बिहार के इस जिले में हुआ था होलिका दहन, बचे हैं यहां अभी भी ऐतिहासिक अवशेष
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बिहार के इस जिले में हुआ था होलिका दहन, बचे हैं यहां अभी भी ऐतिहासिक अवशेष

भारत वर्ष में होली से पहले होलिका दहन की परम्परा रही है लेकिन इसके पीछे की कहानी और इतिहास बिहार के पूर्णिया जिले के बनमनखी से जुड़ा हुआ है. जिले के बनमनखी सिकलीगढ़ धरहरा स्थित नरसिंह मंदिर में हर साल भव्य तरीके से होलिका दहन का कार्यक्रम हर साल आयोजित किया जाता है.

(फाइल फोटो)

पूर्णिया: भारत वर्ष में होली से पहले होलिका दहन की परम्परा रही है लेकिन इसके पीछे की कहानी और इतिहास बिहार के पूर्णिया जिले के बनमनखी से जुड़ा हुआ है. जिले के बनमनखी सिकलीगढ़ धरहरा स्थित नरसिंह मंदिर में हर साल भव्य तरीके से होलिका दहन का कार्यक्रम हर साल आयोजित किया जाता है. यहां के बारे में कहा जाता है कि यहां बनमनखी के सिकलीगढ़ धरहरा में आज भी होलिका दहन से जुड़े अवशेष बचे हैं. 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रहलाद जहां आग से जिंदा बचकर बाहर निकल आए थे और होलिका जल गई थी वह जगह बिहार के पूर्णिया का यही नरसिंह मंदिर है. मतलब होलिका दहन के पीछे की कहानी और इतिहास पूर्णिया के बनमनखी से जुड़ा हुआ है, बनमनखी के सिकलीगढ़ धरहरा में आज भी होलिका दहन से जुड़े अवशेष बचे है जहाँ भक्त प्रहलाद को बचाने के लिए खम्भे से नरसिंह अवतार हुआ था और प्रहलाद को बचा लिया गया था.

आपको जान कर हैरानी होगी की पुरे भारत वर्ष में  होली की पूर्व संध्या पर जिस होलिका को जलाते है और असत्य पर सत्य की जीत की खुशी मनाते हैं उसकी शुरुआत पूर्णिया के सिकलीगढ़ धरहरा में हुई थी. मान्यताओं के अनुसार असुर हिरण्यकश्यप ने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी और देवताओं को पराजित कर दिया था. लिहाजा तीनों लोकों पर हिरण्यकश्यप का अत्याचार शुरू हो गया था. तब भगवान विष्णु ने भक्तों के कल्याण के लिए अपने अंश प्रहलाद को असुरराज की पत्नी कयाधु के गर्भ में भेज दिया. जन्म से ही भक्त प्रहलाद विष्णु भक्त था. जिससे हिरण्यकश्यप उसे अपना शत्रु समझने लगा था. अपने पुत्र को खत्म करने के लिए हिरण्यकश्यप ने होलिका के साथ प्रहलाद को अग्नि में जलाने की योजना बनाई. होलिका के पास एक ऐसी चादर थी जिसपर आग का कोई प्रभाव नहीं होता था. योजना के अनुसार हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को वही चादर लपेटकर प्रह्लाद को गोद में बैठाकर आग में जाने दिया लेकिन वह चादर उड़कर प्रह्लाद के ऊपर आ गया और होलिका जल गई. तभी इसी खम्भे से नरसिंह अवतार हुआ,  ये वही स्थल है जहां होलिका दहन हुआ था और भक्त प्रहलाद बाल-बाल बच गए थे. तभी से इस तिथि पर होली मनाई जाती है. 

नरसिंह अवतार के इस मंदिर का दर्शन करने दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और उनकी सभी मुरादें पूरी होती हैं. यहां हर वर्ष धूमधाम से होलिका दहन होता है और यहां होलिका जलने के बाद ही दुसरी जगह होलिका जलाई जाती है.

होलिका दहन की परम्परा से जुड़ी पूर्णिया के इस ऐतिहासिक स्थल पर हर वर्ष विदेशी सैलानी आते हैं और कई फिल्मों की शूटिंग भी यहां हो चुकी है बाबजूद इसके इस स्थल का जितना विकास होना चाहिए उतना नहीं हुआ है. 

(रिपोर्ट- मनोज कुमार)

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