जब अमिताभ ने राजीव गांधी से उधार मांगे थे कपड़े, पढ़ें साल 1976 का मजेदार किस्सा
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जब अमिताभ ने राजीव गांधी से उधार मांगे थे कपड़े, पढ़ें साल 1976 का मजेदार किस्सा

Zee News Time Machine: किस्सा 1976 का है, जब भारत सरकार की ओर से अमिताभ बच्चन के पिता हरीवंश राय बच्चन को पद्म भूषण से सम्मान करने का ऐलान हुआ.

जब अमिताभ ने राजीव गांधी से उधार मांगे थे कपड़े, पढ़ें साल 1976 का मजेदार किस्सा

Time Machine on Zee News: ज़ी न्यूज के खास शो टाइम मशीन में हम आपको बताएंगे साल 1976 के उन किस्सों के बारे में जिसके बारे में शायद ही आपने सुना होगा. ये वो साल था जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने इंदिरा गांधी से जयपुर के खजाने में हिस्सा मांगा था, और इंदिरा गांधी ने उन्हें दो टूक में ना कह दिया था ना. इसी साल संजय गांधी ने 8 हजार लोगो की नसबंदी करवाई थी. इसी साल एक फिल्म में 5 लाख प्रोड्युर्स ने पैसा लगाया था. आइये आपको बताते हैं साल 1976 की 10 अनसुनी अनकही कहानियों के बारे में.

भारत-पाकिस्तान का 'मिशन हाईजैक'!

1976 में जहां एक ओर देश में इमरजेंसी लगी हुई थी. इसी बीच भारत के एक विमान को हाईजैक कर लिया गया था और इस हाईजैकिंग में भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने एक दूसरे का हाथ थामा और मिलकर सभी यात्रियों को बचाया. 10 सितंबर को सुबह करीब साढ़े सात बजे दिल्ली के पालम हवाई अड्डे से इंडियन एयरलाइंस के बोइंग 737 विमान ने 77 यात्रियों के साथ मुंबई के लिए उड़ान भरी. मुंबई पहुंचने से पहले जहाज को जयपुर और औरंगाबाद रुकना था. लेकिन टेक ऑफ के बीच ही दो अपहरणकर्ता कॉकपिट में आ गए और पायलट को पिस्तौल दिखाकर विमान का अपहरण कर लिया. हाईजैकर्स ने प्लेन को लीबिया ले जाने के लिए कहा, लेकिन पायलट ने मना कर दिया क्योंकि तेल नहीं था. फिर  पायलट और सह-पायलट ने ऑटो पायलट शुरू करके दिल्ली एयर ट्रैफिक कंट्रोलर से संपर्क साधा और घटना की जानकारी दी. फिर हाईजैकर्स ने प्लेन को पाकिस्तान ले जाने के लिए कहा और फिर विमान लाहौर जाकर रुका. उधर भारत सरकार ने पाकिस्तान सरकार से मदद मांगी और इस घटना के बारे में बताया. फिर लाहौर एयरपोर्ट पर प्लेन रुका. पाकिस्तान के अधिकारियों ने हाईजैकर्स के खाने में नशीली दवाएं मिला दीं. जिसे पीकर अपहरणकर्ता बेहोश हो गए थे. बाद में अपहरणकर्ताओं को पकड़ लिया गया और विमान को भारत के लिए रवाना किया गया. भारत-पाकिस्तान ने मिलकर एक मिसाल पेश की थी.

भुट्टो ने मांगा जयपुर के खजाने से हिस्सा

देश में आपातकाल का जब दौर आया तो बंद तहखानों से भी कई राज निकलकर बाहर आए और इन्हीं में से एक राज था उस खजाने को लेकर जिसके लिए इंदिरा गांधी ने एड़ी चोटी का जोर लगाया. वहीं पाकिस्तान भी अपनी जिद पर अड़ गया. दरअसल 1976 में जयपुर के मशहूर महारानी गायत्री देवी के जयगढ़ किले में इंदिरा गांधी सरकार ने जांच पड़ताल करवाई. इनकम टैक्स द्वारा पड़ा ये  छापा इसलिए किया गया ताकि किले में छुपे खजाने के रहस्य का पता लगाया जा सके और खजाने को बाहर निकाला जा सके. 10 जून 1976 को सेना और इनकम टैक्स की टीमों ने जयगढ़ फोर्ट पर रेड डाली. किले में 5 महीने तक खुदाई की गई. कहा गया कि इस खजाने से मिले सामान को चोरी छुपे ठिकाने भी लगा दिया गया था. सूत्रों के मुताबिक इस खजाने में लगभग 128 करोड़ की संपत्ति मिली थी. खजाने में 230 किलो चांदी मिलने का भी दावा किया गया था. खजाने में पाकिस्तान सरकार ने भी हिस्सा मांगा, क्योंकि खजाने का इतिहास भारत-पाकिस्तान विभाजन से पहले का था. पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने इंदिरा गांधी को चिट्ठी लिखी. इंदिरा ने भुट्टो को पत्र भेजकर जवाब दिया और कहा ऐसा कोई खजाना नहीं मिला.

