यूपी में जो खौफ अतीक का था, बिहार में शहाबुद्दीन का उससे कम नहीं था, जानें कैसे खड़ा किया था दहशत का साम्राज्य
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यूपी में जो खौफ अतीक का था, बिहार में शहाबुद्दीन का उससे कम नहीं था, जानें कैसे खड़ा किया था दहशत का साम्राज्य

सीवान में तो मोहम्मद शहाबुद्दीन का खौफ पहले से था लेकिन सत्ताधारी पार्टी से जुड़ने के बाद शहाबुद्दीन की ताकत में दिन दूना रात चैगुना इजाफा होना शुरू हो गया. लालू प्रसाद यादव के आशीर्वाद से शहाबुद्दीन की ताकत में लगातार बढ़ोतरी हो रही थी.

यूपी में जो खौफ अतीक का था, बिहार में शहाबुद्दीन का उससे कम नहीं था, जानें कैसे खड़ा किया था दहशत का साम्राज्य

पटना: अतीक अहमद के माफिया राज का खात्मा हो चुका है और कई लोगों को मिट्टी में मिलाने वाला अब खुद मिट्टी में मिल चुका है. लोगों को बेमौत मारने वाला खुद बेमौत मारा गया. 40 साल का आपराधिक साम्राज्य 40 मिनटों में धराशायी हो गया. पूरा कुनबा कानून की किसी न किसी धाराओं में पुलिस की फाइलों में दर्ज हैं. पत्नी फरार है तो दो नाबालिग बेटे बाल सुधार गृह में दिन काट रहे हैं. भाई अशरफ भी अतीक की तरह मिट्टी में मिल चुका है. असद का पहले ही एनकाउंटर हो गया है. अतीक-अशरफ की हत्या के दो दिन बाद आज सोमवार को बिहार की राजनीति में अतीक अहमद की जोर से चर्चा हो रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव, राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने अतीक अहमद की हत्या के बहाने यूपी की योगी सरकार पर जबर्दस्त तरीके से वार किया. अब बिहार की बात हो ही रही है तो जान लेते हैं कि अतीक अहमद की तरह बिहार में शहाबुद्दीन का सिक्का चलता था.  शहाबुद्दीन ने खुद के दम पर बिहार में दहशत का बड़ा कारोबार खड़ा किया और अतीक की ही तरह राजनीति में एंट्री हो गई. जिस तरह बिहार में समाजवादी पार्टी ने अतीक अहमद को राजनीति में खड़ा किया, राजद ने बिहार में उसी तरह शहाबुद्दीन को खड़ा किया. खैर, आज अब दोनों नहीं हैं- न शहाबुद्दीन और न ही अतीक. आइए जानते हैं शहाबुद्दीन का खौफ बिहार में किस दर्जे तक सिर चढ़कर बोलता था. 

19 साल की उम्र में दर्ज हुआ था पहला केस 

शहाबुद्दीन का जन्म 10 मई 1967 को सीवान के प्रतापपुर में हुआ था. स्कूल की पढ़ाई के बाद शहाबुद्दीन ने राजनीति विज्ञान में स्नातक किया था. कॉलेज के दिनों से ही शहाबुद्दीन का झुकाव अपराध की दुनिया से जुड़ गया था. 1986 में 19 साल की उम्र में शहाबुद्दीन पर पहला केस दर्ज किया गया था. इसके बाद शहाबुद्दीन ने एक के बाद एक कई खूंखार वारदातों को अंजाम दिया. 

अपराध के साथ राजनीति में आगे बढ़ा 

शहाबुद्दीन के अपराध का आंकड़ा बढ़ा तो उसने राजनीति में कदम रख दिया. 1985 में पहली बार जिरदोही से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत गया. इसके बाद शहाबुद्दीन अपराध के साथ साथ राजनीति में भी आगे बढ़ता गया. सीवान का यह डाॅन पूरे बिहार में अपनी जड़ें जमाने लगा. जब बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार बनी तो शहाबुद्दीन उनके करीब आ गया और फिर तो उसकी तूती पूरे बिहार में बोलने लगी. 

लालू के समय में शहाबुद्दीन काफी आगे बढ़ा 

लालू प्रसाद यादव को बिहार में दबदबा बढ़ाने के लिए एक दबंग की जरूरत थी और दूसरी ओर शहाबुद्दीन को एक बड़े नेता के हाथ की जरूरत थी. दोनों ने एक दूसरे की जरूरतें पूरी कीं और 1991 के लोकसभा चुनाव में जनता दल को भारी जीत हासिल हुई. चुनाव में शहाबुद्दीन ने अपने बाहुबल का पूरा इस्तेमाल लालू प्रसाद यादव की पार्टी के लिए किया और मुस्लिम वोटर्स को जनता दल की ओर लुभाने में भी अहम भूमिका निभाई. बिहार में जनता दल की सरकार चलती थी तो सीवान में शहाबुद्दीन की अपनी सरकार चलती थी. 

शहाबुद्दीन की ताकत बढ़ती चली गई

सीवान में तो मोहम्मद शहाबुद्दीन का खौफ पहले से था लेकिन सत्ताधारी पार्टी से जुड़ने के बाद शहाबुद्दीन की ताकत में दिन दूना रात चैगुना इजाफा होना शुरू हो गया. लालू प्रसाद यादव के आशीर्वाद से शहाबुद्दीन की ताकत में लगातार बढ़ोतरी हो रही थी. शहाबुद्दीन के किए पर पुलिस और प्रशासन ने आंखें मूंद रखी थी. सीवार में शहाबुद्दीन अपनी अलग सरकार चलाता था. चाहे लोगों के झगड़े निपटाने हों या फिर जमीन का बंटवारा करना हो, लोग पुलिस और कचहरी से ज्यादा शहाबुद्दीन के दरबार में हाजिरी लगाते थे. बता दें कि सीवान में शहाबुद्दीन को साहेब कहकर संबोधित किया जाता था. 

