Bhagalpur Manidweep Durga Mandir: यहां मंदिर की दीवारों पर लिखी जा रही है श्रीदुर्गा सप्तशती, जानिए खासियत
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Bhagalpur Manidweep Durga Mandir: यहां मंदिर की दीवारों पर लिखी जा रही है श्रीदुर्गा सप्तशती, जानिए खासियत

बिरबन्ना ड्योढ़ी के राजा बाबू बैरम सिंह और भागीरथ दत्ता झा के परिवार ने मंदिर की स्थापना की थी. यहां तांत्रिक और वैदिक दोनों पद्धति से पूजा-अर्चना की जाती है. खासकर पूजा के दौरान भागलपुर के आसपास के कई जिलों के लोग पूजा अर्चना करने और मनोकामना मांगने पहुंचते हैं. 

Bhagalpur Manidweep Durga Mandir: यहां मंदिर की दीवारों पर लिखी जा रही है श्रीदुर्गा सप्तशती, जानिए खासियत

भागलपुर: Navratri Manidweep Durga Mandir: नवरात्र का समय जारी है. भक्तिभाव से माता का पूजन किया जा रहा है. इस दौरान देश भर के दुर्गा मंदिरों की छटा देखते बन रही है. भागलपुर जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर नारायणपुर प्रखंड के भ्रमरपुर गांव में सिद्धपीठ मणिद्वीप दुर्गा मंदिर स्थित है. यहां सारे 350 से 400 वर्ष पहले मां दुर्गे के मंदिर की स्थापना हुई थी. बताया जाता है की बिरबन्ना ड्योढ़ी के राजा बाबू बैरम सिंह और भागीरथ दत्ता झा के परिवार ने मंदिर की स्थापना की थी. यहां तांत्रिक और वैदिक दोनों पद्धति से पूजा-अर्चना की जाती है. खासकर पूजा के दौरान भागलपुर के आसपास के कई जिलों के लोग पूजा अर्चना करने और मनोकामना मांगने पहुंचते हैं. 

संध्या आरती है प्रसिद्ध
यहां की संध्या आरती भी प्रसिद्ध मानी जाती है. नवमी पूजा को बलि की परंपरा है. सबसे पहले भैंसे की बलि दी जाती है. उसके बाद 1500 से अधिक पाठा की बलि दी जाती है. वहीं अब मंदिर को और भी भव्य बनाया जा रहा है. दक्षिण भारत के मंदिरों के तर्ज पर इस मंदिर का विशाल शिखर का निर्माण किया जा रहा है. जो 125 फीट ऊंचा है. अब तक करीब ढाई से तीन करोड़ खर्च इसे बनाने में हो चुके है. 3 वर्षों से निर्माण कार्य जारी है. 2 वर्षों बाद मंदिर का स्वरूप पूरी तरह बदल जाएगा. मंदिर में दुर्गा सप्तशती लेखन किया जाएगा जो और कहीं नही है.

यहां होता है सर्वाधिक सप्तशती का पाठ
भ्रमरपुर दुर्गा मंदिर में सभी बाह्मण शास्त्रीय नवरात्र में मन्दिर प्रांगण में बैठकर दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं. उसके बाद अन्न-जल ग्रहण करते हैं. यहां जितना सप्तशती का पाठ होता है भारत के किसी दुर्गा मंदिर में नहीं होता है. भ्रमरपुर दुर्गा मंदिर का इतिहास करीब 350 वर्ष पुराना बताया जाता है. इस मंदिर को सिद्धपीठ मणिद्वीप के नाम से भी जाना जाता है.

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