Decode हो गया ओवैसी का सीमांचल प्लान! भाजपा खुश तो राजद, जदयू की बढ़ा दी बेचैनी
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Decode हो गया ओवैसी का सीमांचल प्लान! भाजपा खुश तो राजद, जदयू की बढ़ा दी बेचैनी

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार में राजनीतिक तापमान में तेजी से वृद्धि हुई है. एक तरफ भाजपा खड़ी है तो दूसरी तरफ जदयू, कांग्रेस और राजद. वहीं जदयू के लिए मुसीबत बने उनके तीन करीबी पीके, आरसीपी सिंह और उपेंद्र कुशवाहा पूरे प्रदेश में अलग से सक्रिय हैं.

(फाइल फोटो)

पूर्णिया : लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार में राजनीतिक तापमान में तेजी से वृद्धि हुई है. एक तरफ भाजपा खड़ी है तो दूसरी तरफ जदयू, कांग्रेस और राजद. वहीं जदयू के लिए मुसीबत बने उनके तीन करीबी पीके, आरसीपी सिंह और उपेंद्र कुशवाहा पूरे प्रदेश में अलग से सक्रिय हैं. अब बारी असदुद्दीन ओवैसी की है जिन्होंने बिहार की राजनीतिक जमीन को अपने कदम बिहार में पड़ते ही हिलाकर रख दिया है. दरअसल सीमांचल के इलाके में ओवैसी को 2020 के विधानसभा चुनाव में बेहतरीन सफलता मिली लेकिन उनकी सफलता को राजद का ग्रहण लग गया. बिहार के सीमांचल से जीते AIMIM के विधायकों को राजद ने अपने पाले में किया जिसका टीस ओवैसी के अंदर से खत्म नहीं हा पाया है. 

राजद और AIMIM मे चल रहा शह-मात का खेल 
बता दें कि सीमांचल के इलाके में गृहमंत्री अमित शाह से लेकर महागठबंधन के नेताओं तक ने सभाएं की अब बारी असदुद्दीन ओवैसी की है. इस इलाके में राजद के वोट बैंक मुस्लीम-यादव समीकरण में से मुस्लिम आबादी बड़ी है. ऐसे में इसे राजद का गढ़ माना जाता रहा. हालांकि AIMIM के आने के बाद राजद को इसका काफी नुकसान हुआ और तेजस्वी यादव की पार्टी ने इसका बदला AIMIM के विधायकों को राजद में शामिल कर ले लिया. अब बारी असदुद्दीन ओवैसी की है. वह इसके बाद से ही राजद के खिलाफ हो गए हैं. 

ओवैसी के आने से भाजपा मौज में, राजद-जदयू सोच में
जानकारों की मानें तो असदुद्दीन ओवैसी का यहां सीमांचल के समर में सक्रिय होना भाजपा के लिए खुशी की खबर लेकर आया है तो वहीं राजद और जदयू के लिए यह चिंता की लकीरें खींचनेवाला है. इसका पूरा माजरा समझना है तो 2020 के विधानसभा चुनाव के नतीजे पर गौर करना पड़ेगा.  यहां की 5 विधानसभा सीटों पर AIMIM ने कब्जा जमाया. बाद में इनमें से 4 एमएलए ने पाला बदला और राजद में शामिल हो गए.  मुस्लिम नीतीश की पार्टी की तरफ भी आकर्षित हुए जब उन्होंने महागठबंधन में शामिल होकर सरकार बनाई. अब नीतीश के पाले में राजद के मुस्लिम वोटर भी आ गए. ऐसे में राजद के M-Y समीकरण का M काफी हद तक नीतीश के साथ हो गया. नीतीश पर मुसमलमानों के भरोसे की एक और वजह भाजपा से उनका पंगा लेना भी रहा है. 

मोदी से अलगाव की वजह से नीतीश की तरफ झूके मुस्लिम मतदाता
2014 में जब नीतीश एनडीए गठबंधन से अलग भाजपा के खिलाफ लोकसभा चुनाव के मैदान में अपनी पार्टी लेकर उतरे थे तो तब भी मुसलमानों ने नीतीश पर भरोसा दिखाया. इससे पहले जब नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम ते तो उन्होंने बिहार में बाढ़ राहत के लिए मदद भेजी थी जिसे नीतीश ने लेने से इनकार कर दिया था. वह मुसलमानों को यह बताने में कामयाब रहे कि वह गुजरात दंगों के आरोपी सीएम नरेंद्र मोदी के साथ नहीं हैं. यह मुसलमानों पर असर कर गया. नीतीश भाजपा के साथ सरकार चला रहे थे और नरेंद्र मोदी को प्रचार के लिए बिहार आने से लगातार रोक रहे थे. सीएए और एनआसी के मुद्दे पर भी वह केंद्र सरकार के फैसले से अलग राय रखते नजर आए ऐसे में राजद पर भरोसा करनेवाले मुसलमान धीरे-धीरे नीतीश की पार्टी पर भरोसा करने लग गए. 

भाजपा को भरोसा ओवैसी बढ़ा देंगे राजद-जदयू की मुश्किल
पहली बार 2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने जो कारनामा सीमांचल में किया उसके बाद से ही जदयू और राजद बेचैन नजर आई. हालांकि राजद ने अपनी बेचैनी का बदला ले लिया लेकिन ठीक इसके बाद असदुद्दीन ओवैसी के फिर से इस क्षेत्र में सक्रिय हो जाने से नीतीश और तेजस्वी दोनों के चेहरे पर चिंता की लकीरें आ गई है. ओवैसी सीधे-सीधे नीतीश और राजद के बनाए वोट बैंक में सेंधमारी करेगी. वहीं भाजपा को इसका स्पष्ट तौर पर फायदा मिलेगा. 

अभी ओवैसी बिहार में सीमांचल के दौरे पर हैं जहां शनिवार और रविवार को कई सभाओं के साथ रैली भी करनेवाले हैं. ऐसे में सीमांचल में एक बार फिर से उनकी पार्टी के लोग उत्साहित नजर आ रहे हैं. 

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