राजीव गांधी से अमिताभ ने कपड़े उधार मांगे

बच्चन परिवार और गांधी परिवार के रिश्ते काफी गहरे रहे हैं. किस्सा 1976 का है, जब भारत सरकार की ओर से अमिताभ बच्चन के पिता हरीवंश राय बच्चन को पद्म भूषण से सम्मान करने का ऐलान हुआ. पूरा परिवार हरिवंश राय बच्चन को अवॉर्ड लेते देखना चाहता था. लेकिन अधिकारिक तौर पर परिवार में से सिर्फ दो लोग ही इस समारोह में जा सकते थे. फिर परिवार की ओर से हरिवंश राय बच्चन और उनके दोनों बेटे अमिताभ और अजिताभ का जाना तय हुआ. सारी पैकिंग खुद जया बच्चन ने की और कहा गया कि तीनों को ही काले रंग का सूट पहनना होगा. इसके लिए खास टेलर भी बुलाया गया. लेकिन इसी बीच अमिताभ के भाई अजिताभ की तबीयत खराब हो गई. फिर अमिताभ अकेले ही पिता के साथ दिल्ली पहुंचे. होटल में जब अमिताभ ने सूटकेस से अपना सूट निकाला तो वो चौंक गए. क्योंकि जया बच्चन ने गलती से अजिताभ  का सूट रख दिया. उस सूट की पैंट अमिताभ को काफी छोटी पड़ रही थी. ऐसे में तुरंत अमिताभ को अपने दोस्त राजीव गांधी की याद आई. फिर तुरंत ही राजीव गांधी ने अपना कुर्ता पजामा और शॉल अमिताभ के लिए भिजवा दिया. जिसे पहनकर अमिताभ पिता के साथ समारोह में पहुंचे थे.

जीते जी मृत घोषित हुए लाल बिहारी

जीते जी अगर किसी व्यक्ति को मृत घोषित कर दिया जाए और फिर उस शख्स को खुद को जिंदा करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़े. क्या आप इस सब पर यकीन कर पाएंगे? असल में एक ऐसा ही मामला साल 1976 में आया था. दरअसल 1976 में उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ के रहने वाले लाल बिहारी को जीते जी ही सरकारी कागजों में मृत घोषित कर दिया गया था. हुआ ये कि लाल बिहारी की दौलत को जायदाद को पाने के लिए उनके  चचेरे भाईयों  और पट्टीदारों ने 30 जुलाई 1976 को अभिलेखों में उन्हें मृत घोषित कर दिया और फिर उनकी सारी संपत्ति हड़प ली. इसके बाद लाल बिहारी ने खुद को जिंदा करने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. 1988 में इलाहाबाद सीट से बसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कांशीराम के खिलाफ वो चुनावी मैदान में उतरे. इसके बाद उन्होंने 1989-90 में अमेठी से राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा. इन दोनों चुनावों में उन्हें हार मिली लेकिन उन्होंने खुद को जिंदा करने की जिद को जारी रखा. आखिरकार 30 जून 1994 में तत्कालीन जिलाधिकारी हौसला प्रसाद वर्मा और मुख्य राजस्व अधिकारी कृष्ण श्रीवास्तव ने लाल बिहारी को भू राजस्व अभिलेखों में दोबारा से जिंदा कर दिया. इस तरह लाल बिहारी को खुद को जिंदा करने में करीब 18 साल का लंबा वक्त लगा.

