पश्चिमी चंपारण के किसान सूखे से परेशान, कृषि वैज्ञानिक दे रहे इस मशीन से खेती की सलाह
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पश्चिमी चंपारण के किसान सूखे से परेशान, कृषि वैज्ञानिक दे रहे इस मशीन से खेती की सलाह

किसानों का कहना है कि इस बार इलाके में बाढ़ ने तबाही नही मचाई तो सूखे ने कहर बरपाया है और क़ुदरत के कहर में ऐसी स्थिति में धान की फसल में लगाई गई लागत भी निकल पाएगी या नहीं कहना मुश्किल है.

पश्चिमी चंपारण के किसान सूखे से परेशान, कृषि वैज्ञानिक दे रहे इस मशीन से खेती की सलाह

चंपारणः प्रकृति की मार से किसान यहां इन दिनों बेदम हैं. बारिश नही होने की वजह से धान की फसलें या तो खेतों में सूख रहीं हैं या सूखने के कगार पर हैं. कई पंचायतों में पानी के अभाव में अभी धान की रोपनी भी नही हुई है ऐसे में कृषि वैज्ञानिक ने सूखे की स्थिति में जीरो टीलेज मशीन से खेती करने की सलाह दी है. यूपी और नेपाल सीमा पर स्थित पश्चिमी चंपारण जिला के कई इलाकों में किसान सूखे की हालात से दो चार हो रहे हैं. इस मर्तबा मॉनसून समय से थोड़ी देर आया लेकिन एक दो दिन की वर्षा के बाद किसानों को दगा दे गया. लिहाजा कई किसान अब भी धान की रोपनी के लिए बारिश या पानी का इंतजार कर रहे हैं. जहां किसानों ने नहरों से पटवन कर या पम्पसेट का उपयोग कर खेती कर भी लिया है वहां धान के फसल सुख रहे हैं या सूखने के कगार पर पहुंच गए हैं.

बाढ़ ने नहीं, सूखे ने बरपाया कहर
किसानों का कहना है कि इस बार इलाके में बाढ़ ने तबाही नही मचाई तो सूखे ने कहर बरपाया है और क़ुदरत के कहर में ऐसी स्थिति में धान की फसल में लगाई गई लागत भी निकल पाएगी या नहीं कहना मुश्किल है. दूसरी ओर यूरिया खाद की किल्लत धान औऱ गन्ना की खेती के लिए किसानों के सामने नई मुसीबत खड़ी कर दिया है. दियारा समेत अन्य इलाकों में धान लगाए गए फसल वाले खेतों में दरारें पड़ गईं हैं और किसान पानी के पटवन को लेकर बेचैन हैं. जिन किसानों ने पानी के अभाव में अब तक खेती नहीं की है उनके लिए कृषि वैज्ञानिक पंकज मलकानी का सलाह है कि वे ज़ीरो टीलेज मशीन से खेती करें. इस मशीन से बिना खेत में पानी रहे भी धान की रोपनी आसानी से हो सकती है.

टीलेज मशीन से सिंचाई की सलाह
कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि इस मशीन की कीमत 12 हजार रुपये के क़रीब आती है लेकिन बिहार सरकार सब्सिडी पर इसे मात्र 6000 रुपये में आधी क़ीमत पर दे रही है जो किसानों के लिए सूखे की स्थिति में धान बुआई के लिए वरदान साबित होगी. वहीं प्रशासन की ओर से खाद की समुचित व्यवस्था कराने का दावा किया जा रहा है ताक़ि अन्नदाताओं मुश्किलें कम कर खेतों में फ़सल लहलहाए औऱ पैदावार भी अच्छी हो जिसके लिए नारायणी गण्डक नदी की सहायक नहरों क्रमशः तिरहूत, त्रिवेणी औऱ दोन केनाल में पानी भी छोड़ा जा चुका है. लेकिन फिर भी अब यूरिया खाद की किल्लत, खेती किसानी से तंग आकर पानी और वर्षा के अभाव में किसान इलाके को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग कर रहे हैं. 

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