए उपयुक्त वातावरण है. इस कार्य को करने के लिए ज्यादा जमीन की जरूरत नहीं होती और किसान इसको छोटे से कमरे से भी शुरू कर सकते हैं. इसके बाद सरकार द्वारा अनुदान लेकर बड़ा व्यवसाए भी शुरू कर सकते हैं.
पैदावार का तरीका
कम्पोस्ट को बनाने के लिए धान की पुआल को भिगोकर एक दिन बाद इसमें डीएपी, यूरिया, पोटाश, गेहूं का चोकर, जिप्सम और कार्बोफ्यूडोरन मिलाकर इसे सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है. करीब डेढ़ महीने के बाद कम्पोस्ट तैयार होता है. अब गोबर की खाद और मिट्टी को बराबर मिलाकर करीब डेढ़ इंच मोटी परत बिछाकर उस पर कम्पोस्ट की दो-तीन इंच मोटी परत चढ़ाई जाती है. इसमें नमी बरकरार रहे, इसलिए स्प्रे से मशरूम पर दिन में दो से तीन बार छिड़काव किया जाता है. इसके ऊपर एक-दो इंच कम्पोस्ट की परत और चढ़ाई जाती है और इस तरह मशरूम की पैदावार शुरू हो जाती है.
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इतना अनुदान देती है सरकार
सरकार ने मशरूम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए जिन तीन योजनाओं पर अनुदान देने का फैसला किया है. उसमें मशरूम उत्पादन इकाई, मशरूम स्पॉन इकाई तथा मशरूम कंपोस्ट उत्पादन इकाई शामिल है. इन तीनों योजनाओं की लागत 55 लाख रुपये है. इसपर किसानों को 50 फीसदी यानी 27.50 लाख रुपये का अनुदान दिया जाता है. अगर किसान अलग-अलग योजनाओं को लेना चाहें तो इसकी भी छुट है. किसान किसी भी योजना का चयन कर सकते हैं.
Input- Divya Rani