Analysis: हमास, हिजबुल्लाह और अब असद सरकार... क्या कमजोर पड़ गया ईरान? परमाणु बम का क्या होगा
Advertisement
trendingNow12552205

Analysis: हमास, हिजबुल्लाह और अब असद सरकार... क्या कमजोर पड़ गया ईरान? परमाणु बम का क्या होगा

Has Iran Become Weak: इजरायल के साथ लंबे युद्ध के बीच आतंकी समूह हमास के पस्त हो जाने और हिजबुल्लाह के सीजफायर के लिए मजबूर हो जाने, इजरायल के ईरान पर पलटवार और अब सीरिया में गृह युद्ध के चलते असद शासन के तख्तापलट का मध्य-पूर्व में बड़ा जियोपॉलिटिकल बदलाव आया है. दुनिया के सामने बड़ा सवाल है कि क्या इन सबसे ईरान कमजोर पड़ गया है और अब भी परमाणु बम बनाने की होड़ में शामिल होगा? 

Analysis: हमास, हिजबुल्लाह और अब असद सरकार... क्या कमजोर पड़ गया ईरान? परमाणु बम का क्या होगा

Iran Race For Nuclear Bomb: पहले इजरायल के साथ युद्ध में फिलिस्तीन पर कब्जा जमाए आतंकी समूह हमास की कमर टूटी, फिर लेबनान के एक हिस्से पर शासन कर रहे आतंकी समूह हिजबुल्लाह को बहुत कुछ गंवाने के बाद सीजफायर पर मजबूर होना पड़ा. इसके बाद इजरायल ने ईरान पर करारा पलटवार कर दुनिया भर को चौंका दिया और फिर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत हो गई. इन सबके बाद सीरिया में गृह युद्ध के चलते पांच दशक से भी ज्यादा समय से सत्ता पर काबिज असद खानदान का पतन हो गया.

मध्य-पूर्व में जियोपॉलिटिक्स बदला, एक के बाद एक कई बड़ी घटना 

एक के बाद एक सामने आए इन सब बड़े घटनाक्रमों ने मध्य-पूर्व की पूरी जियोपॉलिटिक्स को ही बदल डाला है. इसका सबसे ज्यादा और बुरा असर ईरान पर पर हुआ है. दुनिया भर में सवाल उठ रहा है कि लगातार ऐसे उठा-पटकों के बाद क्या ईरान वाकई कमजोर पड़ गया है? हालांकि, ईरान समर्थित आतंकी समूह हिजबुल्लाह के घुटने पर आने के बावजूद ईरान ने अमेरिका और इजरायल के खिलाफ आग उगलना जारी रखा हुआ था, लेकिन अब बदले हालात में चर्चा शुरू हो गई है कि असद के पतन के बाद क्या ईरान परमाणु बम बनाने की होड़ में शामिल होगा? 

ट्रंप से बातचीत या परमाणु बम की होड़, ईरान के सामने क्या विकल्प? 

सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल-असद को सत्ता से बेदखल करने का मतलब यह हो सकता है कि अब ईरान को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ बातचीत करने और परमाणु बम बनाने की होड़ में से किसी एक को चुनना पड़ सकता है. बशर अल-असद की सरकार का तख्तापलट मध्य पूर्वी भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जिसने सुन्नी मुस्लिम बहुल सीरिया में अल्पसंख्यक अलावी समुदाय के असद खानदान के पांच दशकों से अधिक के प्रभुत्व को समाप्त कर दिया है.

13 साल के गृहयुद्ध के बाद असंभव उपलब्धि, असद सत्ता से बेदखल

मध्य-पूर्व के समाचारों की बात करें तो सीरिया में असद शासन का नाटकीय पतन उसके सैन्य, राजनीतिक और कूटनीतिक ताकतों के गिरावट को भी उजागर करता है जिसने विद्रोहियों को प्रोत्साहित किया और शासन की सुरक्षा को कमजोर किया. छह महीने की सावधानीपूर्वक और योजनाबद्ध आक्रामक कार्रवाई में, सीरियाई विद्रोहियों ने 13 साल के गृहयुद्ध के बाद असंभव लगने वाली उपलब्धि हासिल कर ली. उन्होंने राष्ट्रपति बशर अल-असद को सत्ता से बेदखल कर दिया.

अलेप्पो और दमिश्क पर विद्रोहियों के कब्जे से सीरिया में तख्तापलट

सीरियाई राष्ट्रीय सेना (एसएनए) के समर्थन से इस्लामवादी आतंकी समूह हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के नेतृत्व में ऑपरेशन अभूतपूर्व गति से आगे बढ़ा. इसके दो सप्ताह के भीतर ही विद्रोहियों ने सीरिया के दूसरे सबसे बड़े शहर अलेप्पो पर कब्जा कर लिया और फिर दक्षिण में दमिश्क की ओर बढ़ गए. रविवार को दमिश्क पर विद्रोहियों के कब्जे के साथ ही असद शासन पूरी तरह से ढह गया था और सीरिया में अलावी परिवार का निरंकुश शासन समाप्त हो गया.

