Jamtara Season 2 Review: रफ्तार, सस्पेंस और पॉलीटिक्स से सजा है यह सीजन, क्राइम थ्रिलर के शौकीन करेंगे एंजॉय
Advertisement

Jamtara Season 2 Review: रफ्तार, सस्पेंस और पॉलीटिक्स से सजा है यह सीजन, क्राइम थ्रिलर के शौकीन करेंगे एंजॉय

Netflix New Webseries: जामताड़ा का पहला सीजन देखने वालों को दूसरे का इंतजार था. निश्चित ही नए सीजन में उन्हें निराशा नहीं होगी. कहानी के ट्रेक में इस बार स्कैम पर पॉलीटिक्स थोड़ी भारी है, लेकिन एंटरेटेन करती है.

 

Jamtara Season 2 Review: रफ्तार, सस्पेंस और पॉलीटिक्स से सजा है यह सीजन, क्राइम थ्रिलर के शौकीन करेंगे एंजॉय

New Thriller Webseries: जामताड़ा का जो रास्ता ऊपर की ओर ले जाता है, वही रास्ता सीधे पहाड़ी से नीचे भी गिराता है. नेटफ्लिक्स की इस वेबसीरीज के पहले सीजन में ऊपर पहुंचकर नीचे गिरे सनी (स्पर्श श्रीवास्तव), उसके चचेरे भाई रॉकी (अंशुमान पुष्कर) और सनी की पत्नीनुमा गर्लफ्रेंड गुड़िया (मोनिका पवार) दूसरे सीजन में फिर से संभलने और उठने की कोशिश में हैं. लेकिन सनी का एक पैर टूट चुका है, रॉकी में क्रूर पॉलीटिशन बृजेश भान (अमित सयाल) के सामने सिर उठाने की हिम्मत नहीं है और गुड़िया जेल में है. सीजन 2 में यही संघर्ष है कि ये तीनों कैसे जामताड़ा में न केवल अपना अस्तित्व बचा पाएंगे बल्कि बृजेश भान से टक्कर भी लेंगे.

जामताड़ा में चुनाव है

सीरीज में एक संवाद हैः ‘जामताड़ा भूखे शेरों का जंगल है. यहां बकरियों की डिमांड कभी कम नहीं पड़ेगी.’ इस बार जामताड़ा के जंगल में खेल राजनीतिक ज्यादा है और आर्थिक कम. बृजेश भान की बुआ (सीमा पाहवा) मैदान में है और वह जामताड़ा विधानसभा के उपचुनाव में अपने भतीजे के खिलाफ गुड़िया को जेल से बाहर निकलवा कर मैदान में उतार देती है. गुड़िया को बृजेश से बदलना लेना है लेकिन वह अकेली है. उधर, सनी अस्पताल में रह कर ऐसे स्कैम रचने के चक्कर में है, जो पूरे देश को हिला दे. अस्पताल में बैठे-बैठे वह मुख्यमंत्री की पत्नी को ठग लेता है. इस बार उसने जामताड़ा के छोटे बच्चों के साथ टीम बनाई है. मगर कहानी का असली मुद्दा हैं, जामताड़ा का चुनाव. जो गुड़िया को लड़ना है. अब मुद्दा यह कि चुनाव लड़ने के लिए पैसा कहां से आएगा क्योंकि बुआजी ने साफ कह दिया है कि उनके शुरुआती इन्वेस्टमेंट के बाद गुड़िया को आगे का इंतजाम खुद करना है.

क्राइम और पॉलीटिक्स का मिक्स
जामताड़ा के दूसरे सीजन की कहानी के सारे सिरे पहले सीजन से जाकर जुड़े हैं. अगर आपने पहला सीजन देखा है तो दूसरा जरूर देखना चाहिए. निराश नहीं होंगे. इतना जरूर है कि इस बार स्कैम पहले की तरह रोचक नहीं हैं और जो हैं, उनमें ड्रामे से ज्यादा गणित है. आज मोबाइल से लेन-देन करने वाले लगभग सभी लोग जान चुके हैं कि अपने बैंक डीटेल और कोई भी ओटीटी किसी से शेयर नहीं करना हैं. लेकिन इसके बावजूद कई बार ऐसे लालच देने वाले ऑफर आ ही जाते हैं कि कुछ लोग फंस जाते हैं. जामताड़ा की उम्मीदों का बरगद बहुत बड़ा है और इस पेड़ पर जाने कितनों की गर्दन को कसने वाले फंदे लटके हैं. दूसरा सीजन क्राइम और पॉलीटिक्स का मिक्स है. हालांकि कई बार पॉलीटिक्स का थ्रिल आर्थिक पर भारी है. राइटरों ने बुआजी और बृजेश भान की राजनीतिक टक्कर का चित्र खूबसूरती से खींचा है. राजनीति को सरल शब्दों में समझाने वाले संवाद यहां हैं. जैसेः ‘राजनीति में आगे निकलने के लिए पहले अपनों को पीछे छोड़ना पड़ता है’ और ‘बिना बात के बदल जाना ही राजनीति है.’

