Arichalmunai Point: अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु के धनुषकोडी में अरिचल मुनाई प्वाइंट पहुंचे. माना जाता है कि इसी जगह पर राम सेतु का निर्माण शुरू हुआ था. पीएम मोदी ने वहां पूजा-अर्चना भी की.
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PM Modi Visits Ram Setu: श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में बन रहे भव्य मंदिर के गर्भगृह में सोमवार को होने वाले प्राण प्रतिष्ठा समारोह (Ram Mandir Pran Pratishtha) से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को तमिलनाडु के धमुषकोडी में रामसेतु को नमन किया. पीएम मोदी इन दिनों रामायण से जुड़े मंदिरों में दर्शन कर रहे हैं. इसकी शुरुआत महाराष्ट्र के नासिक में पंचवटी स्थित कालाराम मंदिर से की गई थी.
दक्षिण भारत में इसी सप्ताह पीएम मोदी ने आंध्र प्रदेश और केरल में भी रामायण से जुड़े मंदिरों में जाकर प्रार्थना की थी. तमिलनाडु में अरिचल मुनाई प्वाइंट पहुंचकर पीएम मोदी ने सागर पूजन किया. इसके बाद कोदंडारामास्वामी मंदिर में जाकर आशीर्वाद लिया. पीएम मोदी ने समुद्र तट पर रामसेतु के पास योग और प्राणायाम का भी अभ्यास भी किया.
वानरों की सहायता से नल और नील ने समुद्र पर 5 दिन में बना दिया था रामसेतु
तमिलनाडु के धनुषकोडी में अरिचल मुनाई प्वाइंट के बारे में माना जाता है कि यहीं पर राम सेतु का निर्माण शुरू हुआ था. रामायण में कहा गया है कि सुग्रीव के मंत्री नल और नील ने वानर सेना की सहायता से पांच दिन में ही राम नाम अंकित पत्थरों से समुद्र पर पुल बना दिया था. इस रामसेतु से ही होकर रामजी की सेना लंका तक पहुंची थी. आइए, जानते हैं कि रामसेतु का पौराणिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक और वैज्ञानिक आधार क्या- क्या है?
रामेश्वरम से लंका तक सागर पर बने रामसेतु को लेकर क्या कहते हैं धार्मिक ग्रंथ
रामायण और भागवत पुराण जैसे धार्मिक ग्रंथों राम सेतु को लेकर कहा गया है कि पंचवटी से माता सीता का हरण कर रावण लंका ले गया था. रामजी के कहने पर हनुमान जी ने लंका जाकर उनका पता लगाया था. इसके बाद रामजी बंदरों की सेना के साथ समुद्र किनारे पहुंचे. समुद्र के बताने पर नल और नील ने वानर सेना की सहायता से राम नाम अंकित पत्थरों से पांच दिन में लगभग 48 किलोमीटर लंबे रामसेतु का निर्माण किया था. इसके बाद सेना सहित रामजी लंका पहुंचे और रावण को युद्ध में मार गिराया.
धनुषकोडी में ही राम से मिले थे विभीषण, भगवान राम ने ही सेतु को समुद्र में छिपाया
पद्मपुराण में भी रामसेतु की चर्चा की गई है. इसके मुताबिक राम-रावण युद्ध से पहले धनुषकोडी में ही रावण के भाई विभीषण राम से मिले थे. रावण के मारे जाने के बाद विभीषण को लंका का राजा बनाया गया था. इसके बाद विभीषण के कहने पर भगवान राम ने अयोध्या जाने से पहले ही एक बाण चलाकर रामसेतु को पानी में दो से तीन फुट नीचे कर दिया था. इसीलिए इस जगह को धनुषकोडी कहा गया. इसका अर्थ है धनुष का अंत. दक्षिण भारत में प्रचलित कंबन रामायण में भी इस तरह से रामसेतु को तोड़ने का जिक्र मिलता है. हालांकि, महर्षि वाल्मीकि के लिखे रामायण में इस बारे में कोई चर्चा नहीं की गई है.
