Nitish Kumar: कल खुद की निंदा, आज बताई अपनी मूर्खता... नीतीश क्यों कर रहे लगातार 'सेल्फ गोल'?
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Nitish Kumar: कल खुद की निंदा, आज बताई अपनी मूर्खता... नीतीश क्यों कर रहे लगातार 'सेल्फ गोल'?

Bihar CM: नीतीश की राजनीति पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट्स का कहना है कि पिछले कुछ सालों में उन्होंने भाषाई फूहड़ता का परिचय दिया है जो उनकी राजनीति के लिए काफी निराशाजनक है. क्योंकि उनकी जो छवि सुशासन बाबू की थी वह बयानों और पलटी मारने के चक्कर में धूमिल हो रही है.

Nitish Kumar: कल खुद की निंदा, आज बताई अपनी मूर्खता... नीतीश क्यों कर रहे लगातार 'सेल्फ गोल'?

Nitish Kumar: 'आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास... ये एक ऐसी कहावत है जिसके मानी कई बार राजनीति में भी फिट बैठते हैं. कुछ ही महीने पहले विपक्ष का मुख्य चेहरा बनने की रेस में सुशासन बाबू काफी आगे थे. हैदराबाद से कलकत्ता, दिल्ली से बंबई सब एक कर डाले... पीएम मोदी के खिलाफ सबको लामबंद करने लगे. लेकिन विपक्ष के एकजुट होते ही विपक्षी एकता को कांग्रेस ले उड़ी. सुशासन बाबू ने किक तगड़ी मारी थी लेकिन गोल सामने जाने की बजाय उनके पाले में ही हो गया. इंडिया गठबंधन में वो ढीले पड़ गए. अब फिलहाल वे फिर चर्चा में हैं. बिहार विधानसभा में 'सेक्स एजुकेशन' का महत्त्व बताते बताते इतने अलहदा हो गए कि भद पिट गई. अगले दिन कैमरा के सामने माफी मांगी. इसके एक दिन बाद ही बिहार विधानसभा में आरक्षण विधेयक पर मांझी से भिड़ गए और बुरा-भला कहने लगे. कहते-कहते ये बोल गए कि मैं बहुत मूर्ख था जो मांझी को सीएम बना दिया.

सेल्फ गोल में माहिर 'सुशासन बाबू'
दरअसल, ये सिलसिलेवार वाकये साफ-साफ बता रहे हैं कि नीतीश बाबू सेल्फ गोल करने में माहिर हैं. हालांकि वे पलटी मारने में भी उतने ही माहिर बताए जाते हैं और अपनी गलती सुधार करने में उनका औसत बाकियों से काफी भी है. लेकिन ये औसत कब तक सुधरा रह सकता है यह कोई नहीं बता सकता है. आखिर क्या कारण है कि नीतीश लगातार 'सेल्फ गोल' कर रहे हैं. महज एक दिन पहले ही उन्होंने अपने बयान की खुद ही निंदा कर डाली थी. लेकिन सवाल है कि उन्होंने ऐसे बयान क्यों दे दिया था. क्या उनका बयान महिलाओं के खिलाफ था? क्या उनके बयान का गलत मतलब निकाला गया? या फिर उनको ऐसा नहीं बोलना चाहिए था, ये सब बहस का विषय हो सकता है लेकिन एक चीज तो तय है कि आखिर नीतीश क्यों अपने ही जाल में फंस जा रहे हैं. 

बयान की चौतरफा आलोचना
गुरुवार को वे जब विधानसभा में मांझी को जलील कर रहे थे तो एक बात नोटिस करने वाली थी, बगल में बैठे तेजस्वी यादव उनको तब तक नहीं चुप करा रहे थे जब तक कि नीतीश ने ठीक से बोल नहीं लिया. यही उस दिन भी हुआ जब वे 'सेक्स एजुकेशन' को अपने शब्दों में समझा रहे थे तो तेजस्वी ने बाद में उनको अपने तरीके से डिफेंड किया. नीतीश के बयान की चौतरफा आलोचना हुई. अगले दिन नीतीश खुद मीडिया के सामने आए और अपने बयान की निंदा कर डाली और फिर सबसे माफी मांग ली. उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें ऐसा नहीं बोलना चाहिए था. उनके बयान पर राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी संज्ञान ले डाला.

खुद को ही बता दिया मूर्ख
फिर इधर अगले दिन आरक्षण विधेयक पर चर्चा के दौरान मांझी ने कुछ कह दिया तो मांझी पर बुरी तरह भड़कते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि, 'मेरी गलती है कि मैंने इस आदमी को मुख्यामंत्री बना दिया है. कोई सेंस नहीं है इसको. सारे लोग समर्थन कर रहे हैं. 2013 में जब छोड़ दिए थे तो अकेले थे. हम इसको बना दिया. जितना हमारी पार्टी के लोग थे कहने लगे दो महीने में गड़बड़ है इसको हटाइये. ये तो मेरी मूर्खता है कि इसको मुख्यामंत्री बना दिया.' इसके बाद नीतीश ने बीजेपी नेताओं की तरफ इशारा करते हुए कहा, 'ये गवर्नर बनना चाहता था इसको गवर्नर बना दीजिए.'

पीएम मेटेरियल वाली मान्यता से बाहर
यहां भी वे नाराज हो लिए. लेकिन इस बीच खुद को मूर्ख भी बता दिया. नीतीश कुमार की राजनीति पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट्स का कहना है कि संसद या विधानसभा के अंदर नेताओं को कमोबेश मर्यादित आचरण दिखाना चाहिए लेकिन नीतीश कुमार ने पिछले कुछ सालों में ऐसा नहीं किया है. कुछ सालों से उन्होंने जो भाषाई फूहड़ता का परिचय दिया है वो उनकी राजनीति के लिए काफी निराशाजनक है. उनकी जो छवि सुशासन बाबू की थी वह धूमिल होती दिख रही है. इसका कारण क्या है. कुछ का मानना है कि सत्ता के लिए वो जबरदस्त पलटी मारते हैं ये तो सबको पता हो गया लेकिन अपनी बात सही सिद्ध करने के लिए वे बयान भी ऐसा दे सकते हैं जो शायद ही किसी को रास आए. इसका कारण क्या है ये तो वही जानें लेकिन एक बात तय है कि कभी पीएम मेटेरियल माने जाने वाले नीतीश उस मान्यता से बाहर आ चुके हैं.

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