Why Congress Lost in Haryana: हरियाणा चुनाव में माना जा रहा था कि बीजेपी के खिलाफ एंटी इन्कमबेंसी है और लोग सरकार बदलना चाहते हैं. कांग्रेस महंगाई, बेरोजगारी, अग्निवीर और किसानों के मुद्दे पर जमकर सैनी सरकार को घेर रही थी. लेकिन बावजूद इसके आखिर क्यों कांग्रेस जीत नहीं पाई. चलिए जानते हैं.
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Haryana News: सारे एग्जिट पोल्स को ध्वस्त करते हुए मंगलवार को जब हरियाणा के चुनावी नतीजे जारी हुए तो लोग हैरान रह गए. एग्जिट पोल्स में कांग्रेस की बंपर जीत का अनुमान लगाया गया था, लेकिन हुआ बिल्कुल उल्टा. बीजेपी तीसरी बार हरियाणा की सत्ता पर काबिज होने जा रही है. 2019 के विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस को 31 सीटें मिली थीं, इस बार रुझानों में वह 36 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है. जबकि 40 सीट जीतने वाली बीजेपी इस बार 48 सीटों पर आगे है. माना जा रहा है कि नतीजों में ज्यादा फेरबदल नहीं होगा.
हरियाणा चुनाव में माना जा रहा था कि बीजेपी के खिलाफ एंटी इन्कमबेंसी है और लोग सरकार बदलना चाहते हैं. कांग्रेस महंगाई, बेरोजगारी, अग्निवीर और किसानों के मुद्दे पर जमकर सैनी सरकार को घेर रही थी. लेकिन बावजूद इसके आखिर क्यों कांग्रेस जीत नहीं पाई. चलिए जानते हैं.
हुड्डा और सैलजा की तकरार
हरियाणा में कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा कारण अंदरूनी कलह माना जा रहा है. सैलजा और भूपिंदर सिंह हुड्डा के बीच तकरार ने कांग्रेस का भारी नुकसान कराया. लंबे वक्त से हरियाणा कांग्रेस में सैलजा और हुड्डा के बीच तकरार का दौर चल रहा है. हुड्डा की जहां मजबूत पकड़ जाट वोटरों में है तो सैलजा दलित हैं. दोनों ही कांग्रेस के लिए बराबर अहम हैं. कांग्रेस ने इस बात का भी खुलासा नहीं किया कि अगर जीते तो कौन मुख्यमंत्री बनेगा, जिससे लोगों के बीच असमंजस कायम रहा.
चुनावी कैंपेन रहा बेअसर
10 साल से बीजेपी हरियाणा की सत्ता में है और एंटी इन्कमबेंसी को कांग्रेस भुनाने में असफल रही. पार्टी का चुनावी कैंपेन पूरी तरह बेअसर दिखा. कांग्रेस केंद्रीय स्तर पर बीजेपी की परफॉर्मेंस को लेकर हमलावर रही, जिसमें हरियाणा के लोकल मुद्दे कहीं खो गए. बेरोजगारी, किसान और कानून एवं व्यवस्था जैसे मुद्दों को उठाया जरूर गया लेकिन कांग्रेस वोटर्स के साथ कनेक्ट कर पाने में नाकाम रही. जबकि बीजेपी का कैंपेन स्थानीय मुद्दों, राष्ट्रवाद और पीएम मोदी की पॉपुलैरिटी पर फोकस रहा.
समीकरण साधने में कांग्रेस फेल
चुनावी जीत के लिए हरियाणा में जातिगत समीकरण बेहद अहम है. इसी मामले में कांग्रेस से गलती हो गई. वह विभिन्न समुदायों का वोट हासिल करने और जातिगत समीकरण साधने में पूरी तरह चूक गई. भले ही भूपिंदर सिंह हुड्डा की जाट वोटर्स के बीच पकड़ हो लेकिन शहरी वोटर्स, गैर-जाट वोटर्स और अन्य समुदायों के वोट वह हासिल नहीं कर पाई. दूसरी ओर बीजेपी को गैर जाट और शहरी वोटर्स का खूब वोट मिला. इसके अलावा जेजेपी और आईएनएलडी जैसी क्षेत्रीय पार्टियों से भी कांग्रेस तालमेल नहीं बैठा पाई. इन्होंने भी वोट काटने का ही काम किया.
ब्रैंड मोदी को बीजेपी ने खूब भुनाया
बीजेपी के खिलाफ एंटी इन्कमबेंसी की लहर थी. लेकिन इसके बावजूद बीजेपी स्थानीय वास्तविकताओं के मुताबिक अपनी रणनीति को ढालकर नुकसान को कुछ हद तक कम करने में कामयाब रही. भले ही पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की किसान आंदोलन और कानून एवं व्यवस्था को हैंडल करने को लेकर आलोचना की जाती है लेकिन उन्होंने अपने दामन पर भ्रष्टाचार के छींटे आने नहीं दिए. गैर-जाट समुदायों से उनकी वोट की अपील के कारण वोट छिटके नहीं. इसका फायदा बीजेपी को मिला. इसके अलावा राष्ट्रवाद और ब्रैंड नरेंद्र मोदी को भी बीजेपी ने जमकर भुनाया. इसका सबसे ज्यादा असर पड़ा अर्ध-शहरी और शहरी वोटर्स पर, जिनका ज्यादा फोकस स्थानीय मुद्दों पर कम और केंद्रीय मुद्दों पर ज्यादा था.
निर्दलीयों और क्षेत्रीय पार्टियों का उभार
10 साल बाद सत्ता हासिल करने का कांग्रेस का ख्वाब तोड़ने में क्षेत्रीय पार्टियों का भी खासा अहम रोल रहा. दुष्यंत चौटाला की जेजेपी चुनाव में अहम प्लेयर बनकर उभरी थी खासकर जाट वोटर्स और ग्रामीण क्षेत्रों में. लेकिन जेजेपी ने कांग्रेस का वोट शेयर काटने का काम किया.
इसलिए तरह कमजोर आईएनएलडी की अभी भी अपने कोर वोट बेस पर पकड़ है. इन क्षेत्रीय पार्टियों ने कांग्रेस के वोटों को पंचर कर दिया और सत्ता में आने का ख्वाब भी.