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Zee News Time Machine: वो साल जब कपिल देव ने अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहिम को ड्रेसिंग रूम से निकाला, जब ऑपरेशन मेघदूत के जरिए भारत ने किया सियाचिन को फतह. इस साल ही भारतीय क्रिकेट में डेब्यू करने से पहले आखिर क्यों पाकिस्तान की तरफ से क्यों खेले थे सचिन तेंदुलकर. क्यों दिल्ली के तीस हजारी कांड के बाद फूंके गए थे IPS ऑफिसर किरण बेदी के पुतले और रामायण को दूरदर्शन पर टेलीकास्ट ना करने के लिए कांग्रेस ने बनाया था कौन सा बहाना. आइए आपको बताएं 1987 की दस अनसुनी अनकही कहानियों के बारे में...
घर-घर में रामायण
दूरदर्शन पर जब रामायण धारावाहिक का प्रसारण होता तो पूरे देश में कुछ अलग ही तरह की तस्वीर दिखाई देती थी. 25 जनवरी 1987 को रामानंद सागर के धारावाहिक रामायण का पहला एपिसोड दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ. पहली बार रंगीन में रामायण देखने के लिए बच्चे, बूढ़े और जवान सभी टेलिविजन से बंध गए. फिर क्या था रामायण ने ऐसा इतिहास बनाया, जिसे आज तक कोई भी टेलिविजन सीरियल तोड़ नहीं पाया. टीवी पर रामायण देखने के लिए सिर्फ परिवार ही नहीं बल्कि पड़ोसी और मोहल्ले के लोग भी इकट्ठा हो जाते थे. 'राम-सीता' के किरदार स्क्रीन पर आते ही लोग श्रद्धापूर्वक हाथ जोड़ लेते थे.
जब रामानंद सागर ने धारावाहिक 'रामायण' बनाने का ऐलान किया, तो शायद उन्हें भी इसके इतना कामयाब होने का यकीन नहीं था. ज्यादातर लोगों ने रामायण सीरियल बनाने के उनके इस फैसले की आलोचना की. लेकिन रामानंद सागर ने अपना फैसला नहीं बदला. सरकार भी रामायण और महाभारत जैसे सीरियल के दूरदर्शन पर प्रसारण को लेकर तय नहीं कर पा रही थी. हालांकि दूरदर्शन से जुड़े अधिकारियों की तरफ से इसके पक्ष में दलील रखने के बाद इन सीरियल्स को हरी झंडी मिल गई.
जब सियाचिन में लहराया तिरंगा
पाकिस्तान की नजर हमेशा से ही सियाचिन हड़पने पर रही है. 1984 में एक बार फिर उसने सियाचिन पर कब्जा करने की चाल चली. लेकिन उसके नापाक प्लान की खुफिया जानकारी मिलने के बाद भारतीय सेना न सिर्फ चौकन्नी हो गई, बल्कि उसने सियाचिन पर नियंत्रण की योजना भी तैयार कर ली. इसे नाम दिया गया ऑपरेशन मेघदूत और इसकी जिम्मेदारी लेफ्टिनेंट जनरल प्रेम नाथ हून को सौंपी गई.
12 अप्रैल 1984 से 'ऑपरेशन मेघदूत' शुरू किया गया जिसको सफल बनाने में भारतीय वायु सेना के एमआई-17, एमआई 6 एमआई 8 और चीता हेलीकॉप्टरों ने भी काफी अहम भूमिका निभाई थी. ये अपनी तरह का एक अलग ही ऑपरेशन था जिसमें भारतीय सैनिकों ने माइनस 60 से माइनस 70 डिग्री के तापमान में सबसे ऊंची पहाड़ियों पर जाकर 1987 में फतह हासिल की थी. पाकिस्तान के लिए ये हार काफी शर्मनाक थी.
'शारजाह ड्रेसिंग रूम कांड'
अंडरवर्ल्ड डॉन के नाम से मशहूर दाऊद इब्राहिम का नाम सुनते ही लोगों के अंदर डर का खौफ बैठ जाता था. लेकिन क्या आप जानते हैं 1987 में एक मैच के दौरान तत्कालीन क्रिकेट कप्तान कपिल देव दाऊद इब्राहिम से शारजाह ड्रेसिंग रूम में भिड़ गए थे. पाकिस्तान के खिलाफ मैच खेलने से पहले दाऊद इब्राहिम इंडियन क्रिकेटर के ड्रेसिंग रूम में पहुंचा और उसने टीम इंडिया के खिलाड़ियों से कहा अगर कल होने वाले मुकाबले में भारतीय टीम पाकिस्तान को हरा देती है तो मैं सभी खिलाड़ियों को एक-एक टोयोटा कोरोला कार गिफ्ट करूंगा.
