बिहार के हेल्थ सिस्टम को तेजस्वी की डांट नहीं, ग्राउंड वर्क की सर्जरी चाहिए
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बिहार के हेल्थ सिस्टम को तेजस्वी की डांट नहीं, ग्राउंड वर्क की सर्जरी चाहिए

तेजस्वी का वो ट्वीट याद आता है. तब नीति आयोग ने बताया था कि बिहार में 1 लाख की आबादी पर महज 6 बेड हैं. इस रिपोर्ट पर तेजस्वी ने ट्वीट कर तंज किया था

(फाइल फोटो)

पटना: 6 सितंबर की रात बिहार के हेल्थ मिनिस्टर तेजस्वी यादव ने पीएमसीएच, न्यू गार्डिनर अस्पताल और गर्दनीबाग अस्पताल का दौरा किया. कमियां देखकर उन्होंने फटकार लगाई. तमाम चैनलों और सोशल मीडिया पर आधी रात की इस 'रेड' की रौनक है. लेकिन बिहार के बीमार मेडिकल सिस्टम को हेल्थ मिनिस्टर की डांट वाली गोली नहीं, ग्राउंड वर्क की सर्जरी चाहिए. 

दरअसल, तेजस्वी ने अस्पताल में रखे शव को लेकर कर्मचारियों को फटकार लगाई. पीएमसीएच में भी बदइंतजामी पर खफा हुए. मरीजों ने भी मंत्री के सामने डॉक्टरों और गंदगी की शिकायत की. PHMC में तेजस्वी ने पाया कि कुछ डॉक्टर ड्यूटी पर नहीं हैं. पता चला खाने के लिए गए हैं. यहीं एक डॉग भी घूमता नजर आया. मतलब कई कमियां दिखीं. 

तेजस्वी यादव के इस औचक्क निरीक्षण से भौंचक हैं तो अचरज है. आधी रात को अस्पतालों का दरवाजा खटखटाना जरूर सोते मेडिकल सिस्टम को थोड़ा बहुत जगाएगा, लेकिन समस्याओं की जड़ में क्या है? जड़ में है बिहार का बीमार मेडिकल सिस्टम.

इस मौके पर पिछले साल खुद तेजस्वी का वो ट्वीट याद आता है. तब नीति आयोग ने बताया था कि बिहार में 1 लाख की आबादी पर महज 6 बेड हैं. इस रिपोर्ट पर तेजस्वी ने ट्वीट कर तंज किया था, '16 वर्षों के थकाऊ परिश्रम के बूते बिहार को नीचे से नंबर-1 बनाने पर नीतीश जी को बधाई. 40 में से 39 लोकसभा MP और डबल इंजन सरकार का बिहार को अद्भुत फ़ायदा मिल रहा है. नीति आयोग की रिपोर्ट अनुसार देश के जिला अस्पतालों में सबसे कम बेड बिहार में हैं, 1 लाख की आबादी पर मात्र 6 बेड'

WHO कहता है कि प्रति हजार आबादी पर कम से कम एक डॉक्टर होना चाहिए. एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 28 हजार से अधिक की आबादी पर एक डॉक्टर है.

पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) को बिहार सरकार ने जानकारी दी है कि राज्य के सरकारी अस्पतालों में विभिन्न स्तर के 91921 पदों में से लगभग आधे से अधिक पद खाली हैं. प्रदेश में 1899 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र यानी पीएचसी हैं. इनमें महज 439 केंद्र पर ही चार एमबीबीएस तैनात हैं, जबकि तीन डॉक्टरों के साथ 41, दो के साथ 56 तथा एक डॉक्टर के साथ 1363 पीएचसी पर काम हो रहा है.

कहीं अस्पताल नहीं, अस्पताल है तो बेड नहीं, बेड है तो डॉक्टर नहीं. किस्मत से ये सब मिल भी जाए तो दवा नहीं, सुविधाएं नहीं. आप दिल्ली के एम्स के सामने किसी भी दिन चले जाइए, सबसे ज्यादा बिहार-झारखंड के मरीज वहां कतारों में खड़े दिख जाएंगे. ऐसे लोग महीनों एम्स अंडरपास के नीचे फुटपाथ पर गुजारते हैं. 
एक छोटे से टेस्ट के लिए महीनों पिसते लोगों से पूछिए कहां से आए हैं, जवाब मिलेगा बिहार से. पलायन के लिए बदनाम बिहार से इसे आप मेडिकल पलायन कह सकते हैं. 

एक अनार और सौ बीमार वाली हालत में बिहार का मेडिकल सिस्टम करे भी तो क्या करे, डॉक्टर सजग, सचेत और हर समय सही नजर आएं भी कैसे. आधी रात वाली डांट का स्वागत है लेकिन इससे सुर्खियां बनेंगी, सिस्टम नहीं.. फोकस वहां होना चाहिए. सरकार अभी बनी है, हमें नतीजों का इंतजार रहेगा.

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