रामसेतु का क्या है ऐतिहासिक आधार, हिंद महासागर में क्या है भौगोलिक स्थिति
दक्षिण भारत में रामेश्वरम और श्रीलंका के बीच हिंद महासागर में आज भी पूर्वोत्तर दिशा में मन्नार के मध्य ऊंची उठी चट्टानों की एक सीरीज दिखती है. भारत में इन्हीं चट्टानों को रामसेतु के नाम से जाना जाता है. पूरी दुनिया में इसे आदम का पुल या एडम्स ब्रिज के नाम से भी पहचाना जाता है. मन्नार की खाड़ी और पाक स्ट्रेट मध्य को बीच से बांटने वाले रामसेतु का अस्तित्व जिस स्थान पर बताया जाता है, वहां समुद्र कम गहरा है. कहा जाता है कि 1480 ईस्वी तक यह रामसेतु समुद्र तल से ऊपर था. दावा किया जाता है कि 15वीं सदी में रामेश्वरम से रामसेतु पर पैदल चलकर मन्नार द्वीप तक जाया जा सकता था. हालांकि, समय के साथ समुद्री तूफानी से सागर की गहराई बढ़ती चली गई और यह पुल समुद्री सतह के नीचे हो गया.
कार्बन डेटिंग में रामायण काल का मिला रामसेतु का इतिहास, आज भी तैरते हैं पत्थर
धनुषकोडी से मन्नार द्वीप के पास के समुद्र तटों का इतिहास पता करने के लिए कार्बन डेटिंग भी की गई. बताया जाता है कि इसमें सामने आया है कि रामसेतु का इतिहास रामायण काल यानी त्रेतायुग के इतिहास से मिलती है. वाल्मीकि रामायण सहित दूसरे धार्मिक ग्रंथों में मिले रामसेतु को आर्कियोलॉजिकल सबूत के रूप में भी सामने रखा जाता है. इसके अलावा रामसेतु बहुत सुंदर सैंडबैंक और टापुओं की पूरी सीरीज के बीच स्थित है. इसके जरिए भारत और श्रीलंका दो देश आपस में जुड़ते हैं. धर्मग्रंथों में बताया गया है कि रामसेतु तैरने वाले पत्थरों से बनाया गया था. रामेश्वरम में आज भी ऐसे पत्थर मिलते हैं. इसे देखकर कोई भी आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह पाता.
अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा की तस्वीरों में भी रामसेतु के अस्तित्व की ओर इशारा
अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा की ली गई तस्वीरें भी रामसेतु के अस्तित्व की ओर इशारा करती हैं. साल 2002 में नासा ने सैटेलाइट से ली गईं रामसेतु की तस्वीरें जारी की थीं. इन तस्वीरों में पुल की आकृति साफ-साफ दिखाई दे रही थी. भारत में रामसेतु की प्रामाणिकता के लिए नासा की इन्हीं तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया था. हालांकि, एक दशक बाद 2012 में नासा ने कई अगर-मगर के साथ सफाई दी थी कि अमेरिका के स्पेस यात्रियों की ओर से अंतरिक्ष से ली गईं ये तस्वीरें रामसेतु के अस्तित्व का पुख्ता प्रमाण नही माना जा सकता है.
साइंस चैनल के टीवी शो एनशिएंट लैंड ब्रिज में रामसेतु को बताया सात हजार साल पुराना
साल 2017 में एक साइंस चैनल ने एनशिएंट लैंड ब्रिज नाम के एक टीवी शो में एक बार फिर से रामसेतु के बारे में बड़ा दावा किया गया था. इस शो में कहा गया था कि श्रीलंका और भारत के बीच 50 किलोमीटर की एक लंबी रेखा चट्टानों के बीच बनी है. बालू पर टिकी इन चट्टानों की उम्र सात हजार साल है. वहीं, जिस बालू पर ये चट्टानें टिकी हैं, वह भी चार हजार साल पुरानी हैं. इसके हवाले से टीवी शो में दावा किया गया था कि इन चट्टानों और बालू के बारे में रिसर्च की जाए तो कई और रहस्य का पता चल सकता है.
डायचे वेले की रिपोर्ट में रामायण काल में रामसेतु का दावा, इंसानों की बहुत बड़ी उपलब्धि
ऑर्कियोलॉजिस्ट और सदर्न यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर चेल्सी रोस ने डायचे वेले की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि अगर नासा की तस्वीरों और दूसरे सबूतों के आधार पर बात करें तो इस बात की पूरी संभावना है कि इंसानों ने ही रामसेतु को बनाया था. इस रिपोर्ट में भी कहा गया था कि रामायण काल में श्रीलंका और भारत के बीच काफी दूर-दूर से लाए गए पत्थरों से रामसेतु बनाया गया था. इसके लिए पत्थरों को बालू के ऊपर एक स्पेशल सीरीज में रखा गया था. चेल्सी रोस ने जोर देकर कहा था कि अगर यह सेतु इंसानों ने बनाया था तो यह इंसानों की अब तक बहुत बड़ी उपलब्धि है.