दाउद का ऑफर सुनते ही सभी क्रिकेटर एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे, लेकिन कपिल देव तभी प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म कर ड्रेसिंग रूम में आए और उन्होनें जब ये ऑफर की बात सुनी तो दाउद की तरफ देखते हुए कहा - ये कौन है, चल बाहर चल. कपिल की ये बात सुनकर दाउद उस वक्त बाहर आ गया. लेकिन जब कपिल को दाउद इब्राहिम के बारे में पता चला तो कपिल देव ने इस पर खेद भी प्रकट किया. आज भी कपिल का ये किस्सा 'शारजाह ड्रेसिंग रूम कांड' के नाम से जाना जाता है.
जब पाकिस्तानी क्रिकेटर बने सचिन तेंदुलकर
अगर आपसे कहा जाए कि मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर भारतीय टीम से पहले पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के लिए खेले थे. तो क्या आप इस पर यकीन कर पाएंगे. शायद नहीं, लेकिन ये सच है. वो साल 1987 का था और उस वक्त सचिन महज 14 साल के थे. हालांकि वो मैच प्रैक्टिस मैच था. जिसमें सचिन पाकिस्तान की तरफ से खेले. दरअसल पाकिस्तानी टीम पांच टेस्ट मैच और 6 वनडे खेलने के लिए भारत दौरे पर आई थी. सीरीज की शुरुआत से पहले 20 जनवरी 1987 को भारत और पाकिस्तान के बीच मुंबई के ब्रेबोर्न स्टेडियम में 40-40 ओवरों का एक प्रदर्शनी मुकाबला खेला गया. सचिन तेंदुलकर ने इसका जिक्र अपनी ऑटोबायोग्राफी 'प्लेइंग इट माई वे' में किया है.
जब भारत की टीम बल्लेबाजी कर रही थी, तो लंच में जावेद मियांदाद और अब्दुल कादिर ने फील्ड छोड़ दी. पाकिस्तान के पास सब्सटीट्यूट खिलाड़ी का ऑप्शन ही नहीं था. ऐसे में 14 साल के सचिन को पाकिस्तान के लिए फील्डिंग करने उतरना पड़ा. खुद तेंदुलकर ने पाकिस्तानी टीम से फील्डिंग के लिए पूछा था. सचिन तेंदुलकर ने पाकिस्तान की टीम के लिए करीब आधे घंटे तक फील्डिंग की. पाकिस्तान टीम के कप्तान इमरान खान ने सचिन को वाइड लॉन्ग ऑन बाउंड्री पर तैनात किया गया था. दिलचस्प बात ये है कि सचिन तेंदुलकर ने बाद में अपने इंटरनेशनल क्रिकेट करियर की शुरुआत 16 साल की उम्र में पाकिस्तान के खिलाफ ही की.
सुनील गावस्कर ने रचा इतिहास
टीम इंडिया के पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर की गिनती दुनिया के सबसे बेहतरीन बल्लेबाजों में की जाती है. शायद यही वजह है कि वो सचिन तेंदुलकर समेत हजारों क्रिकेटरों के रोल मॉडल रहे हैं. लेकिन क्या आप जानते है कि टेस्ट मैच में सबसे पहले 10 हजार रन बनाने वाले क्रिकेटर भी सुनील गवास्कर ही हैं. जी हां 1987 में सुनील गवास्कर ने अहमदाबाद में पाकिस्तान के खिलाफ खेलते हुए टेस्ट क्रिकेट में अपने 10 हजार रन पूरे किए थे. ऐसा करने वाले वो दुनिया के पहले क्रिकेटर थे. अपने पूरे करियर के दौरान बिना हेलमेट बल्लेबाजी करने वाले गावस्कर, गेंदबाजों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं थे. 16 साल के लंबे करियर में उन्होंने 233 अंतर्राष्ट्रीय मैचों में 13,214 अंतर्राष्ट्रीय रन बनाकर इतिहास रचा था.
श्रीलंका में राजीव गांधी पर हमला!
साल 1986 में जहां राजीव गांधी पर दिल्ली के राजघाट पर हमला हुआ तो वहीं, हमले की ये घटना एक बार फिर दोहराई गई. लेकिन इस बार वक्त और ठिकाना दूसरा था. इस बार राजीव गांधी पर हमला हुआ भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में और ये हमला करने वाला श्रीलंका का एक नेवी अफसर था. 1987 में भारत और श्रीलंका के बीच शांति समझौता हुआ, जिसके तहत राजीव गांधी कोलंबो पहुंचे थे. वहां उन्हे गार्ड ऑफ ऑनर दिया जा रहा था. इस दौरान आचानक एक सैनिक ने उनपर हमला कर दिया. नौ सैनिक विजिथा रोहन विजेमुनी ने पीएम राजीव गांधी पर पर बंदूक की बट से वार किया. राजीव गांधी सही समय पर झुक गए. लेकिन राइफल उन्हें जरूर लगी. इसके बाद राजीव गांधी को फौरन उनके गार्ड्स ने घेर लिया. ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री पर विदेश में हमला हुआ हो. हालाकि तुरंत ही राजीव गांधी पर हमला करने वाले विजेमुनी को गिरफ्तार कर लिया गया. जिसके बाद उसका कोर्ट मार्शल हुआ और उसे छह साल की सजा सुनाई गई.