एक फिल्म के 5 लाख प्रोड्यूसर

आपने ये जरूर सुना होगा कि बूंद-बूंद से घड़ा भरता है. 1976 में एक फिल्म के लिए भी कुछ ऐसा ही हुआ. साल 1976 में आई श्याम बेनेगल की फिल्म मंथन एक ऐसी फिल्म थी जिसे बनाने के लिए 5 लाख प्रोड्यूसर्स सामने आए थे. दरअसल 1970 के दशक में फिल्ममेकर श्याम बेनेगल अपनी इस फिल्म को बनाने के लिए मुश्किलों का सामना कर रहे थे. उन्होंने भारत में ‘श्वेत क्रांति’ को लाने वाले वर्गीज कुरियन को अपनी परेशानी बताई. उन्होंने श्याम बेनेगल को सुझाव दिया और कहा कि, वो उनके अमूल को-ऑपरेटिव सोसाइटी के पांच लाख किसानों से संपर्क करें. इसके बाद गुजरात के सभी किसानों ने श्याम बेनेगल को  दो-दो रुपए दिए और फिर जाकर 10 लाख के बजट में फिल्म बनी. फ़िल्म के क्रेडिट्स में प्रोड्यूसर्स के तौर पर सभी किसानों का शुक्रियादा किया गया है. जहां एक लाइन में लिखा था ‘गुजरात के पांच लाख किसान पेश करते हैं - 'मंथन’.

संजय गांधी का सपना नोएडा

क्या आप जानते हैं कि, 1976 में जब देश में आपातकाल की स्थित थी. उसी वक्त नोएडा का निर्माण हुआ. इतना ही नहीं, बताया जाता है कि नोएडा बनने में सबसे बड़ा योगदान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी और यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी का है. दरअसल कहा जाता है कि, आपातकाल के उस दौर में संजय गांधी यूपी के तत्कालीन सीएम नारायण दत्त तिवारी के साथ लखनऊ से दिल्ली जा रहे  थे. विमान दिल्ली की सीमा में दाखिल होता, उससे पहले संजय को दिल्ली के बाहर यमुना के किनारे खेतों का इलाका दिखाई दिया. खिड़की से झांकते संजय ने तत्कालीन सीएम नारायण दत्त तिवारी को औद्योगिक विकास के लिए  एक शहर बसाने का आइडिया दिया और बस यहीं से नोएडा के निर्माण की कहानी शुरू हो गई. नोएडा को बसाने की पीछे मकसद दिल्ली में तेजी से बस रहे कारखानों को एक नई जगह देना था और फिर आखिरकार नोएडा एक नए शहर के रूप में बना. आज नोएडा दिल्ली एनसीआर का हिस्सा है.

भारत-वेस्टइंडीज का वो खूनी टेस्ट मैच

क्रिकेट के इतिहास में एक ऐसी घटना हुई जो बेहद भयानक थी. साल 1976 में जब भारतीय टीम वेस्टइंडीज दौरे पर थी और जमैका के सबीना पार्क में वेस्टइंडीज के खिलाफ खेले जा रहे इस मैच का नजारा बेहद कांटेदार था. भारतीय टीम ने चौथी पारी में 403 रन का टारगेट हासिल कर लिया था. सीरीज 1-1 से बराबरी पर थी तो वहीं एक मैच ड्रॉ हो चुका था. उधर वेस्टइंडीज़ टीम को क्लॉइव लॉयड लीड कर रहे थे. बस वेस्टइंडीज ने खूनी खेल की तैयारी कर ली. वेस्टइंडीज के गेंदबाजों ने मैदान में तेज गेंदबाजी शुरू कर दी और भारतीय खिलाड़ियों को घायल करना शुरू कर दिया. अंशुमन गायकवाड़ के बाएं कान पर चोट लगी थी और उन्हें अगले दो दिन अस्पताल में रहना पड़ा. इसी तरह माइकल होल्डिंग की तेज़ गेंद बृजेश पटेल के चेहरे पर लगी, जिससे डॉक्टरों को उनके मुंह पर टांके लगाने पड़े. गुंडप्पा विश्वनाथ भी चोटिल हुए और उन्हें भी अस्पताल जाना पड़ा. इसके अलावा कप्तान बिशन सिंह बेदी और चंद्रशेखर भी चोटिल हो गए. आखिरकार इस मैच में भारतीय टीम, मैच 10 विकेट से हार गई और सीरीज भी 1-2 से गंवा दिया. लेकिन ये वेस्टइंडीज के खूनी खेल की कहानी क्रिकेट जगत में हमेशा के लिए दर्ज हो गई.

