Mulayam Singh Yadav: प्रधानमंत्री बनने से कैसे चूके थे मुलायम सिंह, क्या लालू यादव थे वजह?
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Mulayam Singh Yadav: प्रधानमंत्री बनने से कैसे चूके थे मुलायम सिंह, क्या लालू यादव थे वजह?

Mulayam Singh Yadav: सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक कद बहुत बड़ा था. पक्ष और विपक्ष दोनों के नेता मुलायम सिंह के मुरीद थे. लेकिन उनके पीएम न बनने की कहानी बहुत दिलचस्प है.

लालू यादव और मुलायम सिंह. (पुरानी तस्वीर)

पटना: Mulayam Singh Yadav: उत्तर प्रदेश के चुनावों के दौरान हर बार एक नारा सुनाई देता है....

  1. 'नेताजी' के नाम से मशहूर थे मुलायम सिंह
    तीन बार रहे यूपी के सीएम

जिसका जलवा क़ायम है,
उसका नाम मुलायम है.

मुलायम सिंह की शख्सियत और उनकी धरतीपकड़ सियासत इस नारे को पूरी तरीके से चरितार्थ करती है. 22 नवंबर 1939 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई में जन्मे मुलायम सिंह ने सियासत की सीढ़ियां अपने दम पर तय की. डॉ राम मनोहर लोहिया को अपना नेता मानने वाले मुलायम सिंह यादव का जलवा वाकई पूरे उत्तर प्रदेश में पिछले 5 दशकों से कायम है. और इस जलवे की गवाही उत्तर प्रदेश के हर चुनाव में दिखाई देता है.

अखाड़े की कुश्ती से सीखा सियासत का दांव-पेंच
मुलायम सिंह को करीब से जानने वाले बताते हैं कि वे कार्यकर्ताओं का नाम नहीं भूलते, अक्सर जमीन से जुड़े मुद्दे उठाते हैं और अपनी ठेठ समाजवादी अंदाज से कभी विचलित नहीं होते. सियासत में आने से पहले अखाड़े की कुश्ती के पहलवान मुलायम सिंह यादव सियासत के अखाड़े में भी ज्यादातर दांव जीतकर ही निकले हैं.

50 सालों से मुलायम का जलवा कामय
मुलायम सिंह यादव के सियासी सफर पर गौर करें तो 9 बार विधानमंडल के सदस्य, 7 बार लोकसभा के सदस्य, 1 बार केंद्र में मंत्री और 3 बार वे उत्तर प्रदेश जैसे देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. ये उपलब्धि देखकर कोई भी कह सकता है कि वाकई देश के सबसे बड़े राज्य की राजनीति में पिछले 50 सालों से मुलायम सिंह यादव का जलवा कायम है.

कैसे पीएम बनने से चूके मुलायम?
मुलायम सिंह यादव की लंबी सियासी पारी और उनकी राजनीति से जुड़े कई किस्से हैं. आज हम उस कहानी का जिक्र करेंगे कि किस तरीके से जब बड़े-बड़े पदों पर रह चुके मुलायम सिंह यादव के पीएम बनने की बारी आई तो उनके ही सियासी साथी और बाद में समधी बनने वाले लालू प्रसाद ने रास्ता रोक दिया. आज हम सियासत के इस रोचक प्रसंग की हकीकत जानने की कोशिश करेंगे.

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13 दिन में गिरी सरकार
1996 में जब लोकसभा चुनाव हुआ तो उस वक्त देश में अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) का जलवा था. चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन बहुमत के आंकड़े से दूर रह गई. तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा ने अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने का न्योता दिया. वाजपेयी ने सरकार बनाई भी लेकिन बहुमत सिद्ध नहीं कर पाए. नतीजा 13 दिनों के भीतर सरकार गिर गई. इसके बाद जनता दल सहित कई दलों को मिलाकर संयुक्त मोर्चे का गठन हुआ. जिसे कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया और बहुमत का आंकड़ा पूरा हो गया.

वीपी सिंह ने क्यों किया इंकार?
जब बारी यूनाइटेड फ्रंट के नेता चुनने की आई तो वीपी सिंह (VP Singh) ने इनकार कर दिया, वे मंडल कमीशन के बाद उनके ऊपर पदलोलुपता का आरोप लगाने वालों को जवाब देना चाहते थे. दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु के नाम पर सीपीएम ने ही रोक लगा दी. ऐसा माना जाता है कि उस वक्त मोर्चे के नेताओं ने मुलायम सिंह को नेता चुनना चाहा. 

 

दीवार बन खड़े हो गए लालू
मुलायम सिंह यादव और उनकी पार्टी पूरी तरीके से तैयार भी थे. लेकिन ऐन मौके पर लालू यादव (Lalu Yadav) और शरद यादव ने अड़ंगा लगा दिया. माना जाता है कि वीपी सिंह भी मुलायम के नाम पर तैयार नहीं थे. बाद में मुलायम सिंह यादव ने बयान भी दिया कि वीपी सिंह, शरद यादव और लालू यादव ने उन्हें पीएम नहीं बनने दिया. 