असद और उसके सहयोगियों की कमज़ोरी से विद्रोहियों का फ़ायदा?

विद्रोहियों के इस एकजुट हमले ने असद और उसके सहयोगियों की मौजूदा कमज़ोरी के दौर का फ़ायदा उठाया. सीरिया में दशकों से लगातार चल रहे भ्रष्टाचार और आर्थिक कुप्रबंधन ने असद की सेना को खोखला कर दिया था, जिससे वह विद्रोहियों की तेज़ी से बढ़ती बढ़त का मुकाबला करने में असमर्थ हो गई थी. यूक्रेन में अपने युद्ध पर ध्यान केंद्रित करने के कारण रूस का कम होता समर्थन और हिज़्बुल्लाह लड़ाकों की गैरमौजूदगी ने इस कमज़ोरी को और भी जटिल बना दिया था. क्योंकि उन्हें लेबनान में इज़राइली हमलों का मुकाबला करने के लिए फिर से तैनात किया गया था. 

सीरिया में असद शासन का पतन कैसे बनी ईरान की बड़ी चुनौती?

असद शासन का पतन ईरान के लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर रहा है, इसकी क्षेत्रीय रणनीति के केंद्र पर प्रहार करता है और इसके "प्रतिरोध की धुरी" को कमज़ोर करता है. सीरिया लंबे समय से लेबनान में हिज़्बुल्लाह के लिए ईरानी हथियारों का एक महत्वपूर्ण जरिया था, अब इस श्रृंखला की एक खोई हुई कड़ी बन गया है. जैसे-जैसे ईरान अपनी स्थिति को फिर से निर्धारित कर रहा है. ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई शासन को भी अब अस्तित्व के संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है.

अस्तित्व के संघर्ष के दौर में ईरान के सामने हैं कई बड़े सवाल  

ईरान के सामने अस्तित्व के संघर्ष के दौर में कई बड़े सवाल मुंह-बाए खड़े हो गए हैं. पहला सवाल यह है कि क्या उसे आगे के नुकसानों से बचने के लिए और अपने क्षेत्रीय प्रभाव को फिर से स्थापित करने के लिए एक उपकरण के रूप में परमाणु हथियार का इस्तेमाल करना चाहिए? दूसरा प्रश्न है कि क्या ईरान के लोग हमास और हिजबुल्लाह और अब अल-असद के नुकसान से कमजोर हुए हैं? तीसरा अहम सवाल यह है कि क्या ईरान का सबसे अच्छा रास्ता डोनाल्ड ट्रंप के साथ एक नई बातचीत शुरू करना है? जबकि कुछ ही महीने पहले उन्हें मारने के लिए हत्यारों को भेजा गया था.

क्या परमाणु बम के लिए होड़ करेंगे ईरान के सर्वोच्च नेता खामेनेई?

न्यूयॉर्क टाइम्स में पब्लिश एक आर्टिकल में में पूछा गया कि क्या ईरान के सर्वोच्च नेता खामेनेई वैकल्पिक रूप से परमाणु बम के लिए दौड़ेंगे? क्योंकि यह वह हथियार जिसे कुछ ईरानी नेता युद्ध के एक नए युग में अपनी रक्षा की अंतिम पंक्ति के रूप में देखते हैं. हालांकि, ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाएं नई नहीं हैं, लेकिन मौजूदा स्थिति उसके कार्यक्रम को गति देने के लिए एक शक्तिशाली प्रोत्साहन नहीं दे सकती है. तेहरान के सहयोगियों पहले गाजा में हमास, फिर लेबनान में हिजबुल्लाह और अब सीरिया में असद की नाटकीय रूप से कमजोरी ने ईरानी शासन को कमजोर बना दिया है.

मध्य-पूर्व में ईरान की निर्णायक क्षमता घटी, IAEA ने क्या कहा?

अपने पारंपरिक प्रॉक्सी और रणनीतिक गहराई के बिना, मध्य-पूर्व क्षेत्र में ईरान की निर्णायक क्षमता काफी कम हो गई है. इस संदर्भ में, ईरान के नेतृत्व को परमाणु हथियार उसके अस्तित्व और प्रभाव की अंतिम गारंटी के रूप में दिखाई दे सकता है. अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने हाल ही में ईरान की यूरेनियम संवर्धन क्षमताओं में “नाटकीय तेजी” की चेतावनी दी है, क्योंकि तेहरान के पास संभावित रूप से कई बम बनाने के लिए पर्याप्त सामग्री पहले से ही मौजूद है. जबकि डिलीवर करने लायक वारहेड बनाने में एक साल से अधिक समय लग सकता है.

क्यों तेज हुई ईरान की तकनीकी और भू-राजनीतिक इच्छाशक्ति?

