बेंगलुरु में विपक्षी एकता की बैठक से नीतीश कुमार को क्या मिला?
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बेंगलुरु में विपक्षी एकता की बैठक से नीतीश कुमार को क्या मिला?

Bihar Politics: बेंगलुरु में विपक्षी नेताओं की बैठक के बाद आयोजित मीडिया ब्रीफिंग में क्यों शामिल नहीं हुए नीतीश कुमार, लालू यादव ? क्या नीतीश कुमार इंडिया का कन्वेनर नहीं बनाए जाने से नाराज हो गए. नीतीश कुमार को कांग्रेस की रणनीति का पहले से पता था.

(फाइल फोटो)

पटना: Bihar Politics: बेंगलुरु में विपक्षी नेताओं की बैठक के बाद आयोजित मीडिया ब्रीफिंग में क्यों शामिल नहीं हुए नीतीश कुमार, लालू यादव ? क्या नीतीश कुमार इंडिया का कन्वेनर नहीं बनाए जाने से नाराज हो गए. नीतीश कुमार को कांग्रेस की रणनीति का पहले से पता था. नीतीश कुमार को दूसरी बैठक में उतना महत्व क्यों नहीं मिल पाया. सोनिया के आने से नीतीश की मेहनत को कांग्रेस अपने खाते में लेकर नीतीश कुमार को मैसेज देने में सफल हुई कि कांग्रेस ही देश में मोदी का विकल्प है और राहुल ने साफ़ कर दिया कि लड़ाई अब सोनिया वर्सेस मोदी होगा तो नीतीश कहां रहे? 

आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव 2024 के पहले बीजेपी के खिलाफ मजबूत गठजोड़ बनाने के लिए बेंगलुरु में विपक्षी दलों का महा जुटान हुआ. जिसमें 26 दलों के शामिल होने का ऐलान हुआ. बेंगलुरु की बैठक में भविष्य की राजनीति को नई दिशा देने की योजना बनी. हालांकि इस बैठक में कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी सहित बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू यादव, ममता बनर्जी, शरद पवार के साथ 26 विपक्षी दलों के नेता शामिल हुए. सोनिया गांधी के अचानक से बैठक की अगुवाई करने के निर्णय के बाद अब सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा शुरू हो गयी कि इंडिया का नेतृत्व सोनिया गांधी ने अपने हाथों में लेकर नीतीश कुमार को बड़ा झटका दिया है. 

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सोनिया गांधी की उपस्थिति के बहाने विपक्षी दलों को एक संदेश देने की कोशिश की गयी कि विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए कांग्रेस तैयार है. सोनिया गांधी को कांग्रेस द्वारा आगे करने के पीछे एक बड़ी वजह है. विपक्ष की बैठक में शामिल कई नेता राहुल गांधी का नेतृत्व स्वीकारने में असहज थे. चाहे ममता बनर्जी हो या शरद पवार, लालू यादव हो या एमके स्टालिन, नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल. इन सब नेताओं की राहुल की तुलना में कहीं ज्यादा बड़ा राजनीतिक कद है और इसे कांग्रेस जानती थी. इसी वजह से सोनिया को आगे करने की रणनीति पर कांग्रेस ने बड़ा निर्णय लिया है. 

जानकारों का कहना है कि अचानक से कांग्रेस की विपक्ष को एकजुट करने की सक्रियता को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नहीं स्वीकार कर पाए क्योंकि विपक्ष को साथ लाने की पहली बड़ी पहल नीतीश ने की थी. उनके ही प्रयास से केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष का पहला जुटान पटना में 23 जून को हुआ. इसे नीतीश की बड़ी सफलता मानी गई. इसी वजह से माना गया कि नीतीश कुमार को विपक्ष बड़ी जिम्मेदारी दे सकता है जिसमें संयोजक का पद भी शामिल है. लेकिन, अब सोनिया गांधी की सक्रियता से नीतीश के बदले विपक्ष के केंद्र में कांग्रेस आ गयी. यह नीतीश कुमार के लिए एक झटके से कम नहीं था कि जिस विपक्ष को एकजुट करने के लिए उन्होंने मेहनत की और उनके बहाए पसीने से तैयार हुई फसल अब कांग्रेस काटने कि तैयारी कर रही है और यही वजह है कि नीतीश के तल्ख़ तेवर को देखते हुए महागठबंधन का कुनबा नीतीश के नेतृत्व में मीडिया ब्रीफिंग में शामिल हुए वगैर ही लौटने के लिए फ्लाईट पकड लिया. 

बेंगलुरु की बैठक में कांग्रेस की रणनीति का बड़ा खुलासा भी हो गया. कांग्रेस ने अपने नेतृत्व में विपक्ष को लेकर आगे बढ़ने का फैसला किया और अगली मीटिंग मुंबई में तय कर 11 सदस्यीय कोर्डिनेशन कमिटी का गठन का ऐलान कर नीतीश का पत्ता ही साफ़ कर दिया. नीतीश कुमार की मेहनत से एकजुटता की राह पर बढ़ा विपक्ष ने अब कांग्रेस और सोनिया का नेतृत्व स्वीकार लिया. इस बैठक में जिन प्रमुख मद्दों पर चर्चा होनी थी और फैसले लेने थे उसको लेकर नीतीश कुमार ने एक लंबी फेहरिस्त बनाई थी. जिसमे पांच सूत्रीय ब्लू प्रिंट भी था जिस पर कोई फैसला नहीं लिया गया.
(रिपोर्ट- प्रशांत झा)

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