...जब अंग्रेजी हुकूमत ने रची थी बापू की हत्या की साजिश, इस शख्स ने बचाई थी जान
Advertisement

...जब अंग्रेजी हुकूमत ने रची थी बापू की हत्या की साजिश, इस शख्स ने बचाई थी जान

Mahatma Gandhi Champaran Visit: 1917 में महात्मा गांधी चंपारण आए थे. उनकी लोकप्रियता देख अंग्रेजी हुकूमत डर गई और फिर उनकी हत्या की साजिश रची. आज हम आपको उस शख्स के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने बापू की जान बचाई थी.

...जब अंग्रेजी हुकूमत ने रची थी बापू की हत्या की साजिश, इस शख्स ने बचाई थी जान

Mahatma Gandhi Murder Plan: बिहार के पटना से 300 किलोमीटर दूर चलेंगे तो चंपारण जिले में एकवा परसौनी गांव आएगा. 100 साल से भी ज्यादा वक्त पहले राजकुमार शुक्ला के बुलाने पर 1917 में महात्मा गांधी चंपारण दौरे पर आए थे. उनके आने की बात तेजी से फैल गई. बेतिया स्टेशन पर लाखों लोगों की भीड़ जमा हो गई और बापू की ट्रेन स्टेशन पर पहुंच ही नहीं पाई. महात्मा गांधी के चंपारण पहुंचने और उनकी लोकप्रियता देख ब्रिटिश हुकूमत सहम गई और उसने महात्मा गांधी की हत्या की साजिश रच डाली. 

अंग्रेजी सरकार ने ढाए थे जुल्म

लेकिन एक शख्स ऐसा था, जिसने अंग्रेजी हुकूमत का प्लान फेल कर दिया और महात्मा गांधी की जान बच गई. इसकी वजह से उस शख्स पर अंग्रेजी सरकार ने जुल्म ढाए, आंखों के सामने घर जला दिया और जेल में भी डाल दिया. लेकिन फिर भी वो शख्स टूटा नहीं. इस शख्स का नाम था बतख मियां.  

राजेंद्र प्रसाद को किया था इशारा

इसी दौरान मोतिहारी के तत्कालीन ब्रिटिश कलेक्टर हिकॉक ने उन्हें मोतिहारी आने का न्योता दिया, जिसे बापू ने स्वीकार कर लिया. उस वक्त डॉ राजेंद्र प्रसाद भी गांधी के साथ थे. उस वक्त बतख मियां को अंग्रेजों ने महात्मा गांधी को दूध देने को कहा. बतख मियां को मालूम था कि दूध में जहर है. उन्होंने इशारों-इशारों में ये बात राजेंद्र प्रसाद को बता दी, जिन्होंने गांधी जी को दूध पीने से मना कर दिया और उनकी जान बच गई.

राष्ट्रपति बनने पर चंपारण आए थे राजेंद्र प्रसाद

जब देश आजाद हुआ तो राष्ट्रपति बनने के बाद राजेंद्र प्रसाद चंपारण दौरे पर आए. वह बतख मियां के घर भी पहुंचे. तब तक बतख मियां का इंतकाल हो चुका था. वह उनकी बहू और मां से मिले और सरकारी खजाना खाली होने की बात बताई. तब दोनों ने अपने गहने सरकारी खजाने में जमा कर दिए. तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने बतख मियां के परिवार को जीवन यापन के लिए 35 बीघा जमीन दी लेकिन उन्हें 6 एकड़ ही मिली. लेकिन नदी के किनारे पर होने की वजह से वो भी पानी में समा गई. सिर्फ 10 कट्टा जमीन ही बची है. इसी पर अब परिवार रहता है और बाकी पर खेती-बाड़ी करता है. 

ये ख़बर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर

 

Trending news