Bihar Politics: जो कांग्रेस लालू प्रसाद यादव से पूछे बगैर अपना प्रदेश अध्यक्ष नहीं बदलती या फिर नियुक्त करती, यहां तक कि प्रत्याशी भी बिना राजद सुप्रीमो की रजामंदी के फाइनल नहीं होता, अब जबकि लालू प्रसाद यादव ने ही कांग्रेस को लंगड़ी मार दी है तो फिर राहुल गांधी चारों खाने चित हो गए हैं.
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Bihar Politics: समय समय की बात है. कभी गांधी परिवार और खासतौर से राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को अपने हाथों से मटन खिलाते लालू प्रसाद (Lalu Prasad Yadav) खुद को गौरवशाली समझ रहे थे, भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) पर बिहार से गुजरे राहुल गांधी के ड्राइवर बनकर तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) खुद को सारथी समझ बैठे थे, आज बुरे समय में राहुल गांधी अकेले पड़ते दिखाई दे रहे हैं. एक एक कर सहयोगियों ने किनारा करना शुरू कर दिया है. इंडिया ब्लॉक (INDIA Block) के नेतृत्व के बहाने एक तरह से गांधी परिवार खासतौर से राहुल गांधी पर सहयोगी दलों का वार थोड़ा तेज होता दिख रहा है. समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और शरद पवार वाली एनसीपी के बाद अब राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने ममता बनर्जी को इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व करने देने के लिए हामी भर दी है.
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लालू प्रसाद यादव का यूटर्न कांग्रेस और खासतौर से गांधी परिवार के लिए बड़ा झटका है. जो कांग्रेस लालू प्रसाद यादव की राय के बिना अपना प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त नहीं करती, कोई प्रत्याशी घोषित नहीं कर पाती, पार्टी में शामिल हुए लोगों को निकाल बाहर करती है, उस कांग्रेस को लालू प्रसाद यादव ने एक तरह से औकात दिखा दी है. खुद लालू प्रसाद यादव पहले अपने हाथों से मटन बनाकर राहुल गांधी को खिला चुके हैं. भारत जोड़ो यात्रा पर जब राहुल गांधी बिहार से गुजरे थे और तेजस्वी यादव उसमें शामिल हुए थे, तब वे ड्राइवर की भूमिका में थे. आज राहुल गांधी अलग थलग पड़ गए हैं. जबकि कांग्रेस दावा कर रही थी कि 2024 के लोकसभा चुनाव में वे मजबूत बनकर उभरे हैं और भाजपा को 240 सीटों पर रोकने के लिए धुरी बनकर खड़े रहे.
कांग्रेस के दावों के उलट 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दावों का बुलबुला अब फूटता नजर आ रहा है. यह सही है कि इंडिया ब्लॉक चुनाव में मोदी सरकार और भाजपा को चुनौती देता नजर आया पर लोकसभा में एनडीए के सीटों की संख्या अब भी 300 के आसपास हैं और मोदी सरकार उतनी निर्भीक होकर चल रही है, जैसे कि 2024 से पहले चल रही थी. इसका मतलब यह हुआ कि लोकसभा में कुछ सीटें कम होने से मोदी सरकार की रफ्तार पर कोई असर नहीं पड़ा. जबकि कांग्रेस चुनाव के बाद पीएम मोदी को हारा हुआ बता रही थी. वह खुद की 99 सीटों को भाजपा के 240 सीटों से ज्यादा मानकर चल रही थी. मीडिया में कांग्रेस प्रवक्ता ऐसे बात कर रहे थे, जैसे कांग्रेस ने कोई बड़ी जंग जीत ली है.
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लेकिन जैसे ही कांग्रेस हरियाणा और महाराष्ट्र हारी है, कांग्रेस के खुद का बनाया बुलबुला भी फूट गया और उसके दावों की धज्जियां भी उड़ गईं. उल्टे अब इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व छिनने की नौबत आन पड़ी हैं. तृणमूल कांग्रेस की ओर से सबसे पहले इसकी आवाज उठी और उसके बाद समाजवादी पार्टी, एनसीपी शरद पवार गुट, शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट और अरविंद केजरीवाल की पार्टी आदि ने इसका समर्थन कर दिया. रही सही कसर लालू प्रसाद यादव ने पूरा कर दिया, जब उन्होंने भी ममता बनर्जी के पक्ष में आवाज बुलंद कर दी. कांग्रेस इसे सहयोगी दलों के नेताओं की अपनी निजी राय बताकर इसकी गंभीरता को कम करना चाहती है पर लगता है वह अब ऐसा कर ही नहीं पाएगी. अब कांग्रेस के सामने इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व छोड़ने के सिवा कोई रास्ता बचा ही नहीं है.