फिर साबित हो गया कानून के हाथ लंबे होते हैं 

अतीक अहमद की तरह शहाबुद्दीन ने राजनीति को अपने क्राइम के बढ़ते साम्राज्य के लिए इस्तेमाल किया. शहाबुद्दीन 1995 में जनता दल से विधायक बना. 1996 में शहाबुद्दीन को लोकसभा चुनाव में टिकट दे दिया गया. फिर क्या था. सीवान का साहेब अब संसद पहुंच गया था. 1997 में राजद की सरकार बनी तो शहाबुद्दीन का कद और बढ़ गया था. 1999 में वामपंथी नेता छोटे शुक्ला को अपहरण के बाद मार गिराया गया, जिसका आरोप शहाबुद्दीन पर लगा लेकिन पुलिस ने उसके गिरेबां तक छूने की हिम्मत नहीं की. हालांकि इस मामले में बाद में शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. 

अस्पताल को बना दिया था अपना चुनाव कार्यालय 

2004 के लोकसभा चुनाव के कुछ महीने पहले कोर्ट के आदेश पर शहाबुद्दीन को पकड़ा गया और सीवान जेल में रखा गया था. फिर भी उसकी राजनीति वैसे ही चलती रही थी. कुछ दिनों बाद शहाबुद्दीन ने मेडिकल के नाम पर खुद को अस्पताल में भर्ती करवा लिया और वहीं से चुनाव लड़ा. उस समय अस्पताल का पूरा वार्ड शहाबुद्दीन को दे दिया गया था और वह अपने नेताओं से वहीं मिलता और रणनीति बनाता. वार्ड में चप्पे चप्पे पर सुरक्षा व्यवस्था मुस्तैद थी. वह अस्पताल कम शहाबुद्दीन का कार्यालय अधिक दिखता था. हालांकि चुनाव के बाद कोर्ट के आदेश पर शहाबुद्दीन को फिर से जेल जाना पड़ा था. 

2004 में 500 बूथ लूटने का आरोप 

2004 के लोकसभा चुनाव में शहाबुद्दीन पर 500 से अधिक बूथ लूटने के आरोप लगाए गए तो फिर से चुनाव करवाया गया. जेडीयू के ओमप्रकाश श्रीवास्तव ने शहाबुद्दीन को कड़ी टक्कर दी पर जीत नहीं पाए. चुनाव बाद तो क्षेत्र में शहाबुद्दीन ने कहर बरपा दिया. जेडीयू के कई कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई. हालांकि यही वो समय था जब शहाबुद्दीन के बुरे दौर की शुरुआत हो गई थी. 

सीवान का मशहूर तेजाब कांड 

2004 में शहाबुद्दीन ने एक ऐसी घटना को अंजाम दिया, जिससे बिहार ही नहीं पूरे देश के लोग सिहर गए थे. एक दुकानदार चंदा बाबू के तीन बेटों गिरीश, सतीश और राजीव को बदमाशों ने किडनैप कर लिया और फिर गिरीश और सतीश पर तेजाब डालकर उनकी हत्या कर दी गई. इस केस का आरोप भी शहाबुद्दीन पर लगा और सालों साल तक केस चलने के बाद 2015 में केस के चश्मदीद गवाह राजीव की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई. 

पाकिस्तानी हथियार बरामद हुए थे पुश्तैनी घर से 

शहाबुद्दीन के खिलाफ एक के बाद एक मामलों में सजा सुनाई जाने लगी. एक बार बिहार पुलिस शहाबुद्दीन के पुश्तैनी मकान में रेड डालने पहुंची तो वहां से कई पाकिस्तानी हथियार, एके 47, के नाइट विजन डिवाइस बरामद हुए. इससे पूरे देश में सनसनी मच गई थी. 2005 में शहाबुद्दीन जब संसद सत्र में हिस्सा लेने दिल्ली गए तो बिहार पुलिस ने उसे वहीं से दबोच लिया. शुक्ला 
हत्याकांड में कोर्ट ने शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. 

पत्नी को उतारा चुनाव में पर मिली हार 

2009 में कोर्ट ने शहाबुद्दीन के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी तो उसने अपनी पत्नी हिना शहाब को चुनाव मैदान में उतार दिया. लेकिन शहाबुद्दीन का रसूख कम होने लगा था और हिना को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था. 2014 में भी हिना शहाब को हार नसीब हुई. इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने शहाबुद्दीन की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी और उसे दिल्ली के तिहाड़ तेज में शिफ्ट कर दिया गया. 

माफिया डॉन पर कोरोना पड़ा भारी 

कोरोना के समय मोहम्मद शहाबुद्दीन तिहाड़ जेल में था और उसकी तबीयत काफी बिगड़ गई थी. उसे प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन वहां उसकी मौत हो गई. इस तरह बिहार के इस खतरनाक बाहुबली का अंत कोरोना ने कर डाला. इस बात में कोई शक नहीं होना चाहिए कि अब तक बिहार में शहाबुद्दीन जैसे कोई माफिया डॉन पैदा नहीं हुआ. अतीक अहमद का जो रसूख यूपी में माना जाता था, वहीं शहाबुद्दीन का बिहार में रहा. ये अलग बात है कि सत्ता बदलने के साथ ही दोनों की जड़ें कमजोर होनी शुरू हो गई.

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