Kargil Martyrs: भारतीय सेना की प्रतिष्ठित बिहार रेजिमेंट के शहीद मेजर मरियप्पन सरवनन, एक ऐसा नाम जो भारतीय इतिहास के पन्नों में एक बहादुर योद्धा के रूप में दर्ज हो गया है, जो अपनी आखिरी सांस तक लड़ते रहे. दुश्मन सेना के जवान गोलियां बरसाते रहे, वह आगे बढ़ते रहे और उनको यमलोक पहुंचाते रहे.
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साबिर जफर की ये लाइन आज भी देश की फिजा में गुंजती है. ये कहती है कि एक जवान ऐसा था जिसके निशान आज भी जिंदा हैं. जिसने किसी भी बात की परवाह नहीं और बस अपने तिरंगे को दुश्मन की जमीन पर गाड़ा, विजय का पताका फहराया और विजय हाासिल की. जी हां, हम बात कर रहे हैं कि कारगिल युद्ध के जाबाज योद्धा मेजर मरियप्पन सरवनन, जिन पर दुश्मन सेना की गोलियां की बौछार होती रही और वह आगे बढ़ता. आज इस ऑर्टिकल में हम इस जवान की कहानी को जानेंगे.
आज से करीब 24 साल पहले सरहद पर छिड़ा था. साल 1999 में मई-जुलाई के महीने में कारगिल पर युद्ध हो रहा था. सरहद के उस पार से गोलियां चल रही थी, तोप के गोले बरसाए जाए रहे थे. भारतीय सैनिक पाकिस्तानी गोलियां और तोपों के गोलों का मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे. दरअसल, जब कारगिल युद्ध छिड़ा तब बिहार रेजिमेंट असम में था. तब उन्हें जम्मू-कश्मीर के कारगिल में जाने का आदेश दिया गया. 28 मई 1999 की रात को मेजर सरवनन को बटालिक सेक्टर में 14,229 फीट (4,337 मीटर) पर एक अच्छी तरह से किलेबंद पाकिस्तानी स्थान पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था.
मेजर सरवनन ने गोलियों की बौछार का सामना करते हुए दुश्मन के स्थान पर एक रॉकेट लांचर दागा था, जिसमें 2 दुश्मन सैनिक मारे गए थे. इस दौरान उन्हें छर्रे लगे और वह गंभीर रुप से जख्मी हो गए थे. मगर, सरवनन ने लड़ाई जारी रखी. मेजर सरवनन के कमांडिंग ऑफिसर ने उन्हें पीछे हटने का आदेश दिया, क्योंकि बहुत से भारतीय सैनिक घायल हो गए थे.
मेजर मरियप्पन सरवनन कारगिल युद्ध में बटालिक की चोटियों की रक्षा करने के लिए शहीद हो गए थे. उनका शरीर एक महीने से अधिक वक्त तक नो मैन्स लैंड में बर्फ में फंसा रहा था. हर बार जब भारतीय सैनिकों ने उसके शरीर को लाने की कोशिश करते, तो पाकिस्तानी सैनिका गोलियां चला देते. हालांकि, जब पाकिस्तानी सैनिक मेजर सरवनन के पार्थिव शरीर को हड़पना चाहा तो भारतीय जवानों ने गोलियां चला दी. सरवनन का शव शहीद होने के 41 दिन बाद बरामद किया गया था.
मेजर मरिअप्पन सरवनन का जन्म 10 अगस्त, 1972 को हुआ था. वह 29 मई 1999 को सरहद की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे. वह भारतीय सेना की बिहार रेजिमेंट के एक अधिकारी थे. मेजर सरवनन ने 10 मार्च 1999 को सेना में 4 साल पूरे किए थे. मेजर मरिअप्पन सरवनन को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया था.