पाकिस्तानी क्रिकेटर पर काला जादू, प्रधानमंत्री से मांगी गई रिश्वत? जानें क्या हुआ था साल 1979 में
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पाकिस्तानी क्रिकेटर पर काला जादू, प्रधानमंत्री से मांगी गई रिश्वत? जानें क्या हुआ था साल 1979 में

Zee News Time Machine: साल 1979 में जब पाकिस्तान की क्रिकेट टीम भारत दौरे पर आई तो उस वक्त कुछ ऐसा हुआ जिसने जमकर सुर्खियां बटोरी.

पाकिस्तानी क्रिकेटर पर काला जादू, प्रधानमंत्री से मांगी गई रिश्वत? जानें क्या हुआ था साल 1979 में

Time Machine on Zee News: ज़ी न्यूज के खास शो टाइम मशीन में हम आपको बताएंगे साल 1979 के उन किस्सों के बारे में जिसके बारे में शायद ही आपने सुना होगा. ये वो साल था जब देश के प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से 35 रुपये की रिश्वत मांगी गई थी. इसी साल इंदिरा गांधी ने उत्तराखंड का तूफानी दौरा किया था, जिससे हड़कंप मच गया था. ये वही साल था जब भारत दौरे पर आई पाकिस्तान क्रिकेट टीम के एक क्रिकेटर को लगा था कि उन पर किसी ने काला जादू कर दिया है. इसी साल जल समाधि भगवान निकल थे. आइये आपको बताते हैं साल 1979 की 10 अनसुनी अनकही कहानियों के बारे में.

इंदिरा गांधी का तूफानी दौरा

70 और 80 के दशक में इंदिरा गांधी देश की पहली और सबसे बड़ी महिला नेता बन चुकी थीं. इसी बीच 1979 में इंदिरा गांधी ने छठी लोकसभा के भंग होने के बाद चुनावों की घोषणा से पहले ही तूफानी दौरे शुरू कर दिए थे. इसी के बीच इंदिरा 4 दिसंबर को उत्तराखंड दौरे पर गईं. यहां उत्तराखंड के अलग-अलग शहरों मे इंदिरा के दौरे हुए. अल्मोड़ा, रुद्रपुर, काशीपुर और नैनीताल समेत कई शहरों का उन्होंने दौरा किया और जनसभाएं कीं. इसी दौरे पर वो हल्द्वानी के रामनगर पहुंची. उस वक्त सर्दियों का समय था और इंदिरा गांधी रात 12 बजे रामनगर पहुंचीं. इंदिरा का भाषण देरी से हुआ. ऐसे में रामनगर वासी सर्द रात में चीड़ की लकड़ी के छिलके जलाकर इंदिरा का इंतजार करते रहे. ठिठुरती ठंड में इंदिरा का भाषण सुनने के लिए रात तक लोगों ने इंतजार किया. रात को 12 बजे इंदिरा गांधी जैसे ही एमपी इंटर कालेज के मैदान पर पहुचीं तो करीब 15-16 हजार लोगों की भीड़ ने इंदिरा जिंदाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिए. उस वक्त इंदिरा का ये तूफानी दौरा खूब सुर्खियों में रहा और नतीजा ये निकला कि उस वक्त देश में कांग्रेस को 492 में से 353 सीटों पर विजय हासिल हुई थी.

