OPINION: अमेरिका हो या अमेरिका का चाचा... भारत में नहीं चलेगा!
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OPINION: अमेरिका हो या अमेरिका का चाचा... भारत में नहीं चलेगा!

Arvind Kejriwal Arrest: और क्या चल रहा है....? भारत में अभी किसी से भी ये सवाल पूछेंगे तो.. जवाब 'केजरीवाल' मिलेगा! कुछ लोगों का जवाब 'चुनाव' भी होगा लेकिन वे भी केजरीवाल को इससे कनेक्ट कर देंगे. केजरीवाल अमेरिका में भी चल रहे हैं और जर्मनी में भी. चलने का कारण है उनकी गिरफ्तारी.

OPINION: अमेरिका हो या अमेरिका का चाचा... भारत में नहीं चलेगा!

Arvind Kejriwal Arrest: और क्या चल रहा है....? भारत में अभी किसी से भी ये सवाल पूछेंगे तो.. जवाब 'केजरीवाल' मिलेगा! कुछ लोगों का जवाब 'चुनाव' भी होगा लेकिन वे भी केजरीवाल को इससे कनेक्ट कर देंगे. केजरीवाल अमेरिका में भी चल रहे हैं और जर्मनी में भी. चलने का कारण है उनकी गिरफ्तारी. हेमंत सोरेन भी गिरफ्तार हुए थे.. चर्चाओं में, वे भी खूब चले लेकिन जर्मनी और अमेरिका तक नहीं पहुंचे. लेकिन केजरीवाल पहुंच गए. मुद्दा जो भी हो.. केजरीवाल या हेमंत सोरेन या कुछ और.. भारत का रुख साफ है- देश के अंदरूनी मामलों में न अमेरिका का चलेगा ना ही अमेरिका का चाचा.

केजरीवाल की गिरफ्तारी पर अमेरिका के आंसू छलके

दिल्ली के मुख्यमंत्री शराब वाले मामले में जब से गिरफ्तार हुए हैं.. उनके चाहने वाले भी जेल वाली घुटन महसूस करने लगे हैं. केजरी खेमे का हाल उन मधुमक्खियों जैसा हो गया है, जिनके छत्ते में किसी ने आग लगा दी हो. पार्टी के नेताओं की दिशा-दशा पूरी तरह बदल गई है. उनके लिए भाजपा और केंद्र सरकार.. दुनिया की सबसे बड़ी तानाशाह बन गई है. केजरीवाल की गिरफ्तारी पर अमेरिका के आंसू छलके हैं.

अमेरिका ने बड़ी मौसी बनने में तनिक देरी नहीं लगाई

अमेरिका से जब केजरीवाल की गिरफ्तारी के बारे में सवाल किया गया तो, अमेरिका ने बड़ी मौसी बनने में तनिक देरी नहीं लगाई. अमेरिका के नेता ने कहा कि भारत के मुख्य विपक्षी नेता केजरीवाल की गिरफ्तारी पर नजर बनाए हुए हैं. यह भी कहा कि केजरीवाल के मामले में निष्पक्ष, पारदर्शी और समयबद्ध कानूनी प्रक्रिया होनी चाहिए. अमेरिका से पहले जर्मनी ने भी केजरीवाल से हमदर्दी जताई थी. 

जर्मनी ने भी दिया ज्ञान..

जर्मनी में भी दिल्ली के सीएम केजरीवाल की गिरफ्तारी का मामला गरमाया हुआ है. केजरीवाल की गिरफ्तारी पर जर्मनी ने भारत को लोकतांत्रित देश होने की याद दिलाई. जर्मनी ने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है. उम्मीद करते हैं कि न्यायापालिका की स्वतंत्रता और बुनियादी लोकतांत्रिक सिद्धांत से संबंधित मानकों को इस मामले में भी लागू किया जाएगा. केजरीवाल के मामले में भारत को इन दोनों ही देशों की दखल पसंद नहीं आई है.

