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गया: Pitru Paksha 2022: हिंदू धर्म में पिंडदान को मोक्ष प्राप्ति करने का एक सहज और सरल मार्ग माना जाता है. पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पितृपक्ष (Pitru Paksha 2022) में पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है. पितृपक्ष में पिंडदान के लिए कई जगहें प्रसिद्ध हैं लेकिन बिहार के गया में पिंडदान करने का खास महत्व है. कहा जाता है कि राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए भगवान राम और सीताजी ने भी गया में ही पिंडदान किया था. हर साल देश-विदेश से लाखों लोग पिंडदान करने के लिए गया में आते हैं. गया में स्थित प्रेतशिला पर्वत (Pretshila in Gaya) का पूर्वजों की आत्मा से विशेष संबंध है. हिंदू संस्कारों में प्रेतशिला की गणना पंचतीर्थ वेदी में की जाती है.
अकाल मृत्यु से मरने वाले पूर्वजों का पिंडदान
प्रेतशिला नाम का पर्वत गया से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस पर्वत के शिखर पर प्रेतशिला नाम की वेदी है. प्रेतशिला पर्वत की कुल ऊंचाई 876 फीट है. प्रेतशिला की वेदी पर पिंडदान करने के लिए लगभग 400 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. ऐसी मान्यता है कि अकाल मृत्यु से मरने वाले पूर्वजों का प्रेतशिला की वेदी पर श्राद्ध और पिंडदान करने का का विशेष महत्व है. इस पर्वत पर पिंडदान करने से पूर्वज सीधे पिंड ग्रहण करते हैं. ऐसा होने के बाद कष्टदायी योनियों में पूर्वजों को जन्म लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती है.
प्रेतशिला पर्वत पर सत्तू से पिंडदान
प्रेतशिला पर्वत के शिखर पर एक चट्टान है. जिस पर भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की की मूर्ति बनी है. पर्वत की चोटी पर स्थित इस चट्टान की श्रद्धालुओं द्वारा परिक्रमा कर के सत्तु से बना पिंड उस पर उड़ाया जाता है. प्रेतशिला पर्वत पर सत्तू से पिंडदान करने की परंपरा काफी पुरानी है. इस चट्टान के चारों तरफ 5 से 9 बार परिक्रमा करके सत्तू चढ़ाने से अकाल मृत्यु में मरे पूर्वजों को प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाती है. इस प्रेतशिला के पास एक वेदी भी है जिसके ऊपर भगवान विष्णु के चरण चिह्न बने हुए हैं. इसके पीछे की कथा यह है कि यहां भगवान विष्णु गयासुर की पीठ पर बड़ी सी शिला रखकर स्वयं खड़े हुए थे.
इस पत्थर के बीच से आती-जाती है आत्मा
प्रेतशिला के पास स्थित पत्थरों में विशेष प्रकार की छिद्र और दरारें हैं. इसके बारे में कहा जाता है कि इन पत्थरों के उस पार रोमांच और रहस्य की ऐसी दुनिया है जो लोक और परलोक के बीच कड़ी का काम करती है. इन दरारों के बारे में ये कहा जाता है कि प्रेतात्माएं इनसे होकर आती और अपने परिजनों द्वारा किए गए पिंडदान को ग्रहण करके वापस चली जाती हैं. कहा जाता है कि लोग जब यहां पिंडदान करने पहुंचते हैं तो उनके पूर्वजों की आत्माएं भी उनके साथ यहां चली आती हैं. ये आत्माएं सूर्यास्त के बाद विशेष प्रकार की ध्वनि, छाया या फिर किसी और प्रकार से अपने होने का अहसास भी करावाती हैं.
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भगवान राम ने यहां किया था श्राद्ध
इस पर्वत पर भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता भी अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध करने पहुंचे थे. कहा जाता है कि पर्वत पर आज भी भगवान ब्रह्मा के अंगूठे से खींची गई दो रेखाएं देखी जा सकती हैं. कर्मकांड को पूरा करने के बाद पिंडदानी इसी वेदी पर पिंड को अर्पित करते हैं. प्रेतशिला का नाम पहले प्रेतपर्वत हुआ करता था, लेकिन भगवान श्रीराम के यहां आकर पिंडदान करने के बाद इस स्थान का नाम प्रेतशिला हो गया. इस शिला के ऊपर यमराज का मंदिर, श्रीराम दरबार (परिवार) देवालय के साथ-साथ श्राद्धकर्म सम्पन्न करने के लिए दो भी कक्ष बने हुए हैं.