भारत के महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त के रूप में कार्यरत मृत्युंजय कुमार नारायण की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति अगस्त 2026 तक बढ़ा दी गई है. इससे उनके लंबे अरसे से लंबित दशकीय जनगणना की कवायद को पूरा करने के लिए टीम का नेतृत्व करने का मार्ग प्रशस्त हो गया है.
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Census and Delimitation: भारत के महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त के रूप में कार्यरत मृत्युंजय कुमार नारायण की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति अगस्त 2026 तक बढ़ा दी गई है. इससे उनके लंबे अरसे से लंबित दशकीय जनगणना की कवायद को पूरा करने के लिए टीम का नेतृत्व करने का मार्ग प्रशस्त हो गया है. इसके बाद सोमवार को मीडिया रिपोर्ट्स में इस तरह के कयास लगाए जाने लगे कि अगले साल (2025) जनगणना कराई जाएगी और 2026 तक इस कार्य को पूरा कर लिया जाएगा.
इसके साथ ही कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि जनगणना के साथ ही जाति जनगणना कराना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है. जयराम रमेश ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘महापंजीयक और जनगणना आयुक्त के कार्यकाल के विस्तार देने को अभी-अभी अधिसूचित किया गया है. इसका मतलब है कि 2021 में होने वाली जनगणना, जो लंबे समय से विलंबित है, अब आख़िरकार जल्द ही करवाई जाएगी.’’
उन्होंने कहा, ‘‘दो महत्वपूर्ण मुद्दों पर अभी भी कोई स्पष्टता नहीं है. 1951 से हर जनगणना में होती आ रही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की गणना के अलावा क्या इस नई जनगणना में देश की सभी जातियों की विस्तृत गणना शामिल होगी? भारत के संविधान के अनुसार ऐसी जाति जनगणना केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी है.’’
ये बात भी विचारणीय है कि इसी साल सितंबर में वन नेशन वन इलेक्शन प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी दे दी गई है. यानी 2029 के लोकसभा चुनाव में लोकसभा और सभी प्रदेशों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने की बात कही जा रही है. गौरतलब है कि 2002 के एक परिसीमन के तहत 2026 तक लोकसभा की सीटें बढ़ाने पर रोक लगी है. कहने का आशय ये है कि उस वक्त तक की जनगणना के आधार पर ही परिसीमन हो सकता है. इन सबके आधार पर ये भी कहा जा रहा है कि उसके बाद होने वाले चुनावों के मद्देनजर लोकसभा सीटें बढ़ सकती हैं.
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जनगणना का सवाल
हर 10 साल में जनगणना होती है लेकिन 2021 में ऐसा नहीं हो सका. कोरोना के कारण जनगणना नहीं हो पाई. अब कहा जा रहा है कि ये कार्य अब 2026 तक होगा. वहीं 2002 के कानून में ये व्यवस्था की गई थी कि 2026 के बाद की जनगणना के आधार पर परिसीमन होगा. परिसीमन का आशय यहां पर जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीटों के निर्धारण से है. 2002 में जब ये परिसीमन कानून बनाया गया था तो उसका मतलब ये था कि 2026 के बाद बढ़ती जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीटें बढ़ाई जा सकती हैं. चूंकि एक दशक बाद ही जनगणना होती है तो उस वक्त ये माना गया कि 2002 के परिसीमन कानून का आशय ये है कि 2031 की जनगणना के बाद ही परिसीमन होगा. लेकिन कोरोना के कारण 2021 में होने वाले कार्य को टाल दिया गया. लिहाजा यदि 2026 तक जनगणना का कार्य हुआ तो फिर उसके तुरंत बाद 2031 में करना जल्दबाजी ही होगी. लिहाजा 2002 के कानून के लिहाज से 2026 की जनगणना को आधार मानकर परिसीमन का कार्य किया जा सकता है और उस आधार 2029 में ही लोकसभा सीटें बढ़ाई जा सकती हैं.
नारी शक्ति वंदन अधिनियम
पिछले कार्यकाल में मोदी सरकार ने इस अधिनियम के तहत अगले चुनाव तक एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का भी प्रावधान किया है.
उत्तर Vs दक्षिण
सर्वविदित है कि परिसीमन के सवाल पर दक्षिण के राज्य बेचैन हैं. उसकी वजह ये है कि वहां पर जनसंख्या वृद्धि दर को नियंत्रित करने में काफी हद तक सफलता पाई गई है. इसका असर ये हो रहा है कि उत्तर की तुलना में दक्षिण के राज्यों में जनसंख्या की बढ़ोतरी कम हुई है. लिहाजा यदि परिसीमन का आधार केवल जनसंख्या होगा तो दक्षिण के राज्यों के हिस्से कम सीटें आएंगी और जो भी सीटें बढ़ेंगी वो उत्तर के राज्यों में बढ़ेंगी. इससे दक्षिण के राज्यों का संसद में प्रतिनिधित्व कम हो सकता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सरकार इसका समाधान तलाश रही है और आनुपातिक प्रणाली का फॉर्मूला निकाला जा रहा है जिसमें दक्षिण के हितों का ध्यान रखा जाएगा.