Discussion On Judiciary: पहले सुप्रीम कोर्ट से रिटायर्ड जस्टिस एसके कौल फिर खुद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति और कॉलेजियम सिस्टम को लेकर अपने विचार रखे. इसके साथ ही एक बार फिर यह मुद्दा सुर्खियों में शामिल हो गया. जानिए, कॉलेजियम सिस्टम क्या है और क्यों सवालों से घिरा रहता है?
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CJI DY Chndrachud On Collegium System: देश के प्रधान न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति करने वाली कॉलेजियम सिस्टम का बचाव करते हुए कहा कि इसमें अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए गए हैं. सीजेआई चंद्रचूड़ ने एक इंटरव्यू में कहा कि प्रक्रिया की आलोचना करना बहुत आसान है, लेकिन जजों की नियुक्ति से पहले परामर्श की उचित प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करने के लिए कॉलेजियम की ओर से हरसंभव कोशिश की जाती रही है.
कॉलेजियम सिस्टम में भूमिका तलाशता है पॉलिटिकल क्लास- रिटायर्ड जस्टिस कौल
इससे पहले 25 दिसंबर, 2023 को रिटायर हुए सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जस्टिस संजय किशन कौल ने भी जजों की नियुक्ति और कॉलेजियम सिस्टम पर अपने विचार रखे थे. लगभग 22 साल तक जस्टिस रहे एस के कौल ने देश में व्यापक असर वाले कई अहम मामले जैसे जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने, जजों की नियुक्ति और समलैंगिक विवाह में फैसला सुनाया था. हाल ही में दिए अपने इंटरव्यू में जस्टिस कौल ने कहा था कि जबसे कॉलेजियम सिस्टम आया है तो पॉलिटिकल क्लास को लगता था कि हमारा कुछ रोल होना चाहिए. NJC को सरकार ने पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया. एक तरफ से वो स्वीकार नहीं कर रहे थे दूसरी तरफ से कॉलेजियम अपनी सिफारिश दे रहा था.
कॉलेजियम प्रणाली में पारदर्शिता का अभाव कहना उचित नहीं- सीजेआई चंद्रचूड़
इसके बाद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने इंटरव्यू में कहा, "यह कहना कि कॉलेजियम प्रणाली में पारदर्शिता का अभाव है, उचित नहीं होगा. हमने यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए हैं कि अधिक पारदर्शिता बनी रहे. निर्णय लेने की प्रक्रिया में निष्पक्षता की भावना बनी रहनी चाहिए... जब हम सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए जजों के नामों पर विचार करते हैं, तो हम हाई कोर्ट के मौजूदा जजों के करियर पर भी विचार करते हैं.’’
नियुक्ति के लिए विचाराधीन जजों की निजता पर भी कॉलेजियम के भीतर चर्चा
सीजेआई ने कहा, "इसलिए कॉलेजियम के भीतर होने वाली चर्चा को कई विभिन्न कारणों से सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है. हमारी कई चर्चाएं उन जजों की निजता पर होती हैं, जो सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए विचाराधीन हैं. वे चर्चाएं अगर उन्हें स्वतंत्र और खुले माहौल में होनी हैं, तो वे वीडियो रिकॉर्डिंग या डॉक्यूमेंटेशन का विषय नहीं हो सकतीं. यह वह प्रणाली नहीं है, जिसे भारतीय संविधान ने अंगीकार किया है.’’
विविधतापूर्ण समाज में हम निर्णय लेने की अपनी प्रक्रिया पर भरोसा करना सीखें
सीजेआई ने कहा कि विविधतापूर्ण समाज को ध्यान में रखते हुए यह भी महत्वपूर्ण है कि हम निर्णय लेने की अपनी प्रक्रिया पर भरोसा करना सीखें. उन्होंने कहा, "प्रक्रिया की आलोचना करना बहुत आसान है, लेकिन अब, जबकि मैं कई साल से इस प्रक्रिया का हिस्सा हूं, तो मैं आपके साथ साझा कर सकता हूं कि किसी जज की नियुक्ति से पहले परामर्श की उचित प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए हमारे न्यायाधीशों द्वारा हरसंभव कोशिश की जा रही है.’’
कॉलेजियम सिस्टम को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए निर्णायक कदम उठाए गए
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत का प्रधान न्यायाधीश होने के नाते वह संविधान और सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसकी व्याख्या करने वाले कानून से बंधे हैं. उन्होंने कहा, "जजों की नियुक्ति के लिए हमारे यहां कॉलेजियम प्रणाली है, जो 1993 से हमारी न्याय व्यवस्था का हिस्सा है और इसी प्रणाली को हम लागू करते हैं. लेकिन यह कहने के बावजूद, कॉलेजियम प्रणाली के मौजूदा सदस्यों के रूप में यह हमारा कर्तव्य है कि हम इसे कायम रखें तथा इसे और पारदर्शी बनाएं. इसे और अधिक उद्देश्यपूर्ण बनाएं. और हमने उस संबंध में कदम उठाए हैं, निर्णायक कदम उठाए हैं.’’
क्या है कॉलेजियम सिस्टम, कौन होते हैं शामिल, कैसे होती जजों की नियुक्ति
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति और तबादले किए जाने वाली प्रक्रिया कॉलेजियम सिस्टम है. इसी से तय होता है कि आम नागरिक के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने वाली संस्था न्यायपालिका को कौन और कैसे आगे ले जाएगा. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों का एक समूह यानी कॉलेजियम तय करता है कि सुप्रीम कोर्ट में कौन जज होगा. आमतौर पर ये नियुक्तियां हाई कोर्ट से की जाती हैं. कई बार सीधे तौर पर भी किसी अनुभवी वकील को भी हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया जा सकता है.हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति भी कॉलेजियम की सलाह से होती है. इसमें सीजेआई, हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और राज्य के राज्यपाल शामिल होते हैं.
क्या है जजेस केस, अंकल कल्चर और कॉलेजियम सिस्टम से जुड़े बाकी सवाल
कॉलेजियम सिस्टम के अस्तित्व में आने के लिए 981, 1993 और 1998 में आए सुप्रीम कोर्ट के तीन फैसले जिम्मेदार हैं. इन्हें 'जजेस केस' के नाम से जाना जाता है. साल 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार ने संविधान में 99वां संशोधन करके नेशनल ज्यूडिशियल अप्वाइंटमेंट कमीशन (NJC) अधिनियम लेकर आई. इसके बाद सरकार और न्यायपालिका के बीच तनातनी की शुरुआत हो गई. इसके बाद ही सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जज चुनने की प्रक्रिया में भाई-भतीजावाद या 'अंकल कल्चर' पर सवाल खड़े होने लगे. पूर्व कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कई बार सार्वजनिक तौर पर सवाल खड़े किए. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन सवालों को ज्यादा महत्व नहीं दिया.