ऐसा करने के लिए ईरान की तकनीकी और भू-राजनीतिक इच्छाशक्ति अब और भी तेज हो सकती है. क्योंकि ईरान के लिए परमाणु हथियार की संभावना न केवल इज़राइल और सऊदी अरब जैसे क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ एक बड़ी ताकत के रूप में काम करेगी, बल्कि अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए एक प्रतिसंतुलन बनाने के उपकरण के रूप में भी काम करेगी. हालांकि, इस रास्ते पर चलने से आगे अंतरराष्ट्रीय अलगाव और विरोधियों द्वारा पहले से हो रहे हमलों की आसंका और जोखिम बढ़ जाएगा.

ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं से पहले से अस्थिर क्षेत्र में तनाव 

अगर ईरान अपनी परमाणु महत्वाकांक्षाओं को तेज करने का फैसला करता है, तो यह कदम पहले से ही अस्थिर क्षेत्र में तनाव को और बढ़ा सकता है. इज़राइल, जिसने ईरानी सुविधाओं के खिलाफ पहले भी हमले करने की इच्छा दिखाई है, अब दोबारा आक्रामक तरीके से जवाब दे सकता है. सऊदी अरब और खाड़ी के दूसरे देश, जो पहले से ही तेहरान के व्यवहार से चिंतित हैं, अपनी खुद की परमाणु क्षमताएं तलाश सकते हैं, जिससे मध्य पूर्व में ख़तरनाक हथियारों की होड़ शुरू हो सकती है.

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता बढ़ा रहा है ईरान का परमाणु हथियार

अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए ईरान का परमाणु हथियार विकास की ओर संभावित झुकाव एक महत्वपूर्ण परीक्षा का प्रतिनिधित्व करता है. पश्चिमी शक्तियों, विशेष रूप से अमेरिका को इस पर प्रतिक्रिया करने के लिए कूटनीति, आर्थिक प्रतिबंधों या यहां तक कि सैन्य कार्रवाई के माध्यम से कठिन निर्णय करना पड़ेगा. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे के बाद डोनाल्ड ट्रंप कुछ ही हफ़्तों में पदभार ग्रहण करने वाले हैं. उन्होंने पहले ही ईरान पर सख्त रुख़ अपनाया है, जिससे समझौते की बहुत कम गुंजाइश बची है.

ये भी पढ़ें - Syria War: सीरिया में गृहयुद्ध से असद का पतन, अलावी वंश ने दशकों तक कैसे किया सुन्नी देश पर शासन?

ईरान के परमाणु कार्यक्रम का मध्य पूर्व से कहीं ज़्यादा दूर तक असर

इस बीच, तेहरान को अपनी भू-राजनीतिक स्थिति को सुरक्षित रखने के कथित लाभों के खिलाफ परमाणु शस्त्रागार बड़ा करने के विशाल जोखिमों का मूल्यांकन करना होगा. क्योंकि अगर ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को तेज़ करता है, तो इसका असर मध्य पूर्व से कहीं ज़्यादा दूर तक महसूस किया जा सकता है. वैश्विक तेल बाज़ार पहले से ही बाधाओं के प्रति संवेदनशील हैं, अगर तनाव बढ़ता है तो ख़ास तौर पर खाड़ी में ऊर्जा के बुनियादी ढांचे की कमज़ोरी को देखते हुए उन्हें और भी गंभीर झटके लग सकते हैं.

ये भी पढ़ें - Syria Crisis: अबू मोहम्मद अल-गोलानी कौन है? जिसने सीरिया में भड़काया गृहयुद्ध, अमेरिका-इजरायल-ईरान भी परेशान

तेहरान के खिलाफ़ एकजुट अंतरराष्ट्रीय मोर्चे के भड़कने का भी जोखिम 

इसके अलावा, सीरिया और मध्य-पूर्व के व्यापक क्षेत्र की अस्थिरता ईरान को अपने विरोधियों के साथ गहरे संघर्ष में धकेल सकती है, जिससे युद्ध से पहले से ही तबाह हो चुके पश्चिम-एशियाई क्षेत्र में हिंसा के नए मोर्चे बन सकते हैं. इस दौरान ईरान के नेतृत्व के लिए ज़्यादा दांव उपलब्ध नहीं हो सकते. एक परमाणु हथियार ईरान को भले ही रणनीतिक लाभ प्रदान कर दे, लेकिन यह तेहरान के खिलाफ़ एकजुट अंतरराष्ट्रीय मोर्चे को भड़काने का भी जोखिम बढ़ा सकता है. और ईरान फिलहाल इसको झेलने की स्थिति में नहीं दिख रहा है.

तमाम खबरों पर नवीनतम अपडेट्स के लिए ज़ी न्यूज़ से जुड़े रहें! यहां पढ़ें Hindi News Today और पाएं Breaking News in Hindi हर पल की जानकारी. देश-दुनिया की हर ख़बर सबसे पहले आपके पास, क्योंकि हम रखते हैं आपको हर पल के लिए तैयार. जुड़े रहें हमारे साथ और रहें अपडेटेड!

Trending news