भारत की घुड़की से होश ठिकाने

भारतीय विदेश मंत्रालय ने पहले जर्मनी को और उसके बाद अमेरिका को देश के अंदरूनी मामले में ज्ञान देने से मना किया है. जर्मनी और अमेरिका के राजदूत को तलब कर भारत ने स्पष्ट कहा है कि ऐसी टिप्पणी को भारत, न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप के रूप में देखता है. भारत ने बकायदा विज्ञप्ति जारी कर कहा कि नई दिल्ली में जर्मन मिशन के उप प्रमुख को आज बुलाया गया और हमारे आंतरिक मामलों पर उनके विदेश कार्यालय प्रवक्ता की टिप्पणियों पर भारत के कड़े विरोध से अवगत कराया गया. हम ऐसी टिप्पणियों को हमारी न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप और हमारी न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करने के रूप में देखते हैं.

भारत.. देश के अंदरूनी मामलों में किसी की दखल पसंद नहीं करता

भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत कानून के शासन वाला एक जीवंत और मजबूत लोकतंत्र है. जैसा कि देश में और लोकतांत्रिक दुनिया में अन्य जगहों पर सभी कानूनी मामलों में होता है, कानून तत्काल मामले में अपना काम करेगा. इस संबंध में की गई पक्षपातपूर्ण धारणाएं अत्यंत अनुचित हैं. भारत के इस रुख से अमेरिका और जर्मनी को मिर्ची तो लगी होगी साथ ही ये संदेश भी मिल गया होगा कि भारत, देश के अंदरूनी मामलों में किसी की दखल पसंद नहीं करता.

अमेरिका की डबल स्टैंडर्ड वाली बीमारी

भारत की घुड़की का असर अमेरिका और जर्मनी पर देखने को मिल रहा है. भारत द्वारा राजदूतों को तलब करने के बाद जर्मनी और अमेरिका के मुंह से एक शब्द नहीं फूटे हैं. यहां अमेरिका ने एक बार फिर साबति कर दिया है कि उसकी डबल स्टैंडर्ड वाली बीमारी का अभी तक इलाज नहीं हो सका है. भारत ही नहीं अन्य देशों के अंदरूनी मामलों में भी अमेरिका ने दखल देने की कोशिश की और उसे बोल बदलते रहे हैं. अमेरिका की डबल स्टैंडर्ड वाली बीमारी का ताजा उदाहरण इजरायल-हमास युद्ध के बीच देखने को मिला है.

इजरायल को दिया झटका

इजरायल-हमास युद्ध में अमेरिका शुरू से ही इजरायल का सपोर्ट करता आया है. लेकिन अब अमेरिका के तेवर बदले से लग रहे हैं. पहली बार ऐसा हुआ है जब अमेरिका ने इस मुद्दे पर इजरायल को अलग-थलग छोड़ दिया है. गाजा में युद्धविराम के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यानी UNSC में प्रस्ताव पारित हुआ. UNSC की बैठक के दौरान 15 में से 14 सदस्यों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जबकि अमेरिका ने वोटिंग से दूरी बना ली. यानी अमेरिका वोटिंग में ही नहीं आया. यह इजरायल के लिए बड़ा झटका है.

सीएए और खालिस्तानी आतंकी पन्नू पर भी दिखा अमेरिका का असली चेहरा

ऐसे ही खालिस्तानी आतंकवादी गुरु पतव सिंह पन्नू के मर्डर की साजिश के मामले में अमेरिका ने अपना असली चेहरा दिखाया था. अमेरिका की अदालत में दायर चार्जशीट में कहा गया था कि पन्नू की हत्या की साजिश में भारत सरकार का एक कर्मचारी भी शामिल था. सीएए पर भी अमेरिका ने ज्ञान बखारने की कोशिश की थी. अमेरिका ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के नियमों की अधिसूचना पर चिंता व्यक्त की थी. भारत ने तब भी अमेरिका को नहीं बख्शा था. भारत ने सीएए पर अमेरिका की टिप्पणी का जवाब देते हुए कहा कि सीएए भारत का आंतरिक मामला है. इस पर अमेरिका की टिप्पणी अनुचित है. भारत का रुख जानने के बाद अब उम्मीद यही है कि अमेरिका अपने फिजूल के ज्ञान अपने पास ही रखेगा...

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