Bollywood Actors: वेज या नॉन वेज खाना अपनी-अपनी पसंद और प्राथमिकता होती है. लेकिन बेहतरीन एक्टर पेंटल की जिंदगी में ऐसे हालात पैदा हो गए थे, जब उन्हें सिर्फ दाल-रोटी खाकर गुजारा करना पड़ता था. तब उन्होंने कसम खाई कि...
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Paintal Birthday: हर सितारे और हर अभिनेता का अपना संघर्ष होता है. फिल्मों में जमने से पहले वह अपने ढंग से काम और पहचान पाने का स्ट्रगल करता है. लेकिन आखिर में वह छाप छोड़ने में कामयाब होता है. बॉलीवुड इतिहास (Bollywood History) के बेहतरीन कैरेक्टर आर्टिस्टों में पेंटल (Actor Paintal) का नाम हमेशा याद किया जाएगा. वह एक बहुत ही साधारण परिवार से फिल्मों में आए थे. अपने पिता की इच्छा पर वह एक्टर बने, जबकि उन्होंने एनडीए की परीक्षा (NDA Exam) पास कर ली थी. उनका चयन नेवी यानी नौसेना में भी हो चुका था. परंतु एक्टर बनने का उनका सफर आसान नहीं था. जिन दिनों वह पूना (Poona) में एक्टिंग की पढ़ाई कर रहे थे, अचानक उनके पिता के हाथ काम चला गया और उन्होंने बेटे को वापस लौटे को कहा क्योंकि वह आगे का खर्च नहीं उठा सकते थे. मगर किस्मत को कुछ और मंजूर था.
परीक्षा में पास
पेंटल का पूरा नाम था, कंवरजीत सिंह पेंटल. उनके पिता एक कैमरामैन थे, मगर उन्हें फिल्मों में मौका नहीं मिल पाया था. तब उन्होंने बतौर फोटोग्राफर अपनी दुकान शुरू की थी. वह बेटे को मॉडल बना कर घर में ही उसे शूट करते थे. स्कूल के दिनों में पेंटल दिल्ली में स्कूली नाटकों में हिस्सा लेने लगे थे. पेंटल नेवल एविएशन में करियर बनाना चाहते थे और उन्होंने एनडीए परीक्षा भी पास कर ली थी. लेकिन उसी दौरान एक फिल्म इंस्टिट्यूट का विज्ञापन अखबार में छपा, तो उनके पिता ने उन्हें एक्टिंग में आगे बढ़ने की सलाह दी. पेंटल 1967 में पूना इंस्टीट्यूट आए. यहीं किस्मत ने पलटी मारी.
हॉस्टल का हाल
जिस दौर में पेंटल पूना में थे, घर के हालात बिगड़ गए पिता को दुकान बंद करनी पड़ी. उन्होंने एक निजी कंपनी में नौकरी कर ली. पिता ने उन्हें अपनी परिस्थिति बताते हुए लौट आने को कहा. लेकिन किस्मत से इंस्टीट्यूट में पेंटल को छात्रवृत्ति मिल गई. जिसमें सरकार की ओर से हर महीने 75 रुपये मिलने तय हुए. पेंटर मिमिक्री करते थे, इसीलिए त्यौहारों के दौरान उन्हें 50 रुपये प्रति शो के हिसाब से कार्यक्रम भी मिलने लगे. लेकिन उनका संघर्ष खत्म नहीं हुआ. पेंटल ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन दिनों हॉस्टल में खान नहीं मिलता था. छात्रों को खाने के लिए बाहर जाना पड़ता था. पेंटल के अनुसार जब बाकी लड़के मटन या चिकन ऑर्डर करते थे, तो मैं हर रोज दाल-रोटी के अलावा कुछ नहीं खाता था. हालांकि दोस्त उनसे अपना भोजन शेयर करते थे, परंतु वह मना कर देते. पेंटल ने बताया कि मैंने कसम खाई थी कि मैं नॉनवेज खाने को तब हाथ नहीं लगाऊंगा, जब तक मैं खुद कमाने लगूंगा. पेंटल अपनी इस कसम पर कायम रहा. पेंटल को गुरु दत्त के भाई द्वारा बनाई फिल्म उमंग (1970) में पहला मौका मिला. परंतु उनके करियर ने रफ्तार पकड़ी 1971 में लाल पत्थर, मेरे अपने और प्यार की कहानी जैसी फिल्मों से.