संविधान में जुड़ा सेकुलर

संविधान में 42वां संशोधन साल 1976 में किया गया. जब देश में इंदिरा गांधी की सरकार थी और देश आपातकाल की स्थित से गुजर रहा था. इसी बीच इंदिरा गांधी ने संविधान के प्रस्तावना में संशोधन किया. साल 1976 में संविधान की प्रस्तावना में 'सेक्युलर' शब्द को शामिल किया गया. इसके पीछे ये तर्क दिया गया कि देश का कोई अपना धर्म नहीं है और देश सारे धर्मों का समान रूप में आदर करेगा. प्रस्तावना में देश के सभी नागरिकों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता और समानता का अधिकार दिया गया और भाईचारे को मजबूत करने के लिए इस शब्द को जोड़ा गया. इसके अलावा इंदिरा गांधी सरकार ने समाजवादी (सोशलिस्ट) शब्द को भी 42 वें संविधान संशोधन में शामिल किया.

संजय गांधी की दोस्त ने कराई 8 हजार लोगों की नसबंदी

आपातकाल के दौरान इमरजेंसी की ग्लैमर गर्ल ने खूब चर्चाएं बटोरी थी. जिसने इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी के कहने पर 8 हजार लोगों की नसबंदी करवाई थी. इमरजेंसी की ग्लैमर गर्ल रुखसाना सुल्ताना  संजय गांधी की खास दोस्त हुआ करती थीं. जबकि इंदिरा गांधी और संजय की पत्नी मेनका गांधी, रुखसाना को कताई पसंद नहीं करती थीं. लेकिन संजय गांधी की मेहरबानी के चलते रुखसाना से पंगा लेने की गुस्ताखी कोई नहीं करता था. यही वजह है कि संजय गांधी के कहने पर 1976 में रुखसाना ने 8 हजार लोगों की नसबंदी कराई. संजय गांधी का मानना था कि बढ़ती आबादी ही देश की सारी समस्याओं की जड़ है और यही एक तरीका है जिससे जनसंख्या पर कंट्रोल किया जा सकता है. इसके चलते उन्होंने सारी सरकारी मशीनरी को इस परिवार नियोजन के झोंक दिया था. इसके लिए पुरूषों की नसबंदी की जाने लगी. कांग्रेस नेता रशीद किदवई की किताब '24 अकबर रोड' के मुताबिक दिल्ली में नसबंदी की जिम्मेदारी संजय गांधी ने अपनी दोस्त रुखसाना सुल्ताना को सौंपी. रुखसाना ने जामा मस्जिद इलाके में करीब 8 हजार लोगों की नसबंदी कराई. इसमें 60 साल के बुजुर्गों और 18 साल के नौजवान शामिल थे. नसबंदी करवाने के बाद सरकार से रुखसाना को कथित तौर पर 84 हजार रुपए मिले.

टाइम मैग्ज़ीन के कवर पर छपने वाली पहली भारतीय परवीन बाबी

1970 और 1980 के दशक में भारतीय सिनेमा की छवि बेहद अलग थी. लेकिन इसी बीच एक ऐसी अभिनेत्री आई जिसने हिंदी सिनेमा का रुख ही  बदल दिया, वो थीं परवीन बाबी. साड़ी-सूट में दिखने वाली अभिनेत्रियों के उस दौर में परवीन बाबी ने अपनी बोल्डनेस के जरिए बॉलीवुड की तस्वीर बदल दी. बोल्ड और बिंदास छवि वाली परवीन बाबी ने हिंदी फिल्मों की दिशा और दशा दोनों को बदलने का काम किया. यही वजह है कि उस दौर में परवीन बाबी के चर्चे सबसे ज्यादा होते थे. साल 1973 में फिल्म ‘चरित्र’ से फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा और जल्द ही एक बड़ी स्टार बन गईं. उन्होंने वैसे तो कई एक्टर्स के साथ काम किया लेकिन अमिताभ बच्चन के साथ उनकी जोड़ी पर्दे पर काफी सफल रही. इसी बीच साल 1976 में परवीन बाबी ने वो  मुकाम हासिल किया. जो किसी भी एक्ट्रेस ने उस वक्त हासिल नहीं किया था. परवीन बाबी साल 1976 में टाइम मैगजीन ने अपने कवर पर जगह दी. उस वक्त वो महज 27 साल की थीं. परवीन टाइम मैगजीन के कवर पेज पर छपने वाली पहली भारतीय फिल्म स्टार थीं. परवीन बाबी की इस सफलता ने सबको चौंका दिया था.

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