जयललिता की अधूरी दास्तां
जयललिता अन्नाद्रमुक के संस्थापक और तमिल फिल्म एक्टर एमजी रामचंद्रन उर्फ एमजीआर के बेहद करीब थीं. जयललिता ने एमजीआर के साथ 28 फिल्मों में काम किया. एमजीआर और जयललिता के रिश्ते ने काफी सुर्खियां बटोरी. जयललिता एक बार खुद बता चुकी थीं कि एक बार थार रेगिस्तान में शूटिंग के दौरान एमजीआर ने पीछे से आ कर उन्हें गोदी में उठा लिया था ताकि उनके पैर न जलें. एमजीआर तमिल सिनेमा के सुपरस्टार तो थे ही, साथ ही वे भारतीय राजनीति के सम्मानित नेता भी थे. उनके कहने पर जयललिता ने फिल्मी दुनिया को अलविदा कह कर राजनीति में एंट्री ले ली.
24 December 1987 के दिन एमजीआर ने लंबी बीमारी के बाद दुनिया को अलविदा कह दिया. ये बात जयललिता के लिए किसी सदमें से कम नहीं थी. एमजी रामचंद्रन के अखिरी दर्शन के लिए जब जयललिता राजाजी हॉल पहुंचीं तो उन्हें वहां पर घुसने नहीं दिया गया. लेकिन फिर भी जयललिता ने हार नहीं मानी और किसी तरह MGR के दर्शन किए. एमजीआर की अंतिम यात्रा में भी जयललिता के संग बदसलूकी हुई थी. बावजूद इसके जयललिता 21 घंटे तक उस जगह पर मौजूद रही जहां एमजीआर का शव रखा था. इतना ही नहीं जब एमजीआर का अंतिम संस्कार किया गया तो वहां जयललिता को नहीं जाने दिया गया.
सती प्रथा का आखिरी शिकार!
सती प्रथा भारतीय समाज के इतिहास में सबसे शर्मनाक कुरीतियों में से एक है. भारत में सती प्रथा की आखिरी घटना हुई थी 1980 के दशक में. सती प्रथा की आखिरी पीड़ित थी 1987 में राजस्थान की रहनेवाली एक 18 साल की लड़की ‘रूप कंवर’ थी. रूप कंवर राजस्थान के सीकर जिले के एक राजपूत परिवार की लड़की थी. जनवरी 1987 में उसकी शादी देवराला गांव के रहने वाले, 24 साल के माल सिंह शेखावत से करवा दी गई. माल सिंह कॉलेज में बी.एस.सी का छात्र था और शादी के कुछ ही महीनों बाद वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गया, जिसकी वजह से उसे अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा. लंबे समय तक अपनी ज़िंदगी के लिए लड़ने के बाद, 3 सितंबर 1987 को माल सिंह शेखावत का देहांत हो गया.
4 सितंबर 1987 को माल सिंह का अंतिम संस्कार किया गया. उसकी चिता पर उसकी पत्नी रूप कंवर को भी जिंदा जला दिया गया था. महिला संगठनों ने इस घटना पर खूब आपत्ति जताई थी. नारीवादी कार्यकर्ताओं और आंदोलनों के चलते साल 1987 में ही ‘सती निवारण कानून’ पारित किया गया. जिसमें एक साल से उम्रभर की कैद का प्रस्ताव रखा गया.
जेल तोड़कर भागे कैदी!
साल 1987 में बिहार में एक जेल को तोड़कर करीब 50 कैदी वहां से भाग गए थे. सुनने में आप चौंके लेकिन ये सच है कि अपराधी के तौर पर सलाखों के पीछे कैद 50 लोग भाग गए थे. 11 मार्च, 1987 ये वो तारीख है जब बेगूसराय की एक जेल को तोड़कर करीब 50 नामी और कुख्यात अपराधी 50 भाग गए थे. इस घटना के बाद हर तरफ अफरा तरफरी मच गई थी और प्रशासन भी अलर्ट हो गया था. लेकिन बिहार में अक्सर ऐसी घटनाएं हुई हैं. जब जेल तोड़कर कैदी भागे हैं. साल 1987 में देश के पहले ATM मशीन की शुरूआत हुई थी. ये वो साल जब देश में राजनीतिक और आर्थिक तौर पर स्थित बदल रही थी. तभी देश में पहले एटीम का आगाज हुआ.
देश का पहला एटीम मुंबई में एचएसबीसी बैंक की शाखा ने लगाया था. वहीं एटीम मशीन के अलावा देश में पहले डेबिट कार्ड की शुरूआत सिटी बैंक के द्वारा शुरू की गई. देश का पहला डेबिट कार्ड सिटी बैंक ने ही लॉन्च किया था. वहीं आंकड़ों के मुताबिक 2022 तक देश में करीब ढाई लाख से ज्यादा एटीम मशीनें काम कर रही हैं.
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