PM चौधरी चरण सिंह से दरोगा ने मांगी रिश्वत

साल 1979 की बात है, जब प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह एक थाने में औचक निरीक्षण के लिए किसान के भेस में पहुंचे. इटावा के ऊसराहार थाने में कुर्ता-धोती पहने चौधरी चरण सिंह किसान बनकर अपने बैल की चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराने गए. थाने पहुंचकर चौधरी चरण सिंह को काफी वक्त इंतजार करना पड़ा. वो बार-बार दरोगा से रिपोर्ट दर्ज करने को कह रहे थे लेकिन सिपाही उनकी बात को लगातार अनसुना कर रहे थे. आखिरकार दारोगा ने उन्हें अंदर बुलाया और कुछ सवाल पूछे. जैसे आमतौर पर पूछे जाते हैं. इसके बाद किसान बने चौधरी चरण सिंह की कोई रिपोर्ट नहीं लिखी. टेढ़े-मेढ़े सवाल किए, डांट दिया और जाने को कह दिया. इसी बीच पीछे से आवाज आई और सिपाही ने कहा 'बाबा थोड़ा खर्चा-पानी दे तो रपट लिख ली जाएगी.' रिश्वत की बात सुन पीएम चौधरी चरण सिंह हैरान थे. आखिरकार  35 रुपये की रिश्वत लेकर रिपोर्ट लिखना तय हुआ. मुंशी ने रिपोर्ट लिखकर किसान से पूछा बाबा अंगूठा लगाओगे या हस्ताक्षर करोगे? इस पर किसान यानि चौधरी चरण सिंह  ने हस्ताक्षर करने को कहा. जिसके बाद किसान ने हस्ताक्षर में नाम लिखा, चौधरी चरण सिंह और फिर मैले कुर्ते की जेब से मुहर निकाल कर कागज पर ठोंक दी. जिस पर लिखा था, 'प्राइम मिनिस्टर ऑफ इंडिया'. बस फिर क्या था. चौधरी चरण सिंह की पीएम वाली स्टांप देख थाने में हड़कंप मच गया. सभी उनसे माफी मांगने लगे. बाद में ऊसरहार थाने के सभी सिपाहियों को सस्पेंड कर दिया गया था.

पाकिस्तानी क्रिकेटर पर 'काला जादू'

साल 1979 में जब पाकिस्तान की क्रिकेट टीम भारत दौरे पर आई तो उस वक्त कुछ ऐसा हुआ जिसने जमकर सुर्खियां बटोरी. दरअसल पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और क्रिकेटर रहे इमरान खान ने खुद इस बात का खुलासा किया कि जब वो भारत आए तो उनकी टीम के प्लेयर जहीर अब्बास पर काला जादू किया गया था. इमरान खान ने बताया कि, 28 साल बाद पाकिस्तान की टीम 1979 में भारत आई. उस वक्त पाकिस्तान और भारत का मैच देखने के लिए हर कोई बेताब था. हमारी टीम के प्लेयर जहीर अब्बास पाकिस्तान में भारत के गेंदबाजों पर भारी पड़े थे. लेकिन भारत में जहीर अब्बास कमाल नहीं दिखा पा रहे थे, वो महज 40 रन ही बना पाए. मैं और जहीर अब्बास एक ही कमरे में ठहरे थे. एक दिन मैंने देखा कि वो आईने के सामने अपनी आंखें और चश्मे को देख रहा था. मैंने पूछा आखिर हुआ क्या है, तो उसने कहा कि, शायद मेरी आंखों में कुछ खराबी है. हमने जांच कराई पर सब ठीक निकला. पर वो बैक टू बैक दोनों मैचों में असफल रहा. इसके बाद जहीर ने मुझसे कहा कि, मुझे अब समझ आया कि हम दोनों अच्छा क्यों नहीं खेल पा रहे हैं. फिर उन्होंने कहा कि ये काला जादू है. हम पर किसी ने काला जादू किया है. इसके बाद जहीर ने अगले मैच से खुद को हटा लिया. उस वक्त जहीर अब्बास के इस किस्से की खूब चर्चा हुई.

40 साल में 'प्रकट' होते हैं भगवान!

तमिलनाडु के कांचीपुरम में एक ऐसा मंदिर स्थिति है, जिसे लेकर मान्यता है कि यहां भगवान अती वरदार की मूर्ति भक्तों को दर्शन देने के लिए 40 साल में एक बार कुछ दिनों के लिए जल समाधि से बाहर निकलती है. साल 1979 में भी यही हुआ था. साल 1979 में भगवान अति वरदार ने मंदिर के पवित्र तालाब से बाहर आकर भक्तों को दर्शन दिए. भगवान अति वरदार के दर्शन के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं. 40 साल में एक बार ही बाहर आती है भगवान अति वरदार की मूर्ति. मूर्ति निकलने के वक्त ये त्योहार महज 48 दिन तक मनाया जाता है. अंजीर के पेड़ से बनी अती वरदार की मूर्ति चांदी के ताबूत में रखी गई है. पहली बार अति वरदार की मूर्ति 1939, दूसरी बार 1979 और तीसरी बार 2019 में बाहर आई.

