UP Loksabha 2024: जहां सबसे अधिक लोकसभा सीटें, वहीं कांग्रेस सबसे ज्यादा कमजोर; आखिर क्या है वजह?
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UP Loksabha 2024: जहां सबसे अधिक लोकसभा सीटें, वहीं कांग्रेस सबसे ज्यादा कमजोर; आखिर क्या है वजह?

Congress Party In UP 2024: जिस उत्तर प्रदेश में लोकसभा की सबसे ज्यादा सीटें हैं, वहीं उत्तर प्रदेश कांग्रेस पार्टी के लिए सबसे कमजोर कड़ी रहा है. प्रियंका गांधी की निगरानी के बावजूद UP से कांग्रेस पार्टी के फेवर में कभी फैसला नहीं आया है. इसकी सबसे बड़ी वजह पार्टी के नेताओं की उदासीनता है.

फाइल फोटो

Congress Loksabha seats In Uttar Pradesh 2024: जब से प्रियंका गांधी वाड्रा ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रभारी का पद संभाला है, तब से पार्टी तेजी से नीचे खिसकती जा रही है. कांग्रेस 2019 में केवल रायबरेली लोकसभा सीट जीत सकी थी, जहां से सोनिया गांधी चुनी गईं और 2022 में पार्टी ने अपना सबसे निराशाजनक प्रदर्शन दिया और 403 के सदन में केवल दो विधानसभा सीटें जीतीं. आपको बता दें कि हाल ही में हुए नगरपालिका चुनाव में कांग्रेस के वोट शेयर में और गिरावट दर्ज की गई है.

वोट शेयर में जबरदस्त गिरावट

साल 2017 के नगरपालिका चुनावों में 3.7 प्रतिशत की हिस्सेदारी की तुलना में कांग्रेस इस बार केवल 2.1 प्रतिशत वोट ही हासिल कर सकी है. भले ही पार्टी का भाग्य लगातार डगमगा रहा हो लेकिन पार्टी नेतृत्व की ओर से विफलताओं के कारणों पर चर्चा करने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है. कांग्रेस की राज्य इकाई ने कर्नाटक में अपनी जीत का जश्न मनाया लेकिन यूपी में अपनी अपमानजनक हार पर विचार करने का समय नहीं मिला. उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बृजलाल खबरी ने पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि हम लोकसभा चुनाव में दोगुनी ऊर्जा के साथ काम करेंगे और अपने प्रदर्शन में सुधार करेंगे.

पार्टी के दिग्गज नेता कहां हैं?

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अब मोटे तौर पर दो भागों में बंटी हुई है. एक जिसमें पार्टी के दिग्गज नेता शामिल हैं और जिसे प्रियंका ने पूरी तरह से दरकिनार कर दिया है और दूसरा जो कांग्रेस का नेतृत्व कर रही है और इसमें बसपा के दलबदलू शामिल हैं. एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि यूपीसीसी में सभी प्रमुख पदों पर बसपा से निकले बृजलाल खबरी, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, नकुल दुबे, अनिल यादव काबिज हैं और वास्तविक कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की पार्टी में कोई दखल नहीं है.

कांग्रेस की कमजोरी क्या है?

कांग्रेसियों ने पार्टी के वफादार नेताओं को पार्टी से बाहर करने के लिए प्रियंका गांधी के विश्वासपात्र संदीप सिंह और उनके सहयोगियों को दोषी ठहराया है. एक वरिष्ठ नेता का आरोप है कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बृजलाल खबरी अपने चापलूसों के समूह के साथ काम करते हैं जिसमें संदीप सिंह के वफादार भी शामिल हैं. एक पूर्व प्रवक्ता ने कहा कि अब हम एक छोटे से द्वीप में मौजूद हैं, जहां प्रत्येक नए नेता का अपना समूह है. उन्हें कांग्रेस और उसके भविष्य की कोई चिंता नहीं है वे अपने भविष्य को सुरक्षित करना चाहते हैं.

कांग्रेस की एकमात्र ताकत?

चौंकाने वाली बात यह है कि प्रियंका गांधी ने पिछले साल जून के बाद से लखनऊ या उत्तर प्रदेश का दौरा नहीं किया है और राज्य कांग्रेस में उनकी स्पष्ट कमी पार्टी को और कमजोर कर रही है. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की एकमात्र ताकत यह है कि उसके पास अभी भी हर जिले में वफादार पार्टीजनों का एक समूह है. हालांकि, उनमें से ज्यादातर को प्रियंका के सहयोगियों ने निष्कासित कर दिया है, लेकिन वे पार्टी के लिए काम कर रहे हैं. एक निष्कासित नेता ने कहा कि हम अपने करियर की शुरुआत से ही कांग्रेसी हैं. हमें भले ही निष्कासित कर दिया गया हो लेकिन हम किसी अन्य पार्टी में शामिल नहीं होंगे. यह हमारा घर है और हम यहां रहेंगे, भले ही दरवाजे बंद रहे हों.

कांग्रेस के पास है मौका

कांग्रेस नेतृत्व अभी भी इन पार्टी नेताओं को वापस बुलाने और संगठन के निर्माण में उनकी मदद लेने का प्रयास कर सकता है, लेकिन एक बात निश्चित है, उनमें से कोई भी प्रियंका की मंडली के वर्चस्व को स्वीकार नहीं करेगा. विडंबना यह है कि कांग्रेस के पास यूपी में एक अवसर है क्योंकि न तो सपा और न ही बसपा खुद को सत्तारूढ़ भाजपा के लिए एक मजबूत और व्यवहार्य विपक्ष के रूप में स्थापित कर पाई है. समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव लगातार विफलताओं के बाद भाजपा की रणनीति का मुकाबला करने की क्षमता का अभाव है, जबकि बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने अपना मूल वोट बैंक खो दिया है और सत्तारूढ़ गठबंधन को तोड़ने का अभियान भी चला गया है.

समर्थकों में विश्वास जगाना होगा

कांग्रेस एक विकल्प के रूप में उभर सकती है लेकिन उसके लिए पार्टी के रणनीतिकारों और आलाकमान को पहले जमीनी स्तर पर काम करना होगा, पार्टी को एकजुट करना होगा और फिर अपने समर्थकों में विश्वास जगाना होगा. कांग्रेस ने 2017 में सपा के साथ गठबंधन करके आखिरी समय में अपना सब कुछ लुटा दिया था और इससे उसके कार्यकर्ताओं का मोहभंग हो गया था. पार्टी के एक कार्यकर्ता ने कहा कि नेता तुम्हारा, झंडा हमारा, नहीं चलेगा. 

आगे की राह क्या हो सकती है?

कांग्रेस को अपने तीन मुख्य वोट बैंकों में से कम से कम एक को फिर से जीतने की तत्काल आवश्यकता है, चाहे वह मुस्लिम हों, दलित हो या ब्राह्मण. अन्य दो अपने-आप साथ आ जाएंगे. हालांकि, कांग्रेस यह तय नहीं कर पा रही है कि वह हिंदू कार्ड खेलना चाहती है या मुसलमानों तक पहुंचना चाहती है. कांग्रेस पार्टी जब तक वह कोई फैसला नहीं कर लेती है. उत्तर प्रदेश में 2024 में इसका भविष्य निश्चित नहीं हो सकता है.

(इनपुट: एजेंसी)

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