नई शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य क्षेत्रीय बोलियों में पढ़ाते-समझाते छात्रों को मुख्य धारा में लाना है. ताकि उच्च शिक्षा में वह भाषा आधारित पिछड़ेपन का शिकार न हो. खासतौर पर उसका उच्चारण भी बेहतर करने पर जोर दिया जायेगा.
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पटना : बिहार में आने वाले दिनों में स्थानीय बोली के साथ पढ़ाई होगी. नई शिक्षा नीति के तहत बिहार में क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों में कक्षा एक से प्लस टू तक की पढ़ाई के लिए बहु-भाषीय शब्दकोश तैयार कर रहा है. दरअसल, स्कूलों में बच्चों को तमाम विषयों की पढ़ाई मातृ भाषा (मदर टंग) में पढ़ाई जाए, ताकि वह समझ सके कि उसकी मातृ भाषा में संबंधित विषयों के शब्दों या संबंधित अवधारणा को क्या कहा जाता है. जल्द ही सभी स्कूल में स्थानीय बोली के साथ पढ़ाई शुरू हो जाएगी.
बिहार के छात्रों को मुख्य धारा में लाने पर है जोर
बता दें कि नई शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य क्षेत्रीय बोलियों में पढ़ाते-समझाते छात्रों को मुख्य धारा में लाना है. ताकि उच्च शिक्षा में वह भाषा आधारित पिछड़ेपन का शिकार न हो. खासतौर पर उसका उच्चारण भी बेहतर करने पर जोर दिया जायेगा. इस संदर्भ में शिक्षा विभाग ने विशेष रूप से एससीइआरटी को दिशा निर्देश दिए हैं. इसके तहत बिहार की स्थानीय बोलियों और भाषाओं का एक शब्दकोश तैयार किया जाएगा. इस शब्दकोश में किसी विषय सामग्री को मातृ भाषा में उच्चारण वाले शब्द और उससे संबंधित अंग्रेजी-हिंदी के शब्द शामिल किये जायेंगे. साथ ही शब्दकोश के अलावा एक विशेष रिसोर्स मैटेरियल भी बनाया जाएगा. यह सामग्री शिक्षकों को दी जाएगी. शिक्षकों को इसमें प्रशिक्षित किया जा रहा है. साथ ही इस तरह अंगिका, बज्जिका, भोजपुरी, मगही, मैथिली आदि क्षेत्रीय भाषाओं में मुख्य धारा के विषय पढ़ाने की कवायद की जाएगी.
अनुसूचित जनजातियों की भाषाओं को सहेजने का प्लान
बता दें कि बिहार में कुल जनसंख्या में एक फीसदी से कुछ ही अधिक अनुसूचित जन जातियां हैं. इन सभी की भाषाएं संकटग्रस्त हैं. इस परिदृश्य में शिक्षा विभाग विभिन्न अनुसूचित जनजातियों की भाषाओं को सहेजने के लिए रणनीति बना रहा है. शिक्षा विभाग को इस संदर्भ में भारत सरकार से हाल ही में एक पत्र मिला है. साथ ही बिहार में अनुसूचित जाति (वनवासी समुदाय) की मुख्य भाषाएं मसलन मुंडारी, सदानी, संथाली, मुंगरी, गोराइत, चेरो आदि भाषाएं हैं. विभिन्न वजहों से यह भाषाएं बेहद संकटग्रस्त हैं. बिहार में खौंड ,बेड़िया, संथाल, खैरवार, गोराइत , कोरवा, मुंडा आदि वनवासी जातियां चंपारण, रोहतास, शाहाबाद, पूर्णिया, भागलपुर, सहरसा, भोजपुर, मुंगेर, जमुई, कटिहार और बक्सर आदि में रहती हैं.
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