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Amarnath Yatra: अमरनाथ जी की यात्रा पर गए लोगों के लिए अब सोलर सिस्टम का इस्तेमाल करके खाना तैयार किया जाएगा. यात्रा मार्ग के बालटाल बेसकैंप में 9 जुलाई को पहला पैराबोलिक सोलर कॉन्सेंट्रेटर (Parabolic Solar Concentrator) इंस्टॉल कर दिया गया है. अब इस हाईटेक सोलर पॉवर जेनरेट करने वाली मशीन से यहां पहुंचने वाले हजारों यात्रियों के लिए खाना भी पकाया जा सकेगा और उनके इस्तेमाल के लिए पानी भी गर्म किया जा सकेगा.
कैसे काम करता है ये पूरा सिस्टम?
इस सिस्टम को इंस्टॉल करने वाली टीम ने बताया कि इसे शेफलर सोलर डिश या पेराबोलिक सोलर कॉन्सेंट्रेटर के नाम से जाना जाता है. बालटाल बेस कैंप में लगाए गए इस सोलर कॉन्सेंट्रेटर पर 16 -16 स्क्वायर मीटर की दो डिश लगाई गई हैं. इन डिशेज पर लगे विशाल कांच पर जब सूरज की किरणें पड़ती हैं तो उसका रिफ्लेक्शन एक फोकल पॉइंट पर इकट्ठा होता है और जिसके चलते सोलर एनर्जी एक जगह कॉन्संट्रेट होती है और उसकी मदद से कुकिंग की जा सकती है. हालांकि इस टेक्नोलॉजी को भारत में आए करीब 20 साल हो चुके हैं, लेकिन अमरनाथ यात्रा मार्ग पर इसका प्रयोग पहली बार किया जा रहा है.
क्यों पड़ी इसकी जरूरत?
अमरनाथ यात्रा रूट में बालटाल बेसकैंप एक ऐसा प्वाइंट है जहां कई लंगर हैं और जहां हर रोज सैकड़ों की संख्या में यात्री पहुंचते हैं. इन लंगरों में यात्रियों के लिए खाना तैयार किया जाता है. लंगरों में खाने को पकाने के लिए जो आग जलाई जाती है, उसमें लकड़ी, कोयला, कार्डबोर्ड, प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है. इससे न सिर्फ प्रदूषण होता है, बल्कि इसके चलते पेड़ों की कटाई भी लगातार हो रही है. लेकिन अब इस प्रॉब्लम का सॉल्युशन पैराबोलिक सोलर कॉन्सन्ट्रेटर के रूप में ढूंढ लिया गया है. बालटाल में लगा यह सोलर कॉन्संट्रेटर एक सक्सेसफुल डिजाइन है जिसमें 700 डिग्री तक टेम्प्रेचर अचीव किया जा सकता है.
प्रदूषण- एक बड़ा कारण
दरअसल अमरनाथ यात्रा के बाद वायु प्रदूषण कई गुना बढ़ जाता है और उसका कारण है, वहां लगातार जलाई जाने वाली लकड़ी, कोयला, कार्डबोर्ड और प्लास्टिक. लेकिन अब यह सोलर कॉन्सेंट्रेटर यहां के वायु प्रदूषण को कम करने में एक अहम भूमिका निभाएगा. यूनाइटेड नेशन के सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल 2030 मिशन के अंतर्गत भारत सरकार लगातार यह प्रयास कर रही है कि जल्द से जल्द रिन्यूएबल एनर्जी सोर्सेस और सस्टेनेबल डेवलपमेंट के अंतर्गत आने वाले इनोवेशन्स को जगह दी जाए. इससे न सिर्फ प्रदूषण घटता है बल्कि अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की तरफ हम आगे बढ़ते हैं. अगर ये प्रयोग सफल रहा तो आने वाले सभी धार्मिक आयोजनों में लकड़ी, कचरा व अन्य फॉसिल फ्यूल का न सिर्फ प्रयोग घटेगा बल्कि इससे प्रदूषण को भी कम किया जा सकेगा.
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