Haritalika Teej: हरतालिका तीज व्रत हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक प्रमुख व्रत है. दरअसल भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है.
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पटनाः Haritalika Teej: भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरितालिका तीज मनाई जाती है. इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए और सदा सुहागन रहने के लिए हरतालिका तीज व्रत करती हैं. इस दिन महिलाएं और अविवाहित कन्याएं भगवान शिव और माता पार्वती से सारा दिन निर्जल रह कर सौभाग्यवती रहने का वरदान प्राप्त करती हैं. इस बार हरितालिका तीज 30 अगस्त 2022 को मनाई जाएगी.
महिलाओं को होती है सौभाग्य की प्राप्ति
हरतालिका तीज व्रत हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक प्रमुख व्रत है. दरअसल भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए किया था. हरतालिका तीज व्रत करने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
कुंआरी कन्याएं भी रख सकती हैं व्रत
सनातन परंपरा में हरतालिका तीज के व्रत का बहुत महत्व है. इस दिन सुहागिनें अपनी पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. ये व्रत रखने से वैवाहिक जीवन में शांति बनी रहती है. हरतालिका तीज के व्रत को पूरे विधि-विधान से सही तरीके के साथ करने पर ही लाभ मिलता है.इतना ही नहीं, ये व्रत कुंवारी कन्याएं भी रख सकती हैं.
ये है हरतालिका तीज व्रत का पौराणिक महत्व
हरतालिका तीज व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. पुराणों में दी गई कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था. माता पार्वती ने भयंकर शीत में भूखे-प्यासे रहकर तपस्या की. माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता हिमालय बेहद दुखी हुए. एक दिन देवर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर आए लेकिन जब माता पार्वती को इस बात का पता चला तो, वे दुखी हो गईं.
ये है पौराणिक कथा
उनकी एक सहेली ने पूछा कि वह दुखी क्यों हैं, जबकि उनके विवाह का प्रस्ताव भगवान विष्णु की ओर से आया है. पार्वती जी ने बताया कि, वे भगवान शिव को पति मान चुकी हैं और उन्हें अपनाने के लिए ही कठोर तप कर रही हैं. इसके बाद अपनी सखी की सलाह पर माता पार्वती वन में चली गई और भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई. इस दौरान भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन हस्त नक्षत्र में माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की आराधना की. माता पार्वती के कठोर तप को देखकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और पार्वती जी की इच्छानुसार उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया.
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