35 साल में बना दिया जंगल

अगर हम आपसे कहें कि एक व्यक्ति ने अपना पूरा जीवन प्रकृति को ही समर्पित कर दिया तो क्या आप मानेंगे? लेकिन  ये सच है. जादव पायेंग नाम के एक शख्स ने अपने पूरे जीवन को प्रकृति पर न्यौछावर किया और एक बंजर जमीन पर हरियाली वाला जंगल बना दिया. असम के जोराहाट जिले में पाई जाने वाली मिशिंग जनजाति के जादव 'मोलाई' पायेंग ने एक अकेले ही आसाम के मजूली द्वीप पर पूरा जंगल उगा दिया. जी हां, पूरा जंगल सुनने में आपको अजीब लगे पर सच यही है. साल 1979 में इसकी शुरूआत हुई. जब बाढ़ की वजह से उनके घर के आसपास सबकुछ तहस नहस हो गया. उस समय जादव 16 साल के थे. बाद में वैज्ञानिकों ने भी ये कह दिया कि ये द्वीप कुछ सालों में मृत हो जाएगा. इसके बाद जादव ने ठान लिया कि वो उस बंजर-खराब जमीन को हरा भरा करके ही दम लेंगे. बस फिर उन्होंने उस जमीन पर पेड़ पौधे लगाने शुरू कर दिए. 35 सालों तक उन्होंने हर रोज पौधे लगाए और नतीजा ये निकला कि मजूली द्वीप पर पूरा जंगल उग आया. ये जंगल करीब 1360 एकड़ में फैला है. फॉरेस्‍ट मैन ऑफ इंडिया के नाम से मशहूर जादव को 2015 में पद्मश्री अवॉर्ड से सम्‍मानित किया गया.

एक बांध ने मचाया कोहराम

साल 1979 में गुजरात में एक ऐसी तबाही आई जिसने सबको हिला कर रख दिया. टाइल्स के कारोबार के लिए मशहूर गुजरात के शहर मोरबी में 11 अगस्त 1979 में एक प्रलय के बाद हर तरफ त्राहि-त्राहि मच गई. 1979 में मोरबी के पास मौजूद मच्छू डैम 2 के टूट जाने से पूरा मोरबी शहर पानी में डूब गया. 11 अगस्त के दिन दोपहर करीब सवा तीन बजे डैम टूटा और 15 मिनट में ही पूरा शहर पानी में डूब गया था. महज कुछ ही देर में मकान और इमारतें जमींदोज होने लगीं और लाशों का अंबार लग गया. हजारों की संख्या में पशुओं की भी मौत हो गई थी. मच्छू बांध टूटने से करीब एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे. इस तबाही के बाद खुद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी मोरबी का दौरा करने गईं थीं. उस वक्त मुंह पर रुमाल बांधे उनकी एक तस्वीर खूब वायरल हुई थी. जिसको लेकर जमकर सियासत हुई थी.

पश्चिम बंगाल में 'जलियावाला बाग रिटर्न्स'!

साल 1979 में पश्चिम बंगाल के मरीचझांपी में एक ऐसा नरसंहार हुआ जिसे सोचकर भी रूह कांप जाती है. 26 जनवरी 1979 को मरीचझापी में हुआ नरसंहार बेहद ही भयानक था. ये बिल्कुल जालियांवाला बाग की तरह था. 26 जनवरी, 1979 को, गणतंत्र दिवस के मौके पर पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने मारीचझांपी की आर्थिक नाकाबंदी की घोषणा की. इसके बाद मरीचझांपी द्वीप की नाकाबंदी 26 जनवरी को शुरू हुई और 31 जनवरी, 1979 को एक हजार से अधिक लोगों की हत्या कर दी गई. आखिरी हमला 14 और 16 मई 1979 के बीच हुआ. पुलिस ने मरीचझांपी द्वीप में प्रवेश किया और लगभग 6,000 झोपड़ियों में आग लगा दी, पुलिस बल ग्रामीणों को वापस कोलकाता ले गई और उन्हें दंडकारण्य भेज दिया गया. महज एक रात के अंदर ही पूरे मरीचझांपी द्वीप से सभी शरणार्थियों को हटा दिया गया. मरीचझांपी नरसंहार पर लेखक  Deep Halder की किताब के अनुसार, 1979 में इस हत्याकांड में करीब 7,000 पुरुष, महिलाएं और बच्चे मारे गए थे. शवों को समुद्र में फेंका गया और खाना पीना सब बंद किया गया, यहां तक कि पानी में जहर तक मिला दिया गया. ताकि कोई पानी भी ना पी सके.

