AFSPA in Assam: मुख्यमंत्री ने कहा, 'हम 2023 के अंत तक असम से AFSPA को पूरी तरह से वापस लेने का लक्ष्य बना रहे हैं. हम अपने पुलिस बल को प्रशिक्षित करने के लिए पूर्व सैन्य कर्मियों को भी शामिल करेंगे.'
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Assam News: असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने सोमवार को कहा कि नवंबर तक राज्य से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (AFSPA) हटाया जा सकता है. पहले कमांडेंट्स सम्मेलन में बोलते हुए, उन्होंने कहा कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) को असम पुलिस बटालियन द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा.
असम के मुख्यमंत्री ने कहा, ‘आफ्स्पा नवंबर तक पूरे राज्य से हटाया जा सकता है. इससे असम पुलिस बटालियनों सीएपीएफ की जगह लेनी की सुविधा प्राप्त होगी. हालांकि, कानून के अनुसार सीएपीएफ की उपस्थिति अनिवार्य होगी.’
कमांडेंट्स कॉन्फ्रेंस में, बिस्वा ने यह भी कहा कि असम सरकार हर छह महीने में कमांडेंट्स का सम्मेलन आयोजित करेगी और "बटालियनों में कमांडेंट्स और बलों की मानसिकता में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए माहौल बनाने का प्रयास किया जाएगा."
‘पुलिस बल को करेंगे प्रशिक्षित’
बाद में अपने भाषण के अंश ट्विटर पर शेयर करते हुए सीएम ने लिखा, ‘हम 2023 के अंत तक असम से AFSPA को पूरी तरह से वापस लेने का लक्ष्य बना रहे हैं. हम अपने पुलिस बल को प्रशिक्षित करने के लिए पूर्व सैन्य कर्मियों को भी शामिल करेंगे. मेरे भाषण के अंश. ‘
दिलचस्प बात यह है कि 30 मार्च को असम सरकार ने आठ जिलों में AFSPA के दायरे को छह और महीनों के लिए बढ़ाने का फैसला किया. यह विस्तार तब आया जब राज्य और केंद्र दोनों सरकारों ने कई मौकों पर AFSPA के तहत क्षेत्रों को कम करने का वादा किया. पिछले साल, असम ने अप्रैल में 8 जिलों और अक्टूबर में 1 जिले से AFSPA हटा दिया था.
क्या है AFSPA?
AFSPA, जो पहली बार 1958 में लागू हुआ था. यह ‘अशांत क्षेत्रों’ में तैनात सशस्त्र बलों और अर्ध-सैनिक बलों के सदस्यों को बिना किसी वारंट के संदिग्ध परिसरों को तलाशी लेने, गिरफ्तार करने. यहां तक कि "सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने" के लिए आवश्यक समझे जाने पर गोली चलाने की व्यापक शक्तियां देता है.
इसके तहत अधिकारियों या सशस्त्र बलों या अर्धसैनिक बलों के कर्मियों के खिलाफ तब तक कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती जब तक केंद्र सरकार अपनी मंजूरी न दे दे.
वर्तमान में, AFSPA 5 राज्यों- असम, नागालैंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में लागू है. इससे पहले, त्रिपुरा और मेघालय भी इस सूची में थे, लेकिन 2015 में त्रिपुरा से और 2018 में मेघालय से AFSPA को रद्द कर दिया गया था.
सिविल सोसायटी ग्रुप AFSPA को लेकर कई तरह की चिंताएं जताते आए हैं. ऐसे ग्रुप्स का दावा किया है कि इस कानून के कारण अशांत क्षेत्रों में मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है.