लालू ने क्यों मुलायम को पीएम बनने का रोका?
लालू यादव के बारे में ये कहा गया कि वे अपने रहते किसी दूसरे यादव क्षत्रप को पीएम की कुर्सी पर देखना नहीं चाहते थे. और उस वक्त लालू यादव चारा घोटाला (Fodder Scam) मामले में जांच का सामना भी कर रहे थे. यही वजह है कि एचडी देवगौड़ा को प्रधानमंत्री चुना गया और मुलायम सिंह यादव के हाथ से प्रधानमंत्री की कुर्सी फिसल गई.

दूसरी बार भी चूके मुलायम
एक और मौका तब आया जब देवगौड़ा की बजाए किसी और को पीएम पद की कमान देने की बात शुरू हुई. मुलायम सिंह यादव फिर से दावेदार थे, और एक बार फिर लालू प्रसाद ने उनके नाम पर सहमति नहीं दी. इन दोनों घटनाओं का वर्णन सियासत को समझने वाले और जानने वाले अपने-अपने तरीके से करते हैं. मुलायम सिंह यादव और उनके सहयोगियों ने इस घटना का जिक्र कई बार सार्वजनिक तौर पर भी किया है.

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इस बारे में आरजेडी नेता जयंत जिज्ञासु ने बताया कि संयुक्त मोर्चा में नेता चुनने को लेकर जो बाते मीडिया में कही जाती हैं, दरअसल उस वक्त वैसा कुछ हुआ नहीं था. जयंत ने बताया कि हरकिशन सिंह सुरजीत और इंद्र कुमार गुजराल दोनों विद्यार्थी जीवन में लाहौर से ताल्लुक रखते थे और ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (AISF) के सदस्य थे. यही वजह है कि एक किस्म की सियासी प्रतिद्वंद्विता भी दोनों के बीच में थी. 

क्या सच में लालू ने रोका था?
जब देवगौड़ा का नाम पीएम पद के लिए चला तो दोनों नेता उनके नाम पर सहमत थे जिसे पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह और यूनाइटेड फ्रंट के कनवेनर चंद्र बाबू नायडू का भी समर्थन मिला था. हालांकि जनता दल के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव (Lalu Yadav) के समर्थन के बाद ये दावेदारी निर्णायक तौर पर मजबूत जरूर हुई थी. 

मुलायम सिंह में क्या बुराई है?
प्रधानमंत्री देवेगौड़ा और पार्टी अध्यक्ष लालू प्रसाद में जब मनमुटाव शुरू हुआ, और कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी भी अपने लिए संभावनाएं तलाशने लगे, तो दूसरी बार जब इंद्र कुमार गुजराल का नाम प्रधानमंत्री के तौर पर चलने लगा. उसी दौरान सीपीएम के जेनरल सेक्रेटरी हरकिशन सिंह सुरजीत ने बयान भर दिया था कि अगर गुजराल को ही बनाना है तो फिर मुलायम सिंह में क्या बुराई है?

पूरी 'लेफ्ट' मुलायम सिंह पर सहमत!
इसे ना तो उस वक्त सीपीएम का आधिकारिक बयान माना जा सकता है और ना ही पार्टी के पोलित ब्यूरो का फैसला. लेकिन इस बयान से ये मैसेज चला गया कि हरकिशन सिंह सुरजीत और पूरी 'लेफ्ट' मुलायम सिंह के नाम पर सहमत है, लेकिन ऐसा था नहीं. 

शरद यादव ने क्या कहा?
आरजेडी नेता जयंत जिज्ञासु इस मामले को एक सियासी गलतफहमी से ज्यादा कुछ नहीं मानते. जयंत ने बताया कि पूरे घटनाक्रम के बारे में विस्तार से उन्हें खुद शरद यादव ने बताया है, जो उस समय जनता दल के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. 

लालू की पहली पसंद गुजराल
जयंत कहते हैं कि उस दौर में केंद्र की राजनीति में एक योजक कड़ी के रूप में शरद यादव की बड़ी भूमिका हुआ करती थी, और वे एवं उस समय रेलमंत्री तथा लोकसभा में सदन के नेता रामविलास पासवान रूस से देशहित में करार करके तुरंत लौटे देवेगौड़ा को प्रधानमंत्री पद से हटाने के हिमायती नहीं थे. लेकिन, जिस तरह लालू प्रसाद, देवेगौड़ा और केसरी के बीच विवाद गहराता जा रहा था, वैसे में लालू प्रसाद की पहली पसंद तत्कालीन विदेश मंत्री गुजराल बने. लेकिन, कॉमरेड सुरजीत की फकत एक टिप्पणी ने आज तक अफवाह व गलतफहमियों का बाजार बनाकर रखा है.

लेकिन इस एक घटना के के बाद भी कई मंचों और मोर्चों पर लालू और मुलायम एक साथ नजर आए. साझा सोशलिस्ट विचारों वाली पार्टियों को एक करने की बात हो, यूपीए 2 सरकार द्वारा प्रस्तावित महिला आरक्षण विधेयक के प्रस्ताव का विरोध हो लालू और मुलायम एक सुर में बोले. बाद में लालू प्रसाद की छोटी बेटी की शादी भी मुलायम सिंह के परिवार में ही हुई. इसके बावजूद आज भी समाजवादी पार्टी से जुड़े कई बुद्धिजीवी भी ये मानते हैं कि लालू प्रसाद ने ही मुलायम सिंह को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया.

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