INDIA Opposition PM Face: एक ऐसा नेता जो नेहरू-शास्त्री के बाद पीएम पद का प्रबल दावेदार था लेकिन मौका मिला जब इमर्जेंसी खत्म होने के बाद देश में चुनाव कराए गए. विपक्ष ने मिलकर चुनाव लड़ा था. नाम था मोरारजी देसाई. अब 'I.N.D.I.A' विपक्षी गठबंधन उनका नाम ले रहा है. इसकी एक बड़ी वजह है.
Trending Photos
Sharad Pawar On Morarji Desai: जब से विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A बना है, इस बात की चर्चा लगातार हो रही है कि पीएम कैंडिडेट कौन होगा? पीएम मोदी के खिलाफ कौन? विपक्षी गठबंधन में पीएम के कई दावेदार... ऐसे न जाने कितने सवाल उठते रहते हैं. पिछले दिनों दिल्ली बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को पीएम कैंडिडेट और समन्वयक बनाने का प्रस्ताव भी आया था. हालांकि बात नहीं बनी. खरगे ने खुद कह दिया कि पहले हम जीत जाएं फिर पीएम कैंडिडेट तय कर लेंगे. प्रधानमंत्री पद का कोई चेहरा नहीं होने के बारे में जब गठबंधन के दिग्गज नेता शरद पवार से पूछा गया तो उन्होंने मोरारजी देसाई सरकार का उदाहरण दे दिया.
1977 में भी विपक्ष के पास चेहरा नहीं था?
पवार ने कहा कि आपातकाल के बाद 1977 के लोकसभा चुनाव में भी किसी को प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में पेश नहीं किया गया था. पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘लोकसभा चुनाव के बाद मोराराजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाया गया. कोई चेहरा सामने नहीं रखने का कोई असर नहीं दिखा. अगर लोग बदलाव के मूड में हैं तो वे बदलाव लाने के लिए निर्णय लेंगे.’ मोरारजी देसाई देश के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने थे और 1977 से 79 के बीच 856 दिन पद पर रहे.
कैसे बना था विपक्षी मोर्चा
चर्चा चली है तो यह समझना भी जरूरी है कि उस समय कैसे हालात थे. तब कांग्रेस के खिलाफ विपक्षी दल कैसे एकजुट हुए थे? दरअसल, इमर्जेंसी खत्म होने के बाद 18 जनवरी 1977 को इंदिरा ने राजनीतिक बंदियों को रिहा करने और आम चुनाव की घोषणा कर दी. इंदिरा के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले जेपी ने सभी विपक्षी दलों को एक मंच पर आमंत्रित किया. एक कमेटी बनी और 23 जनवरी 1977 को तय हुआ कि इंदिरा की कांग्रेस के खिलाफ पूरा विपक्षी मोर्चा एकजुट होकर चुनाव लड़ेगा. नाम रखा गया- जनता पार्टी. इसमें भारतीय जनसंघ, जनता मोर्चा, भारतीय लोकदल, सोशलिस्ट पार्टी, स्वतंत्र पार्टी, राजनारायण शामिल थे. संयुक्त निशान तय हुआ- हल लिया किसान. सबकी सहमति से जनता पार्टी के चेयरमैन बने मोरारजी देसाई. प्रवक्ता लालकृष्ण आडवाणी बने थे.
यह वास्तव में 'खिचड़ी पार्टी' या कहें कि सरकार थी. इसने प्रचार किया कि वह लोकतंत्र को फिर से स्थापित करने आई है. सिंहासन खाली करो जनता आती है... जैसे नारे इसी समय गूंजे. जगजीवन राम, हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे कई नेताओं ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी. जेपी आंदोलन का भी काफी असर हुआ था. कई नए नेता उभरे थे.
नतीजे चौंकाने वाले थे
इंदिरा और संजय गांधी भी चुनाव हार गए. कांग्रेस काफी पीछे रह गई और जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला. चंद्रशेखर वैसे मोरारजी के नाम पर सहमत नहीं थे. उन्होंने जगजीवन राम का नाम आगे किया. हालांकि उनके नाम पर सहमति नहीं बनी क्योंकि जगजीवन ने इमर्जेंसी का समर्थन किया था और मोरारजी जेल में रहे थे. जय प्रकाश नारायण ने भी मोरारजी के नाम पर सहमति जता दी. आखिरकार 24 मार्च 1977 को मोरारजी देसाई पीएम बन गए.
हालांकि 'खिचड़ी सरकार' में सब कुछ ठीक नहीं था. अनबन बढ़ी तो मोरारजी ने चरण सिंह और राज नारायण को पार्टी से निकाल दिया. बाद में वापसी तो हुई लेकिन फिर गेम बदला और सरकार के खिलाफ अविश्वास लाया गया. जनता पार्टी की सरकार गिर गई। आगे चरण सिंह को पीएम बनने का मौका मिला. हालांकि इंदिरा गांधी के समर्थन वापस लेने के बाद 1980 में फिर से चुनाव की घोषणा हो गई.