Lok Sabha Election 2024: बिहार की राजनीति में विकास के मुद्दों से जातिवाद ज्यादा हावी रहता है और जातीय फैक्टर ही चुनाव जीतने का सबसे बड़ा हथियार बनता रहा है. इस बार तो जातिगत सर्वे ने चुनाव की पूरी तस्वीर ही बदल दी है.
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Lok Sabha Election 2024: बिहार-झारखंड सहित समूचे उत्तर भारत में सूरज आंखें दिखाने लगा है. वहीं लोकसभा चुनाव को लेकर बिहार का सियासी पारा भी सातवें आसमान पर पहुंच चुका है. धुआंधार प्रचार में आरोप-प्रत्यारोप के दौर में जातीय समीकरण सेट किए जा रहे हैं क्योंकि बिहार की राजनीति में विकास के मुद्दों से जातिवाद ज्यादा हावी रहता है और जातीय फैक्टर ही चुनाव जीतने का सबसे बड़ा हथियार बनता रहा है. इस बार तो जातिगत सर्वे ने चुनाव की पूरी तस्वीर ही बदल दी है. जातिगत सर्वे की रिपोर्ट का ही ये नतीजा है कि राजद को अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ा है.
दरअसल, इस बार राजद अध्यक्ष लालू यादव ने अबतक करीब दर्जनभर सीटों पर अपने कैंडिडेट को सिंबल बांट रखा है. इनमें से कुछ लोगों को आधिकारिक तौर पर सिंबल दिए गए हैं, जबकि कुछ के नाम अब तक घोषित नहीं हैं. राजद की लिस्ट में इस बार दलित-महादलित नेताओं को ज्यादा टिकट बांटे गए हैं. ये देखकर साफ लगता है कि लालू इस बार अपने परंपरागत वोटबैंक 'MY' से हटकर तेजस्वी यादव के 'BAAP' पर फोकस कर रहे हैं. उन्होंने अभी तक सिर्फ एक ही मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा किया है तो यादव बिरादरी के नेताओं को भी निराशा हाथ लगी है. राजद से अबतक टिकट पाने वाले अली अशरफ फातमी एकलौते नेता हैं.
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वहीं एनडीए की ओर से भी बीजेपी और जेडीयू ने मिलकर ऐसा जातीय चक्रव्यूह रचा है, जिसे भेद पाना महागठबंधन के लिए आसान नहीं होगा. बीजेपी ने जहां सवर्णों पर फोकस किया है, वहीं नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने पिछड़ा और अति-पिछड़ा समाज को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. बीजेपी ने 60% सवर्णों को टिकट बांटे हैं. इनमें भी राजपूत समाज हावी रहा. 17 में से 5 राजपूत, दो भूमिहार, दो ब्राह्मण और एक कायस्थ समाज के नेता को टिकट मिली है. वहीं जेडीयू की ओर से अपनी 16 सीटों में से 11 पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग के नेताओं को टिकट दिया है. पार्टी ने सवर्ण जाति से भी 3 नेताओं को भी टिकट दिया है. इसके अलावा 1 अल्पसंख्यक और 1 अनुसूचित जाति के नेता को टिकट दिया गया है.
एनडीए की ओर से जीतन राम मांझी और चिराग पासवान भी दलित वोटबैंक का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. ये दोनों दलित और महादलित समाज के बड़े नेता माने जाते हैं. बिहार की 22 अनुसूचित जातियों में से 21 को महादलित की श्रेणी में शामिल किया गया है. राज्य की अनुसूचित जाति में बंतार, बौरी, भोगता, भुईया, चमार, मोची, चौपाल, दबगर, धोबी, डोम, धनगड, (पासवान) दुसाध, कंजर, कुररियार, धारी, धारही, घासी, हलालखोर, हरि, मेहतर, भंगी और लालबेगी शामिल हैं. वहीं अनुसूचित जनजाति में असुर, अगरिया, बैगा, करमाली, खरिया, धेलकी खरिया, दूध खरिया, बेदिया, बिनझिया, बिरहोर, बिरजिया, चेरो, चिक, बराइक, बरैक, गोंड, गोरेत, हो ,हिल खरिया, खरवार, खोंड और नगेसिया शामिल हैं.
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बिहार में हुई जातीय गणना की रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश में सबसे ज्यादा जनसंख्या अन्य पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग की है. दोनों का आंकड़ा मिला दें तो संख्या 63 फीसदी पहुंच जाती है. वहीं, ब्राह्मणों की संख्या 4 फीसदी, सामान्य वर्ग का आंकड़ा 15.52 प्रतिशत और 20 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति के लोगों की है. पिछड़ा वर्ग में सबसे ज्यादा 14 फीसदी यादव बिरादरी की आबादी है, जिसमें अहीर, सदगोप, मैजर, ग्वाला समेत कई जातियों को शामिल किया गया है.