Jharkhand: इस दुर्लभ बीमारी की चपेट में आया 6 महीने का मासूम, जान बचाने के लिए लगवाना पड़ेगा 16 करोड़ का इंजेक्शन
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Jharkhand: इस दुर्लभ बीमारी की चपेट में आया 6 महीने का मासूम, जान बचाने के लिए लगवाना पड़ेगा 16 करोड़ का इंजेक्शन

रांची से सटे खूंटी के रहने वाले राहुल प्रसाद के 6 महीने के बेटे ने इस दुनिया में अभी तो सही से अपनी आंखें भी नहीं खोली थीं, कि उसकी जिंदगी में इतना बड़ा संकट आ गया है. पिता राहुल ने बताया उनके 6 माह के बेटे राजवीर को स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी टाइप वन की एक दुर्लभ बीमारी हो गई है. 

प्रतीकात्मक तस्वीर

Spinal muscular atrophy: झारखंड के खूंटी में 6 महीने का एक बच्चा ऐसी खतरनाक बीमारी का शिकार हो गया, जिसके इलाज में लगने वाले एक इंजेक्शन की कीमत 16 करोड़ रुपये से ज्यादा है. बच्चे को जिस गंभीर बीमारी ने शिकार बनाया है उसका नाम है- स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (Spinal muscular atrophy disease). एक्सपर्ट्स बताते हैं कि अगर समय से पहले इस बीमारी का इलाज शुरू न किया जाए तो बच्चे की जान भी जा सकती हैं. झारखंड की राजधानी रांची से सटे खूंटी के रहने वाले राहुल प्रसाद के 6 महीने के बेटे ने इस दुनिया में अभी तो सही से अपनी आंखें भी नहीं खोली थीं, कि उसकी जिंदगी में इतना बड़ा संकट आ गया है. पिता राहुल ने बताया उनके 6 माह के बेटे राजवीर को स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी टाइप वन की एक दुर्लभ बीमारी हो गई है. 

पीड़िता पिता ने बताया कि उसने अपने बच्चे का झारखंड सहित दूसरे राज्यों के कई शिशु रोग विशेषज्ञों को दिखाया, लेकिन सभी डॉक्टरों ने बच्चे का इलाज करने को लेकर अपने हाथ खड़े कर दिए. राहुल ने बताया कि इस बीमारी में एक इंजेक्शन लगाया जाता है. यह इंजेक्शन सिर्फ अमेरिका में ही मिलता है. जिसकी कीमत 16 करोड रुपये है. इसके अलावा इसे भारत लाने में टैक्स आदि जोड़कर 22 करोड रुपये तक लग जाएंगे. जो हम जैसे प्राइवेट नौकरी करने वालों के लिए मंगवाना असंभव है. पीड़ित पिता ने फिलहाल अपने बेटे को रांची के रांची चिल्ड्रन हॉस्पिटल में भर्ती कराया है, जहां डॉक्टर जीशान अहमद की निगरानी में इलाज चल रहा है. 

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रानी चिल्ड्रन के शिशु रोग के विशेषज्ञ डॉक्टर जीशान अहमद ने बताया कि स्पाइनल मस्कुलर अट्रॉफी टाइप वन अमूमन छोटे बच्चों में ही देखा जाता है. उन्होंने बताया कि इस बीमारी का इलाज भारत के कुछ एक अस्पतालों में ही संभव है. इस बीमारी से बच्चे को सांस लेने में काफी दिक्कत होती है. बच्चे को बाहर से ऑक्सीजन सपोर्ट दिया जा रहा है. यह बीमारी किसी इंफेक्शन से नहीं होता, बल्कि बच्चा जन्म के साथ ही इस बीमारी को लेकर आता है. इस बीमारी का अगर समय पर इलाज नहीं हुआ तो मरीज की एक से डेढ़ साल में मौत हो जाती है. 

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रानी चिल्ड्रन हॉस्पिटल के चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर राजेश ने बताया यह एक रेयर डिजीज है जो लाखों में एक को होता है.यह बीमारी अक्सर माता-पिता के द्वारा बच्चों में ट्रांसफर होता हैं व यह बीमारी किसी भी उम्र हो सकती है, चाहे बुढ़ापे में या दो माह के बच्चे को.साथ ही इस बीमारी के लिए अमेरिका से इंजेक्शन मंगवाना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि अगर यह इंजेक्शन मिल भी गई तो यह रांची में नहीं लग पायेगा.इसे लगाने के लिए हमें एम्स दिल्ली जाना पड़ेगा. यह इंजेक्शन सिर्फ एम्स दिल्ली में ही लगाया जाता है. वहीं पीड़ित पिता राहुल ने लोगों से अपील है कि इस दौरान हमारी कुछ मदद करें. इसके अलावा उसने केंद्र और राज्य सरकार से भी मदद मांगी है. 

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