BJP-JJP alliance: हरियाणा में बीजेपी और जेजेपी का गठबंधन टूटने के बाद दुष्यंत चौटाला ने कहा है कि चौधरी देवीलाल जी के कदमों पर चलते हुए हरियाणा के हितों की रक्षा के लिए सदैव समर्पित रहूंगा, लेकिन उनकी राह आसान नहीं है.
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Dushyant Chautala: हरियाणा में साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में खंडित जनादेश मिला. बीजेपी को 41, कांग्रेस को 30 और जननायक जनता पार्टी (JJP) को 10 सीटें मिलीं. इसके बाद जेजेपी प्रमुख दुष्यंत चौटाला, बीजेपी के लिए 'रक्षक' के रूप में उभरे और दोनों की गठबंधन की सरकार बनी. करीब साढ़े चार साल सरकार चलाने के बाद अब बीजेपी ने दुष्यंत से मुंह मोड़ लिया है और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बना ली है. सहयोगी से धोखा मिलने के बाद दुष्यंत चौटाला ने कहा है कि चौधरी देवीलाल जी के कदमों पर चलते हुए हरियाणा के हितों की रक्षा के लिए सदैव समर्पित रहूंगा, लेकिन उनकी राह आसान नहीं है.
क्यों टूट गई बीजेपी-जेजेपी गठबंधन?
बीजेपी और जेजेपी के बीच गठबंधन के बाद दुष्यंत चौटाला को मनोहर लाल खट्टर सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाया गया था. इसके साथ ही 2 अन्य विधायक अनूप धानक और देवेंदर सिंह बबली कैबिनेट मंत्री बनाए गए थे. लेकिन, अचानक ऐसा क्या हो गया कि बीजेपी ने जेजेपी से अपने संबंध तोड़ लिए. दरअसल, लोकसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला हरियाणा में सीटों हिसार और भिवानी-महेंद्रगढ़ पर चुनाव लड़ने की मांग कर रहे थे. बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा की सभी 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी और यही वजह है कि पार्टी जेजेपी को एक भी सीट देने के मूड में नहीं थी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, बीजेपी को लगने लगा था कि दुष्यंत चौटाला खुद को भाजपा के बराबर पेश कर रहे थे. दुष्यंत ने राज्य के युवाओं को प्राइवेट नौकरियों में 75% आरक्षण देना का चुनावी वादा किया था, जिसे लागू किया गया लेकिन पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया. राज्य सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50% कोटा के उनके एक और वादे को भी लागू किया. इसके बाद दुष्यंत चौटाला ने इसका श्रेय लेना शुरू कर दिया था और ये बातें बीजेपी को पसंद नहीं आईं.
अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, राजस्थान विधानसभा चुनावों में जेजेपी की हार के कारण भी बीजेपी ने गठबंधन छोड़ने का फैसला किया. जेजेपी ने राजस्थान की 19 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और एक को छोड़कर सभी की जमानत जब्त हो गई. जेजेपी को राजस्थान विधानसभा चुनाव में सिर्फ 0.15% वोट मिले, जो नोटा के 0.96% वोट से भी कम है. 19 में से 12 उम्मीदवारों को केवल 160-1200 वोट मिले.
2019 में किंगमेकर बनकर उभरे थे दुष्यंत
साल 2019 के विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) के साथ अनबन के बाद दुष्यंत चौटाला ने अपने पिता अजय सिंह चौटाला के साथ जेजेपी का गठन किया था. उन्होंने सिर्फ 10 सीटें जीती थीं, लेकिन 90 सदस्यीय सदन में बीजेपी के 46 के जादुई आंकड़े से 6 सीटें कम रह जाने के बाद वह किंगमेकर बनकर उभरे.
अब आसान नहीं है दुष्यंत की राह
भाजपा के नाता तोड़ने से ज्यादा जो चीज दुष्यंत चौटाला को भारी पड़ सकती है, वह अपने ही नेताओं की बगावत है. दिल्ली में उनके नेतृत्व में हुई बैठक में पार्टी के 10 में से केवल 6 विधायक ही पहुंचे. टोहाना के विधायक देवेंद्र सिंह बबली, नारनौंद के विधायक राम कुमार गौतम, बरवाला के विधायक जोगी राम सिहाग और गुहला के विधायक ईश्वर सिंह बैठक में शामिल नहीं हुए.
दुष्यंत को 2020 के किसान आंदोलन के दौरान भी पार्टी के भीतर से परेशानी का सामना करना पड़ा था. उस समय, गौतम और बबली सहित कई जेजेपी विधायकों ने भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ने का आग्रह किया था, क्योंकि उन्हें किसानों के गुस्से का अंदाजा था. हालांकि, दुष्यंत अपनी बात पर अड़े रहे और उन्होंने उस समय भाजपा नेताओं की प्रशंसा भी की.
चाचा ने भी दुष्यंत चौटाला पर किया तंज
बीजेपी-जेजेपी गठबंधन टूटने के बाद दुष्यंत चौटाला के चाचा और INLD नेता अभय चौटाला (Abhay Chautala) ने नाम लिए बिना निशाना साधता है. अभय चौटाला ने ट्वीट कर कहा, 'गद्दारी हो जिसकी बुनियाद, अंजाम-ए-मीनार होना ही था बर्बाद!'
चुनौतीपूर्ण स्थिति के बावजूद जेजेपी लोकसभा चुनाव में सभी 10 सीटों पर चुनाव लड़ने को लेकर आश्वस्त है. इससे पहले, कांग्रेस और आप ने राज्य में गठबंधन की घोषणा की थी. कांग्रेस 9 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाला संगठन 1 सीट पर अपना उम्मीदवार उतारेगा. भाजपा के जेजेपी से अलग होने के बाद कांग्रेस ने इस कदम को आगामी चुनावों में अपनी संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने की साजिश बताया है. राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा है कि सब कुछ भाजपा के इशारे पर किया जा रहा है. जेजेपी अब उम्मीदवार उतारेगी, जो कांग्रेस के वोट शेयर में कटौती करेंगे.