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यहां तीर चलाइए, निशाना लगाइए और जीत लीजिए खेत! जानें कैसी है ये यूनिक प्रतियोगिता

बोकारो के कसमार में अनोखी प्रतियोगिता जीतने पर प्रतिभागी को खेत मिलता है. एक साल के लिए दिया जाता है खेत. 100 सालों से चली आ रही है प्रथा. बोकारो के कसमार में होनी वाली इस प्रतियोगिता का नाम बेझा बिंधा कहा जाता है, जानें कैसी है ये अनोखी प्रतियोगिता.

इस प्रतियोगिता का नाम बेझा बिंधा कहा जाता है

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इस प्रतियोगिता का नाम बेझा बिंधा कहा जाता है

बोकारो के कसमार में अनोखी प्रतियोगिता जीतने पर प्रतिभागी को खेत मिलता है. एक साल के लिए दिया जाता है खेत. 100 सालों से चली आ रही है प्रथा. बोकारो के कसमार में होनी वाली इस प्रतियोगिता का नाम बेझा बिंधा कहा जाता है, जानें कैसी है ये अनोखी प्रतियोगिता.

मकर संक्रांति के अवसर प्रतियोगिता आयोजित हुई

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मकर संक्रांति के अवसर प्रतियोगिता आयोजित हुई

बोकारो के कसमार प्रखंड में एक रोचक तीरंदाजी प्रथा सदियों से चली आ रही है. इस तीरंदाजी प्रतियोगिता के विजेता को साल भर के लिए एक खेत इनाम में दिया जाता है. मकर संक्रांति के अवसर पर होने वाली इस प्रतियोगिता को बेझा बिंधा के नाम से लोग जानते हैं. कसमार के मंजूरा गांव में मकर संक्रांति के अवसर आज बेझा बिंधा प्रतियोगिता आयोजित हुई.

कसमार प्रखंड में एक रोचक तीरंदाजी प्रथा

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कसमार प्रखंड में एक रोचक तीरंदाजी प्रथा

बता दें कि मंजूरा के रहनेवाले दिवंगत रीतवरण महतो ने करीब 100 साल पहले इस अनूठी परंपरा की शुरुआत की थी. तब से हर वर्ष काफी उत्साह और उमंग के साथ यह प्रतियोगिता आयोजित होती आ रही है.

इस दौरान काफी संख्या में ग्रामीण मौजूद

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इस दौरान काफी संख्या में ग्रामीण मौजूद

इस बार इस प्रतियोगिता के विजेता का लक्ष्मण तुरी हुए. विजेता घोषित होने के बाद इलाके के लोगों ने परंपरा के अनुसार उन्हें कंधे पर उठाकर पूरे गांव में घुमाया. इस प्रतियोगिता में करीब 50 प्रतिभागियों ने काफी उत्साह के साथ भाग लिया था. इस दौरान काफी संख्या में ग्रामीण मौजूद थे. 

खेत के बीचों-बीच केला का एक तना गाड़ दिया जाता है

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खेत के बीचों-बीच केला का एक तना गाड़ दिया जाता है

इस प्रतियोगिता के तहत निशाना साधने के लिए खेत के बीचों-बीच केला का एक तना गाड़ दिया जाता है. उसके बाद गांव के सभी जाति-धर्म के लोग इस पर तीर से निशाना लगाते हैं. जिस व्यक्ति का निशाना सबसे पहले लगता है, उसे साल भर के लिए एक खेत उपहार में दिया जाता है. इसके लिए प्रतियोगियों से कोई राशि या विजेता से कोई लगान नहीं लिया जाता है. 

सभी गांव में ढोल बजाकर इसकी सूचना दी जाती है

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सभी गांव में ढोल बजाकर इसकी सूचना दी जाती है

इस परंपरा को शुरू करने वाले रितवरण महतो के वंशज पूर्व प्रमुख विजय किशोर गौतम ने बताया कि यह परंपरा बरसों से चली आ रही है. इस प्रतियोगिता की शुरुआत हमारे परिवार द्वारा तीर चला कर की जाती है. उसके बाद गांव के प्रतियोगी अपना निशाना साधते हैं. इस प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए जाति-धर्म का बंधन नहीं. ग्रामीणों ने बताया कि इस परंपरा से पहले आसपास के सभी गांव में ढोल बजाकर इसकी सूचना दी जाती है.

रिपोर्ट: मृत्युंजय मिश्रा