हिंदू धर्म के बारे में क्या सोचते थे बाबासाहेब, क्यों अपनाया बौद्ध धर्म ?
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हिंदू धर्म के बारे में क्या सोचते थे बाबासाहेब, क्यों अपनाया बौद्ध धर्म ?

14 अप्रैल को पूरा देश संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती मनाएगा. ऐसे में अंबेडकर के सिद्धांतों के बिना भारतीय संविधान की कल्पना बेमानी सी लगती है.

(फाइल फोटो)

BR Ambedkar jayanti: 14 अप्रैल को पूरा देश संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती मनाएगा. ऐसे में अंबेडकर के सिद्धांतों के बिना भारतीय संविधान की कल्पना बेमानी सी लगती है. आपको बता दें कि बाब साहेब हिंदू धर्म के साथ लंबे समय तक जुड़े रहे लेकिन एक समय के बाद उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया, ऐसा करने के पीछे बाबा साहेब के कई तर्क थे. आपको बता दें कि बाबा साहेब ने तमाम धर्मों के होते हुए भी बौद्ध धर्म ही आखिर क्यों कुबूल किया. इसके पीछे की भी वजह थी. 

बाबा साहेब ने यूं ही बौद्ध धर्म नहीं स्वीकार कर लिया था बल्कि उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने लंबे समय तक सभी धर्म के ग्रंथों का गहन अध्ययन किया और फिर इस नतीजे पर वह पहुंचे. बाबा साहेब को बौद्ध धर्म की तीन बातें बेहद पसंद आईं. वह बौद्ध धर्म के अंधविश्वास और अतिप्रकृतिवाद की जगह अपने दिमाग के प्रयोग के सिद्धांत से काफी प्रभावित थे इसके साथ ही उनको करुणा और समानता के सिद्धांत ने भी खूब प्रभावित किया जिसकी वह तलाश कर रहे थे. 

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 14 अक्टूबर 1956 को बाबा साहेब ने बौद्ध धर्म को अंगीकार करने की घोषणा की. इसके पीछे की वजह थी कि वह मूर्ति पूजा या कहें कि देवी-देवताओं की पूजा से दूर मानवता की पूजा के सिद्धांत को सोच रहे थे. वह समाज में गैर-बराबरी के सिद्धांत को साथ लेकर चलने को राजी नहीं थे और साथ ही वह एक मुक्त मनुष्य की कल्पना कर रहे थे जो इन चीजों को गैर-बराबरी के सिद्धांत को बाजिव ना माने. 

अंबेडकर हमेशा मानते थे कि वह जिस धर्म में पैदा हुए हैं उस धर्म में वह अपनी अंतिम सांस नहीं लेगें. उनकी हिंदू धर्म में समानता लाने की तमाम कोशिश नाकामयाब रही थी जिससे उन्हें आघात लगा था. ऐसे में 1956 में जब 14 अक्टूबर को उन्होंने बौद्ध दर्म कबूल किया तो उनके पास और भी कई धर्म को कबूलने का मौका था लेकिन उन्होंने पहले सभी धर्मों के बारे में पर्याप्त जानकारी ली और फिर बौद्ध धर्म कबूल किया. बता दें कि उनकी इस घोषणा के साथ तब ईसाई मिशनरियों और कई इस्लामिक संगठनों के द्वारा खूब पैसे पाने का ऑफर भी मिला ताकि वह इनमें से कोई धर्म कबूल कर लें. 

बाबासाहेब को हमेशा से ही लगता था कि दलितों को सदियों से समाज में अलग-थलग रहना पड़ रहा है. तब का सामाजिक ताना-बाना भी ऐसा था कि इसमें यह हर जगह भरा पड़ा था. ऐसे में अंबेडकर इस धर्म को त्याग देना चाहते थे.ऐसे में 1956 में जब उन्होंने हिंदू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर् को अपनाया तो तो उन्होंने हिंदू धर्म के 22 ऐसे कामों से अपने आप को अलग किया जो उन्हें शुरू से ही पसंद नहीं थे. इसमें अंधविश्वास, श्राद्ध-तर्पण, पिंडदान जैसी चीजों से वह दूर होना चाहते थे. 

जब अंबेडकर ने हिंदू धर्म को छोड़ने की बात की थी तो उसके बीस साल तक वह किसी भी धर्म से नहीं जुड़े. फिर अपने लगभग 4 लाख समर्थकों के साथ उन्होंने एक दिन बौद्ध दर्म स्वीकार कर लिया. 1935 के एक भाषण में भी उन्होंने कहा था कि अगर आपको अपनी मदद करनी है तो यह आपको खुद करना होगा ऐसे में पहले धर्म बदलिए. तब उनके इश सिद्धांत पर कई नेता विरोधी भी बने लेकिन उन्होंने कहा था कि जो शोषित लोग हैं उनके लिए धर्म चुनाव का विषय हो ना कि नियति का.  

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