Cheetahs Population: देश में अंतिम चीते की मौत 1947 में कोरिया जिले में हुई थी, जो छत्तीसगढ़ जिले में स्थित है. 1952 में चीते को भारत में विलुप्त घोषित किया गया था.
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Namibia Cheetahs Plane: नामीबिया से आठ चीतों के आने से एक दिन पहले कार्यक्रम में बदलाव किया गया है. चीतों को लाने वाला खास मालवाहक विमान शनिवार को राजस्थान के जयपुर के बजाय अब मध्य प्रदेश के ग्वालियर में उतरेगा. एक अधिकारी ने बताया कि इन चीतों को शनिवार तड़के ग्वालियर हवाई अड्डे पर लाया जाएगा, जहां से उन्हें एक खास हेलीकॉप्टर से मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के कुनो राष्ट्रीय उद्यान (KNP) पहुंचाया जाएगा. केएनपी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इनमें से तीन चीतों को वहां बनाए गए विशेष बाड़ों में छोड़ देंगे. प्रधानमंत्री श्योपुर जिले के कराहल में सेल्फ हेल्प ग्रुप के एक सम्मेलन में भी शिरकत करेंगे. 17 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी का जन्मदिन भी है.
पहले जयपुर में उतरना था विमान
पहले की योजना के तहत इन चीतों को लाने वाले विमान को राजस्थान के जयपुर में उतरना था, जहां से उन्हें केएनपी भेजा जाता. प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) वन्यजीव जेएस चौहान ने बताया, 'चीते ग्वालियर पहुंचेंगे और वहां से उन्हें एक खास हेलीकॉप्टर से केएनपी भेजा जाएगा.' अधिकारियों ने बताया कि पांच मादा और तीन नर चीतों को नामीबिया की राजधानी विंडहोक से खास मालवाहक विमान बोइंग 747-400 के जरिये ग्वालियर हवाई अड्डे पर लाया जाएगा.
चिनूक हेलिकॉप्टर से केएनपी हैलीपैड पर उतरेंगे
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि ग्वालियर से चीतों को भारतीय वायु सेना के चिनूक हेलीकॉप्टर के जरिए केएनपी हेलीपैड पर उतारा जाएगा. चीता संरक्षण कोष (CCF) के मुताबिक, केएनपी लाए जा रहे चीतों में से पांचों मादा की उम्र दो से पांच साल के बीच, जबकि नर चीतों की उम्र 4.5 साल से 5.5 साल के बीच है. देश में अंतिम चीते की मौत 1947 में कोरिया जिले में हुई थी, जो छत्तीसगढ़ जिले में स्थित है. 1952 में चीते को भारत में विलुप्त घोषित किया गया था.
'अफ्रीकन चीता इंट्रोडक्शन प्रोजेक्ट इन इंडिया' 2009 में शुरू हुआ था और इसने हाल के कुछ वर्षों में रफ्तार पकड़ी है. भारत ने चीतों के इंपोर्ट के लिए नामीबिया सरकार के साथ एमओयू पर दस्तखत किए हैं. पीएमओ ने कहा कि भारत में चीता को फिर से बसाने का काम, प्रोजेक्ट चीता के तहत किया जा रहा है, जो बड़े जंगली मांसाहारी जानवर के अंतर-महाद्वीपीय ट्रांसफर से जुड़ी दुनिया की पहली परियोजना है.
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