यह अंत है या फिर शुरुआत
जामताड़ा का ताना-बाना रोचक और पूरी तरह से कस्बाई है. इस लिहाज से अलग है. इसमें रफ्तार और सस्पेंस है. औसतन चालीस से पैंतालीस मिनट के आठ एपिसोड बांधे रहते हैं. हर एपिसोड खत्म होने के साथ यह सवाल छूटता है कि आगे क्या होने वाला है. इस हिसाब से जामताड़ा मनोरंजक है. अपराध और राजनीति की इस कथा में पुलिस की जांच भी है, लेकिन वह बहुत पीछे रहती है. पुलिस यहां विभागीय राजनीति की शिकार है. स्कैम की जांच की फाइल कभी खुल जाती है, कभी अचानक बंद हो जाती है. मगर यह कहानी का जरूरी हिस्सा है. जामताड़ा को कसावट के साथ लिखा और निर्देशित किया गया है. यद्यपि कहीं-कहीं बातें फिल्मी और बहुत सरलता से हो जाती हैं. जामताड़ा के दूसरे सीजन में कहानी ठोस अंत तक पहुंचती है. इस पूरी कहानी में दो लड़के (रोहित केपी और हर्षित गुप्ता) महाभारत की कथा के संदर्भ उठाते हुए, दार्शनिक अंदाज में बातें करते-करते इसे एक अलग रंग देते हैं. सीजन 2 का अंत आते-आते उनकी बातचीत में एक संवाद हैः ‘ई बताओ कि अंत की शुरुआत ज्यादा अच्छी है या शुरुआत का अंत.’ सवाल यह कि सीजन 2 जामताड़ा का अंत है या फिर एक नई शुरुआॽ जवाब जानने के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा.

बुआजी ने मारी बाजी
अभिनय के लिहाज से दूसरे सीजन में बुआजी बनी सीमा पाहवा बाजी मार ले गई हैं. घाघ राजनेता का उनका अंदाज और अपने भतीजे से बदला लेने वाले उनके तेवर बढ़िया हैं. मोनिका पवार कमजोर मगर अपनी लड़ाई लड़ने के लिए खड़ी युवती के रूप में जंचती हैं. सनी बने स्पर्श श्रीवास्तव और रॉकी बने अंशुमान पुष्कर ने अपने किरदारों को पिछले सीजन से आगे बढ़ाया है, लेकिन दोनों इस बार पहले की तरह केंद्र में नहीं दिखते. साइबर सेल में आ चुके पुलिस अधिकारी बिस्वा के रूप में दिव्येंदु भट्टाचार्य सहज हैं. महारानी 2 के बाद अमित सियाल यहां भी राजनेतिक दांव-पेच चलते हैं, मगर इस किरदार में क्रूरता और दबंगई अधिक है. वह अपना रोल बखूबी निभाते हैं. सीरीज का बैकग्राउंड म्यूजिक माहौल के हिसाब से है और इसे खूबसूरती से शूट किया गया है. अगर आप क्राइम ड्रामा के शौकीन हैं, तो निश्चित ही सीजन 2 आपके लिए है. शर्त यही है कि पहला सीजन देखा हो. अन्यथा पहले एक का बटन दबाएं और फिर दो का.

निर्देशकः सौमेंद्र पाधी
सितारेः स्पर्श श्रीवास्तव, मोनिका पवार, अंशुमान पुष्कर, अमित सयाल, सीमा पाहवा, दिब्येंदु भट्टाचार्य
रेटिंग ***1/2

ये ख़बर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर

 

Trending news