Dwarikadhish Mandir Saran: अद्भुत है सारण में बना द्वारिकाधीश मंदिर, निर्माण में कहीं नहीं हुआ लोहे का इस्तेमाल
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Dwarikadhish Mandir Saran: अद्भुत है सारण में बना द्वारिकाधीश मंदिर, निर्माण में कहीं नहीं हुआ लोहे का इस्तेमाल

Dwarikadhish Mandir Saran: इस मंदिर की भव्यता काबिले तारीफ है. इसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं. इस मंदिर निर्माण में गुजरात से ही पूरा संगमरमर लाया गया था. इसकी खासियत है कि इसे गुजरात के ही कारीगरों द्वारा ही 14 वर्षों में पूरी तरह तैयार किया गया है. 

Dwarikadhish Mandir Saran: अद्भुत है सारण में बना द्वारिकाधीश मंदिर, निर्माण में कहीं नहीं हुआ लोहे का इस्तेमाल

छपराः Dwarikadhish Mandir Saran:गुजरात के द्वारिकाधाम मंदिर की तर्ज पर बने सारण के द्वारकाधीश मंदिर में कृष्ण जन्माष्ठमी धूमधाम से मनाया जा रहा है. रात्रि में भव्य जन्मोत्सव कार्यक्रम देखने के लिए यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी है. नैनी में बने द्वारिकाधीश मंदिर में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ रहा है. छपरा शहर से महज 6 किलोमीटर की दूरी पर एनएच 331 स्थित नैनी में बना द्वारिकाधीश मंदिर श्रद्धालुओं के लिये आस्था का केंद्र बिंदु बन गया है. साढ़े आठ करोड़ की लागत से तैयार इस भव्य मंदिर द्वारिकाधाम गुजरात के तर्ज पर बने इस मंदिर में राधाकृष्ण के साथ शिव पार्वती, दुर्गा, गणेश, हनुमान की मूर्तियां स्थापित हैं. परन्तु इस मंदिर को राधे कृष्ण की पूजा अर्चना होती है, यहां जन्माष्टमी को लेकर भव्य तैयारी है. 

गुजरात से लाई गई संगमरमर
इस मंदिर की भव्यता काबिले तारीफ है. इसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं. इस मंदिर निर्माण में गुजरात से ही पूरा संगमरमर लाया गया था. इसकी खासियत है कि इसे गुजरात के ही कारीगरों द्वारा ही 14 वर्षों में पूरी तरह तैयार किया गया है. इस तरह यह गुजरात के ही द्वारिकाधीश मंदिर की दूसरी प्रतिकृति लगता है. गुंबज पर लगे ध्वज को मिलाकर इसकी कुल ऊंचाई चालीस फीट है. मंदिर निर्माण का कार्य 2005 मे शुरू हुआ था, तब से लेकर 25 से 30 कारीगरों ने प्रतिदिन यहां काम किया है. 

मंदिर में नहीं है लोहे का इस्तेमाल
जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर की दूरी पर छपरा-महम्मदपुर NH-722 के बगल में स्थित मंदिर अपने आप में कलाकारी का बेजोड़ नमूना है. गुजरात के कारीगरों ने मंदिर का निर्माण 14 वर्षों में किया है. पूरे मंदिर में एक भी लोहे का इस्तेमाल नहीं किया गया है. दरवाजे और चौखट भी लकड़ी के कील और गोंद से तैयार किया गया है. इस मंदिर की खासियत यह भी है कि इस मंदिर के निर्माण में ईंट, सीमेंट, सरिया और बालू का इस्तेमाल नहीं हुआ है. पत्थरों को खास क्लिप कट पद्धति से जोड़ा गया है. 

 

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