भारत में हुआ बुलडोज़र का स्वागत!

JCB या यूं कहें कि बुलडोज़र. ये शब्द आपने पिछले कुछ वक्त में कुछ ज्यादा ही सुना होगा. सोशल मीडिया पर अक्सर जेसीबी को लेकर मीम्स वायरल होते रहते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर जेसीबी की शुरूआत देश में कैसे और  कब हुई थी. जेसीबी की शुरूआत भारत में 1979 में हुई थी. 1979 में इसकी शुरुआत एक जॉइंट वेंचर के तौर पर हुई थी. ये एक ब्रिटेन की कंपनी है जिसे भारत में खोला गया था. 1979 में कंपनी ने 39 मशीनों का उत्पादन किया था. जेसीबी को  बैकहो लोडर (बुलडोज़र) भी कहा जाता है. नई दिल्ली के पास बल्लभगढ़ में जेसीबी हेडक्वार्टर मौजूद है. भारत में जेसीबी की कुल 6 साइट मौजूद हैं. 2016 के बाद से जेसीबी इंडिया का कारोबार दोगुना हुआ है.

मदर टेरेसा को मिला नोबेल पुरस्कार

अपना पूरा जीवन गरीब, अनाथ, लाचार और बीमार लोगों को समर्पित करने वाली मदर टेरेसा को कौन नहीं जानता. मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना से लेकर दुनिया भर में मदद और शांति का प्रतीक बनीं मदर टेरेसा को साल 1979 में इसी के चलते नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. मदर टेरेसा को 17 अक्टूबर 1979 को नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. आपको बता दें कि, नोबेल पुरस्कार दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार माने जाते हैं और इन्हें पाने वाले पूरे विश्व द्वारा सम्मानित होते हैं और लाखों करोड़ों लोगों को अपने-अपने क्षेत्रों में अच्छा करने की प्रेरणा देते हैं. मदर टेरेसा भी उन्हीं चंद लोगों में से एक थीं, जिन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

डायरेक्टर के बंगले में शूट हुई 'गोलमाल'

साल 1979 में एक ऐसी फिल्म आई जो जबरदस्त हिट हुई और वो फिल्म थी गोलमाल. कल्ट क्लासिक कॉमेडी फिल्म गोलमाल के कई किस्से आप जानते होंगे लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि ये फिल्म खुद फिल्म के डायरेक्टर के घर में शूट हुई थी. दरअसल उस दौर में फिल्में बनाना बेहद मुश्किल काम था. फिल्ममेकर्स फिल्मों पर सोच समझकर ही पैसा लगाते थे और उतना पैसा भी नहीं होता था. फिल्म का बजट करीब 1 करोड़ था. फिल्म को 5 भाषाओं में रिलीज किया गया था. फिल्म ने दुनियाभर में करीब 7-8 करोड़ की कमाई की थी. फिल्म 40 दिनों में बनकर तैयार हुई थी. डायरेक्टर ऋषिकेश मुखर्जी के घर अनुपमा के आसपास फिल्म की शूटिंग हुई थी. इसके अलावा शूटिंग उत्पल दत्त के घर, ऑफिस और अमोल पालेकर के घर और गार्डन में हुई. फिल्म के स्टार्स ने अपने ही कपड़ों में फिल्म की शूटिंग की थी. फिल्म गोलमाल के बाद ही रोहित शेट्टी ने गोलमाल सीरिज को लॉन्च किया जो कि एक बड़ी फ्रैंचाइज बनी.

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