नीतीश पर विपक्षी एकता का जुनून इस कदर हावी कि JDU को होनेवाले नुकसान की भी चिंता नहीं!
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नीतीश पर विपक्षी एकता का जुनून इस कदर हावी कि JDU को होनेवाले नुकसान की भी चिंता नहीं!

बिहार के रास्ते भले ही केंद्र की सत्ता पर पहुंचने के रास्ते की तलाश में विपक्षी एकता की मुहिम शुरू की गई है लेकिन इसके परिणाम कैसे होंगे यह तो भविष्य ही बता पाएगा. अभी तो बिहार के दो नेता विपक्षी एकता कायम करने के लिए विपक्षी दलों की परिक्रमा पार्ट-2 के काम में लगे हुए हैं.

(फाइल फोटो)

Lok Sabha Election 2024: बिहार के रास्ते भले ही केंद्र की सत्ता पर पहुंचने के रास्ते की तलाश में विपक्षी एकता की मुहिम शुरू की गई है लेकिन इसके परिणाम कैसे होंगे यह तो भविष्य ही बता पाएगा. अभी तो बिहार के दो नेता विपक्षी एकता कायम करने के लिए विपक्षी दलों की परिक्रमा पार्ट-2 के काम में लगे हुए हैं. नीतीश कुमार को कांग्रेस की तरफ से विपक्ष को एकजुट करने का बीड़ा सौंपा गया है और राजद नेता तेजस्वी यादव और उनके पिता लालू प्रसाद यादव नीतीश के इस अभियान से खासे खुश हैं. राजनीति के जानकार मानते हैं कि इस खुशी के पीछे की एक वजह यह भी है कि नीतीश जब तक बिहार की सत्ता नहीं छोड़ेंगे तेजस्वी के सीएम बनने की राह आसान नहीं होगी. इस सब के बीच आपको बता दें कि जितनी खुशी जदयू के खेमे में कर्नाटक चुनाव के नतीजे के पहले दिख रही थी वह नतीजे आने के बाद कम और कम होती जा रही है. 

एक तरफ कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत ने उस पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल तो बढ़ाया ही है, पार्टी के लिए इस चुनाव के नतीजे संजीवनी की तरह हो गए हैं. दूसरी तरफ कांग्रेस अपनी अगुवाई में 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को केंद्र की सत्ता से बेदखल करने के लिए क्षेत्रीय पार्टियों को एक मंच पर लाने की कोशिश कर रहे नीतीश के साथ खड़ी दिख रही है. अब राजनीति के जानकारों की मानें तो कांग्रेस की कर्नाटक में प्रचंड जीत के बाद भाजपा को खतरा होगा या नहीं यह तो आने वाला समय बताएगा लेकिन क्षेत्रीय दलों के लिए खतरे की घंटी जरूर बज गई है. मतलब साफ है कि क्षेत्रीय दलों के लिए कांग्रेस की कर्नाटक में प्रचंड जीत आनेवाले खतरे का संकेत बनकर आई है. 

इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह देखिए कर्नाटक की क्षेत्रीय पार्टी जेडीएस का हाल इस चुनाव में जो हुआ है वह किसी राजनीतिक पंडित के गले भी नहीं उतर रहा है. कर्नाटक के एक खास समुदाय और खास सीटों पर अपनी दबदबा रखनेवाली जेडीएस को लेकर अनुमान लगाया जा रहा था कि वह यहां की 30-35 सीटों पर तो जीत हासिल कर ही लेकिन जेडीए 19 सीटों पर सिमट गई. एक समय में कांग्रेस के वोट बैंक में सैंध लगाकर अपने आप को मजबूत बनाने वाली जेडीएस के वोट का फिर से कांग्रेस की तरफ खिसकना ही उसकी इस स्थिति की वजह बनी है. 

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अब अन्य राज्यों की हालत पर गौर कीजिए, बिहार हो या पश्चिम बंगाल, केरल हो या उत्तर प्रदेश एक समय में कांग्रेस के गढ़ रहे इन राज्यों में क्षेत्रीय दलों ने उसी के वोट बैंक में सेंध लगाकर अपने लिए जमीन तैयार की अब वह क्षेत्रीय दल अभी तक कांग्रेस को सलाह दे रहे थे कि जिन सीटों पर कांग्रेस मजबूत है वह वहीं चुनाव लड़े. मतलब साफ था कि क्षेत्रीय दल कांग्रेस को अपने राज्यों में फिर से जिंदा होने देने से डर रही थीं लेकिन कांग्रेस की कर्नाटक में मिली प्रचंड जीत के बाद वह क्षेत्रीय दलों की इस मांग को मानने के लिए बाध्य नहीं रह गई है.  

जेडीयू को भी यही डर बिहार में सता रहा है. हालांकि बिहार में जदयू के साथ ही राजद को भी कांग्रेस के फिर से जिंदा होने से होनेवाले खतरे का अंदाजा लग गया है. कर्नाटक में जेडीएस की ताकत वोक्कालिगा और मुस्लिम गठजोड़ था उसपर जिस तरह से कांग्रेस ने प्रहार किया है वही सबको डराने लगा है क्योंकि यहां भाजपा के वोट प्रतिशत में ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ है. ऐसे में कांग्रेस का यही नई वोट बैंक वाला गणित अब बिहार में जदयू को डराने लगा है. ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार इसे समझ नहीं रहे हैं. नीतीश जानते हैं कि बिहार में कांग्रेस मजबूत हुई तो जहां राजद का यादव मुस्लिम वोट बैंक टूटकर कांग्रेस के साथ चला जाएगा. वहीं उनके हिस्से में बचे कुर्मी कुशवाहा वोट बैंक के भी कांग्रेस के साथ पूरी तरह शिफ्ट होने की संभावना है. वह यह भी समझते हैं कि उनकी पार्टी का वोट बैंक पहले से ही बिखर चुका है अब ऐसे में इसे संभालना उनके लिए ज्यादा मुश्किल होगा. फिर भी नीतीश कुमार पर विपक्षी एकता का जुनून इस कदर हावी हो गया है कि वह अपनी पार्टी को हेनेवाले नुकसान की भी चिंता नहीं कर रहे हैं. 

 

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