Movie Review Baby John: वरुण धवन, कीर्ति सुरेश और जैकी श्रॉफ की मच अवेटेड फिल्म सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी हैं. ऐसे में अगर आप भी क्रिसमस की छुट्टी का मजा लेने के लिए इस फिल्म को देखने का प्लान बना रहे हैं तो उसे पहले इस रिव्यू पढ़ना न भूले.
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फिल्म निर्देशक: कलीस
स्टार कास्ट: वरुण धवन, कीर्ति सुरेश, जैकी श्रॉफ, वमिका गब्बा, राजपाल यादव, शीबा चड्ढा, जाकिर हुसैन और प्रकाश बेलावड़ी आदि
कहां देख सकते हैं: थिएटर्स में
स्टार रेटिंग : 3.5
Movie Review: अमिताभ बच्चन की एक फिल्म थी ‘हम’, जिसमें अमिताभ अपनी सौतेली मां को दिये वचन के चलते मारधाड़ की ज़िंदगी छोड़कर अपने सौतेले भाइयों को साथ लेकर कहीं दूर जाकर एकदम सीधे साधे व्यक्ति की ज़िंदगी जीना शुरू कर देता है, लेकिन अतीत उन्हें वापस फिर से टाइगर बनने को मजबूर कर देता है. हालिया रिलीज़ रजनीकांत की ‘जेलर’ और साउथ के ही विजय की मूवी ‘लियो’ भी उसी तरह की कहानी थी. अब वरुण की ‘बेबी जॉन’ की कहानी भी एकदम ऐसी है. लेकिन फ़िल्म का एक एक सीन, एक एक किरदार क़ायदे से रचा गया है, जो आपको एकदम से मूवी को ख़ारिज नहीं करने देता, बशर्ते आपने इस रिमेक फ़िल्म की ओरिजनल नहीं देखी हो.
कहानी है सत्या वर्मा (वरुण धवन) नाम के एक युवा आईपीएस ऑफिसर की, जो शहर के डीसीपी के रूप में अपराधियों का काल है. पूरे शहर में उसके चर्चे हैं, हर कोई उसका फ़ैन है. उसकी ज़िंदगी में मीरा (कीर्ति सुरेश) नाम की एक डॉक्टर आती है और दोनों शादी कर लेते हैं. लेकिन शहर के डॉन बब्बर शेर (जैकी श्रॉफ़) से हुआ एक हिंसक विवाद इतना बड़ा हो जाता है कि मीरा उसे क़सम देकर अपनी बेटी ख़ुशी के साथ पुलिस की नौकरी छोड़कर कहीं दूर चले जाने को कह देती है.
फिल्म की कहानी
मूवी की शुरुआत भी सत्या की नई पहचान ‘बेबी जॉन’ की ज़िंदगी से ही होती है. जिसे पूरा शहर मान चुका था कि वो और उसका परिवार घर में लगी आग में जलकर मर चुका है. ऐसे में कैसे उसके ज़िंदा होने का पता चलता है, कैसे उसको फिर से मजबूर किया जाता है कि वो वापस उस शहर में आए. कैसे वो अपनी क़सम तोड़कर एक एक से बदला लेता है, मूवीज़ देखकर ही पता चलेगा. आपको ये भी पता चलेगा कि मूवी में एक और हीरोईन वमिका ग़ब्बा की आख़िर ज़रूरत क्या थी?
तमिल मूवी ‘थेरी’ का रीमेक
ये मूवी 2016 में एटली के निर्देशन में बनी तमिल मूवी ‘थेरी’ का रीमेक है. इसलिए अपनी पहली हिन्दी मूवी निर्देशित कर रहे कलीस ने बिना कोई बड़ा रिस्क लिये लगभग हर सीन मूल फ़िल्म से कॉपी किया है. लेकिन जिन लोगों ने उसे नहीं देखा है, इन्हें ये मूवी पूरी तरह एकदम ताज़ा लगेगी. कोई भी सीन सामान्य नहीं है. हर सीन को क़रीने से डिज़ाइन किया गया है. जैसे भीमा द्वारा बच्चे को चॉकलेट देने और फिर उसकी मौत पर चॉकलेट खाने का सीन.
