Advertisement
trendingPhotos/india/bihar-jharkhand/bihar2257603
photoDetails0hindi

सुबह घर-घर पहुंचाते हैं पेपर, PhD कर कॉलेज में बन गए प्रोफेसर, कहानी अखबार वाले की

भागलपुर के नाथनगर की तंग गलियों में सुबह एक शख़्स साइकिल से पेपर लेकर पहुंचता है. पिछले 20 साल से वह घर-घर पेपर लेकर पहुंचता है, लेकिन पेपर बेचते हुए उसने पीएचडी कर ली अब वह प्रोफेसर हैं फिर भी पेपर बेचना बन्द नहीं किया है. दरअसल, भागलपुर के नाथनगर निवासी राकेश की हम बात कर रहे हैं.

1/9

भागलपुर के राकेश पेपर बेचते हुए पीएचडी कर ली, फिर कॉलेज में प्रोफेसर बन गए. लेकिन अब भी पेपर बेच रहे हैं. पेपर बेचने के बाद वह कॉलेज चले जाते हैं. 

 

2/9

राकेश ने टीएमबीयू से न्यूजपेपर पर ही पीएचडी की है. वह एक प्राइवेट कॉलेज में क्लास लेते हैं.

3/9

राकेश भागलपुर के सुल्तानगंज स्थित एक प्राइवेट कॉलेज में हिंदी के प्रोफेसर के तौर पर पढ़ते हैं. इसके बावजूद राकेश घर-घर घूमकर पेपर बेचते हैं.

4/9

राकेश बताते है कि सुबह 5 बजे पेपर लेकर गलियों में निकल जाते हैं. 8 बजे तक पेपर बेचने के बाद 9 बजे कॉलेज के लिए निकल जाते है. इसके बाद शाम में आने के बाद परिवार को समय देते है.

5/9

पेपर बेचने के बाद पढ़ाई के लिये समय निकाल पीएचडी कर ली और पिछले 3 साल से राकेश तिलकामांझी भागलपुर विश्विद्यालय से सम्बद्ध एके गोपालन कॉलेज में प्रोफेसर हैं. 

6/9

दरअसल, भागलपुर के नाथनगर निवासी राकेश की हम बात कर रहे हैं. आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण राकेश पिछले 20 साल से नाथनगर में पेपर बेचते हैं. 

 

7/9

पिछले 20 साल से वह घर-घर पेपर लेकर पहुंचता है, लेकिन पेपर बेचते हुए उसने पीएचडी कर ली अब वह प्रोफेसर हैं फिर भी पेपर बेचना बन्द नहीं किया है.

8/9

भागलपुर के नाथनगर की तंग गलियों में सुबह एक शख़्स साइकिल से पेपर लेकर पहुंचता है. 

 

9/9

राकेश ने समाज मे एक मिसाल कायम की है कि पैसे कमाने के बाद भी उसने अपना काम नहीं छोड़ा जिसकी कमाई से वह यहां तक पहुंचे है.