जानें बिहार में कहां होती है मां शक्ति के दो स्वरूपों की एक साथ पूजा, महाभारत काल से जुड़ी है कहानी
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जानें बिहार में कहां होती है मां शक्ति के दो स्वरूपों की एक साथ पूजा, महाभारत काल से जुड़ी है कहानी

बिहार के आरा में स्थित शक्ति पीठ मां आरण्य देवी की धूम पुरे जनपद में है. मां शक्ति की उपासना के त्योहार दुर्गापूजा के पहले दिन से ही मां के दर्शन को हजारों लोग मंदिर में पहुंच रहे हैं.

(फाइल फोटो)

आरा : बिहार के आरा में स्थित शक्ति पीठ मां आरण्य देवी की धूम पुरे जनपद में है. मां शक्ति की उपासना के त्योहार दुर्गापूजा के पहले दिन से ही मां के दर्शन को हजारों लोग मंदिर में पहुंच रहे हैं. हर कोई अपनी मनोकामना पूरी करने की गुहार मां से लगा रहे हैं. 

आरण्य देवी और किला देवी के नाम से विख्यात है मां शक्ति 
भारत की धरती प्राचीन काल से ही मां शक्ति की पूजा का प्रधान केंद्र रहा है और शक्ति की उपासना यहां सबसे ज्यादा की जाती है. ऐसे में भोजपुर जिला अंतर्गत आरा जनपद में श्री आरण्य देवी की पूजा और अर्चना भी लोग भक्तिभाव से करते रहे हैं. आरण्य देवी किला की देवी के नाम से भी प्रचलित हैं. पूरे भारत में इनकी ख्याति है. प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां मां के दर्शन के लिए आते हैं. वहीं अब दुर्गापूजा के मौके पर चारों तरफ माता के जयघोष से आरा भक्तिमय हो गया है. वहीं आरण्या देवी मंदिर के आस पास सजी हुई दुकान काफी मनोरम लग रही है. 

शोध संगम क्षेत्र के नाम से जाना जाता आरा 
शाक्त संप्रदाय में शक्ति-पीठों का बहुत महत्व है. भारतवर्ष में 51 शक्ति पीठ हैं जिसमें श्री आरण्य देवी भी एक शक्ति पीठ है. बिहार में चार स्थानों पर माता सती के शरीर के एक-एक टुकड़े गिरे थे. जिन्हें शक्ति पीठ कहा जाता है. उन्हीं शक्ति पीठों में आरा की आरण्य देवी हैं. आरा को शोध संगम क्षेत्र के नाम से जाना जाता था और यहां पर सति का दाहिना जांघ गिरा था. इस शोध संगम स्थान का नाम कई ग्रंथों में मिलता है. यहां गंगा और सोन के संगम का भी वर्णन ग्रंथों में किया गया है. गंगा और सोन के संगम के किनार पर आरण्य वन था. आज भी भोजपुर जिला अंतर्गत आरा नगर के 10 किलोमीटर पूरब में कोइलवर प्रखंड के बिंद्रा ग्राम के पास गंगा सोन का संगम वर्तमान में भी है. 

राजा मयूर ध्वज की राजधानी थी आरा 
बता दें कि द्वापर युग में इसी आरण्य वन में राजा मयूर ध्वज की राजधानी थी, जो रतनपुरा के नाम से पुरानो में वर्णित है. राजा का विशाल किला यहां था. जहां वर्तमान में आरा नगर स्थित है. किले के मध्य में भगवती का मंदिर थी. आरण्य वन में रहने एवं किले के बीच मंदिर होने के कारण यह आरण्य देवी तथा किला की देवी के नाम से प्रचलित हुईं. वर्तमान आरा नगर के उत्तर दिशा के बीच बाजार में आरण्य देवी का मंदिर है. मंदिर के उत्तर थोड़ी ही दूरी पर गंगी नामक नदी है. प्रारंभ से ही जगदम्बा इस मंदिर में अपने दो रूपों में विराजमान हैं. एक महालक्ष्मी एवं एक महासरस्वती. जगदम्बा छोटी प्रतिमा तथा बड़ी प्रतिमा महासरस्वती के रूप में विराजमान हैं. 

प्रभु श्री राम ने भी की थी यहां मां की पूजा 
ऐसी किवदंति है की त्रेता काल में महर्षि विश्वामित्र के साथ श्री राम, लक्ष्मण जनकपुर जा रहे थे तो इसी आरण्य वन से होकर गए थे और प्रभु श्री राम ने मां आरण्य देवी का पूजन किया था. यहां मां की प्रतिमा काले पत्थर की है. कला की दृष्टि से भी देखा कए तो यह प्रतिमा पाषाण युग की प्रतित होती है. इस मंदिर में मां के दोनों रूपों की उपासना होती है. जिससे घर-परिवार में सदा लक्ष्मी और सरस्वती का वास होता है. 

कैसे हुआ आरा नगर का नामकरण 
यह क्षेत्र आरण्य वन था. यहां राजा मयूरध्वज राज करते थे. उनके किले के मध्य में आरण्य देवी का विशाल मंदिर था. राजा देवी के परम भक्त थे. राजा मयूरध्वज पर मां आरण्य देवी की कृपा थी. मां के आशीर्वाद से वह दानवीर राजा कहे जाते थे. भगवान कृष्ण ने स्वयं राजा से मां के भूखे शेर को खाने के नाम पर उनके बेटे का बलि चढ़ाने को कहा. राजा मयूरध्वज अपने बेटे की बलि मां के चरणों में चढ़ाने लगे लेकिन मा के आशीर्वाद से उसका बेटा पुनः जीवित हो गया. ऐसे में भगवान कृष्ण ने स्वयं इस रतनपुरा के नाम से जाने-जाने वाले नगर का नाम आरा रख दिया. तब से यह नगर आरा नाम से जाना जाने लगा. इस नगर का शिलान्यास स्वयं भगवान कृष्ण ने किया था. 
(रिपोर्ट- मनीष कुमार सिंह)

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