जैकी श्रॉफ़ का शानदार किरदार
ऐसे में आप कहानी के फेर में ना पड़ें तो ये फ़िल्म आपको टाइम पास लग सकती है. सबसे शानदार है जैकी श्रॉफ़ का विलेन का किरदार, उनकी संवाद अदायगी, उनका लुक और स्टाइल आपको पसंद आने वाला है. उन्हीं के चलते फ़िल्म में जान आई है. वरुण के फ़ैन्स ने भी उनकी किसी भी मूवी में इस तरह का एक्शन नहीं देखा होगा, उनके रोल में रजनीकांत जैसी स्टाइल डालने की भी कोशिश की गई है. किसी हीरो द्वारा किसी को ज़िंदा जलाने जैसा हिंसक रोल तो आपने सोचा भी नहीं होगा.
कीर्ति सुरेश की पहली हिंदी फिल्म
वरुण और जैकी श्रॉफ़ ने एक्टिंग भी सामान्य से बेहतर की है, कीर्ति सुरेश की पहली हिन्दी मूवी है, उनका चुलबुला अन्दाज हालांकि गजनी की असिन के सामने कमजोर लगा है. फिर भी उनकी सहजता रोल को मज़बूत बनाती है. वेबसीरीज़ ‘ज़ुबली’ से पहचान बनाने वालीं वमिका ग़ब्बा भी इस मूवी में हैं लेकिन उनको ठीक से इस्तेमाल नहीं किया गया है. राजपाल यादव के रोल में भी कई तरह के शेड्स देखने को मिले हैं. फ़िल्म के सेट्स, एडिटिंग कमाल है, एक्शन और एडिटिंग में सलमान की ‘वांटेड’ जैसा असर दिखता है. सलमान का कैमियो शायद पार्ट2 की तैयारी के लिहाज़ से सोचा गया होगा.
फिल्म के गाने
फ़िल्म का म्यूजिक भले ही सर चढ़कर ना बोले लेकिन फ़िल्म के मूड मिजाज़ और स्पीड से मेल खाता है. मौक़े पर मारे गये कुछ डॉयलॉग्स भी मूवी को बेहतर बनाते हैं. जैसे वरुण का तकिया कलाम “मेरे जैसे देखे होंगे, मैं तो पहली बार आया हूं” युवाओं की जुबान पर चढ़ सकता है. या राजपाल यादव का डायलॉग, “कॉमेडी इज ए सीरियस बिज़नेस” बिलकुल मौक़े पर मारा है. राजपाल यादव के एक डायलॉग में तो दीपिका की बिकिनी में विवाद को लेकर भी मीडिया पर निशाना साधा गया है.
फिल्म में तकनीकी गलतियां
लेकिन ये भी सच है कि मीडिया की भूमिका एकदम से ग़ायब कर दी गई है, केवल माइक लेकर खड़े रिपोर्टर्स को ही बार बार रिपीट कर दिया गया है. कुछ तकनीकी ग़लतियां भी साफ़ नजर आती हैं, जैसे जब डॉक पर हीरो विलेन के लोगों को मारना शुरू करता है तो मशीन गंस ताने ऊपर खड़े उसके लोग हीरो पर गोली नहीं चलाते, हीरो बड़े आराम से सबको शूट कर देता है. बाथ टब में डूब रही बच्ची यकायक़ कपड़े बदलकर कैसे सो जाती है, हज़म नहीं होता. लड़कियों वाला शिप कंटेनर तो पलट गया था, वो सीधे कंटेनर से कैसे निकलीं, समझ नहीं आया.
ख़ैर क्रिसमस का मौक़ा है, इस मूवी से टाइम पास की उम्मीदों के साथ जाएँगे तो मज़ा आएगा, ज़्यादा उम्मीदें लगायेंगे तो निराश ही होंगे. कहानी को नज़रअंदाज़ कर दें तो फ़िल्म लाउड है, एक्शन से भरपूर है, फ़िल्म की स्पीड अच्छी है, कहीं भी अपनी पकड़ नहीं छोड़ती.
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