विशेष राज्य का दर्जा: मौका-मौका के चक्कर में कब तक तड़पता रहे बिहार?
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विशेष राज्य का दर्जा: मौका-मौका के चक्कर में कब तक तड़पता रहे बिहार?

बिहार की बीमारी के लिए विशेष राज्य का दर्जा एक फौरी उपाय है. क्या उस मूल कारण को ही खत्म नहीं किया जा सकता जिसके कारण वर्षों से बिहार केंद्र के सामने हाथ फैला रहा है?

(फाइल फोटो)

पटना: नीतीश कुमार ने एक बार फिर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की पैरवी की है. सवाल ये है कि जब नीतीश केंद्र में बैठी बीजेपी के साथ थे, तब विशेष राज्य का दर्जा नहीं दे पाए तो अब जब वो उससे अलग हो चुके हैं तो ये मांग कैसे पूरी होगी? दूसरा सवाल ये है कि आखिर ये दर्जा क्यों मिलना चाहिए? क्या फायदा होगा? 

बिहार को दर्जा नहीं, धोखा मिला
सबसे पहले तो ये बता दूं कि ये मांग बहुत पुरानी है. बिहार विधानसभा में दो बार इस संबंध में प्रस्ताव पास किया गया है. लेकिन केंद्र ने अब तक ये बात नहीं मानी है. बिहार के लिए घड़ियाली आंसू बहाने वाले दिल्ली से बिहार तक के नेताओं ने बिहार को ये दर्जा नहीं, धोखा ही दिया है. 

किसे मिलता है विशेष राज्य का दर्जा
पहले विशेष राज्य का दर्जा उन्हें मिलता था जो पहाड़ी राज्य हैं, जहां आना जाना कठिन है, जहां की आबादी कम हो, आदिवासी इलाका हो, अंतर्राष्ट्रीय सीमा जिस राज्य से मिलती हो. जहां आमदनी और प्रति व्यक्ति आय कम हो. इन्हीं आधारों पर अरुणाचल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा, हिमाचल और उत्तराखंड को ये दर्जा मिला हुआ है. 

किन राज्यों को नहीं मिला दर्जा?
1969 में असम, नगालैंड और जम्मू-कश्मीर को भी केंद्र ने विशेष राज्य का दर्जा दिया. लेकिन इसके बाद 14वें वित्त आयोग ने सिफारिश की कि अब सिर्फ नॉर्थ ईस्ट और पहाड़ी राज्यों को ही ये दर्जा मिलना चाहिए. इसीलिए आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान और गोवा की मांग के बाद भी उन्हें ये दर्जा नहीं दिया गया. लेकिन बिहार का मामला जरा अलग है. 

बिहारी की सालाना आय 4 हजार
अव्वल तो जिन राज्यों को ये दर्जा मिला हुआ है बिहार की प्रति व्यक्ति आय उनसे काफी सबसे कम है. यहां प्रति व्यक्ति आय 50,555 रुपये है जबकि राष्ट्रीय औसत 86,659 रुपये है. अगर इसे आसान भाषा में समझें तो एक औसत बिहारी की सालाना आमदनी सिर्फ 4 हजार रुपये है. यानी उसे इतने ही रुपये में शिक्षा, सेहत, खाने-पीने और बाकी चीजों की व्यवस्था करनी है. 

आप समझ सकते हैं कि ये कितना नामुमकिन है. ऊपर से यहां आबादी का घनत्व ज्यादा है. इंटरनेशनल सीमा मिलती है. झारखंड के अलग होने के बाद संसाधन वहां रह गए. चूंकि बिहार में इंडस्ट्री नहीं के बराबर हैं तो इसे उपभोक्ता राज्य माना जाता है तो ऐसे में आमदनी का जरिया बचता है टैक्स. लेकिन GST लागू होने के बाद ये जरिया भी जाता रहा. 

52 फीसदी आबादी गरीब
अब बिहार में कलेक्ट होने वाले टैक्स के लिए भी बिहार केंद्र के सामने मोहताज है. यहां बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं लगातार आती हैं. खुद केंद्र के नीति आयोग के मुताबिक बिहार सबसे गरीब राज्य है. यहां की 52 फीसदी आबादी गरीब है. 

बिहार की गरीबी कैसे दूर होगी? 
लेकिन विशेष राज्य का दर्जा मिलने से बिहार की गरीबी कैसे दूर होगी? तो ये समझना जरूरी है कि जिन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है उन्हें केंद्र से मिलने वाली अनुदान राशि बढ़ जाती. जो राशि मिलती है उसमें से 90 फीसदी अनुदान होता है और बाकी 10 परसेंट कर्ज वो भी कर मुक्त. कर में छूट मिलेगी तो यहां निवेश बढ़ेगा और निवेश बढ़ने से रोजगार मिलेगा. अभी ये दर्जा न होने से बिहार को केंद्र से मिलने वाले अनुदान का 30% कर्ज होता है. 

सत्ता में थे क्यों नहीं किया?
जाहिर है बिहार को विशेष दर्जे की सख्त जरूरत है. नीतीश कुमार कह रहे हैं कि मौका मिला तो बिहार ही नहीं सभी पिछड़े राज्यों को विशेष दर्जा दिलवाएंगे. साफ है वो इशारा कर रहे हैं कि अगर केंद्र में वो या उनका गठबंधन सत्ता में आता है तो ये काम करेंगे. फिर एक आम बिहारी के मन में सवाल उठता है कि अभी छह महीने पहले आप केंद्र में ही तो थे, तब क्यों नहीं किया ये काम. अब कह रहे हैं कि मौका मिलेगा तो करेंगे, लेकिन मौका नहीं मिला तो? इस मौका-मौका के चक्कर में बिहार कब तक तड़पता रहे?

हकीकत ये है कि बिहार की बीमारी के लिए विशेष राज्य का दर्जा एक फौरी उपाय है. क्या उस मूल कारण को ही खत्म नहीं किया जा सकता जिसके कारण वर्षों से बिहार केंद्र के सामने हाथ फैला रहा है? 

याद रखिए जो नीति आयोग बिहार को सबसे गरीब बताता है उसी की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड गरीबी के मामले में नंबर दो पर है. वही झारखंड जिसके अलग होने की वजह से बिहार स्पेशल पैकेज मांगता है. यानी जिस राज्य से संसाधन छिन गया वो भी गरीब है, और जिसके पास संसधान रह गया, वो भी गरीब है. 

समस्या संसाधनों में नहीं, सियासत की नीयत में है
जाहिर है समस्या संसाधनों में नहीं, सियासत की नीयत में है. अगर इस नीयत को ठीक नहीं करेंगे तो बिहारी बिहार में गरीब रहेंगे. गरीबी से लड़ने के लिए पलायन करेंगे. और जब पलायन करेंगे तो नोएडा और हरियाणा जैसे राज्यों में हिकारत भरी दुत्कार सुनते रहेंगे...ऐ बिहारी...नोएडा की सिसोइटी का वायरल वीडियो आपने देखा ही होगा.

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