Panga Movie Review: कंगना रनौत की 'पंगा' देखने की सोच रहे हैं तो पहले ये Review जरूर पढ़ लें
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Panga Movie Review: कंगना रनौत की 'पंगा' देखने की सोच रहे हैं तो पहले ये Review जरूर पढ़ लें

कंगना रनौत (Kangana Ranaut) की 'पंगा'  (Panga) रिलीज हो गई है. दमदार कहानी, बेहतरीन अभिनय से सजी यह फिल्म कबड्डी प्लेयर के संघर्ष और उसके खट्टे-मीठे अनुभवों पर आधारित है. जानें इस फिल्म की खामियों और खासियतों के बारे में.

फोटो साभार : इंस्टाग्राम

नई दिल्ली : इस बार ये 'पंगा' (Panga) कंगना रनौत (Kangana Ranaut) ने लिया है और उन्होंने इसमें पूरी तरह से जीत भी हासिल की है. फिल्म 'पंगा' में एक मां और उसके संघर्ष व सपनों की कहानी बखूबी दिखाई गई है. कैसे एक मां अपनी जिम्मेदारियों के बीच अपने सपने पूरे करती हैं और इस दौरान वह किन-किन समस्याओं का सामना करती है. यही इस फिल्म में डायरेक्टर अश्विनी अय्यर तिवारी (Ashwiny Iyer Tiwari) ने दिखाने की कोशिश की है.  

कहानी
फिल्म की कहानी भोपाल से शुरू होती है. भोपाल में मिडिल क्लास फैमिली में रहने वाली जया निगम (कंगना रनौत) और उनके परिवार से होती है. जया अपने पति प्रशांत (जस्सी गिल) और बेटे आदि (यज्ञ भासिन) के साथ रहती हैं. जया और प्रशांत दोनों ही भारतीय रेलवे में नौकरी करते हैं. नौकरी के साथ जया एक मां, पत्नी और हाउसवाइफ भी हैं. जया को हमेशा इसी बात का मलाल रहता है कि आखिर कोई उसे कबड्डी प्लेयर के रूप में क्यों नहीं पहचानता. कभी कबड्डी टीम की कैप्टन रहीं जया, परिवार की जिम्मेदारियों के चलते अपने सपनों के दरवाजों को बंद कर चुकी होती हैं. रेलवे स्टेशन पर टिकट मास्टर की नौकरी करने वाली जया जब कुछ कबड्डी प्लेयर्स को देखती हैं तो उनके पास चली जाती हैं और बताने की कोशिश करती हैं कि वह भी एक जमाने में कबड्डी खेला करती थीं. कबड्डी प्लेयर होने के बाद भी कोई भी लड़की जया को पहचान नहीं पाती, ये बात जया के दिल को लगती है. बाद में जया यही सब पति को आकर बताती है, लेकिन फिल्म में ट्विस्ट तब आता है जब जया का बेटा आदि खुद अपनी मां (कंगना रनौत) को कबड्डी में वापस आने के लिए कहता है और फिर यहीं से शुरू होती है एक मां के कमबैक करने की कहानी. करीब 7 सालों बाद जया कबड्डी में वापसी करती है. इस दौरान जया का पति और बेटा उसे खूब सपोर्ट करते हैं, लेकिन कुछ परेशानियां भी आती हैं. कबड्डी में वापसी के दौरान ही जया की मुलाकात होती है अपनी बहुत अच्छी और पुरानी दोस्त मीनू (ऋचा चड्ढा ) से. मीनू ऋचा चड्ढा को कबड्डी के लिए फिर से तैयार करती हैं और उसे कैसे दोबारा से कबड्डी चैम्पियन बनाती है, ये सब फिल्म में दिखाया गया है.

स्टारकास्ट- कंगना रनौत, जस्सी गिल, ऋचा चड्ढा और नीना गुप्ता
डायरेक्टर- अश्विनी अय्यर तिवारी
निर्माता- फॉक्स स्टार स्टूडियोज़
स्टार- 4

एक्टिंग
फिल्म में जितने भी स्टार्स हैं सभी ने बेहतरीन काम किया है. कंगना के काम की जितनी तारीफ की जाए वह कम है. कंगना की एक्टिंग देख वाकई में बार-बार सीटी बजाने का दिल करता है. कंगना की एक्टिंग उनका बोला हुआ हर डायलॉग बेहद ही नेचुरल लगता है. सिंपल लुक में दिखने वाली कंगना फिल्म में जया के हर पल को महसूस करती हैं और उस किरदार को पूरी तरह से जीती हैं. फिल्म में जस्सी गिल का सादगी भरा अंदाज़ दिल छू जाता है. कंगना और जस्सी की सॉफ्ट रोमांटिक कैमिस्ट्री दिल को खूब भाती है और कहीं ना कहीं तुम्हारी सुलु की यानी विद्या बालन की याद दिलाती है. फिल्म में नीना गुप्ता भी हैं, जो फिर सबका दिल जीतने में कामयाब रही हैं. ऋचा चड्ढा की जितनी तारीफ करें वह कम है. ऋचा चड्ढा जब-जब स्क्रीन पर आती हैं आपको अपने आप हंसी आ जाती है. फिल्म में एक किरदार ऐसा है, जिसके लिए सबसे ज्यादा सीटियां बजती हैं और वह किरदार कोई और नहीं बल्कि कंगना के बेटे बने चाइल्ड एक्टर यज्ञ भसीन का है. नन्हे यज्ञ चैरी ऑन द केक हैं और आदि के रोल में बिल्कुल फिट बैठते हैं. जब भी यज्ञ स्क्रीन पर आए वह दिल जीत ले गए.

डायरेक्शन
'निल बटे सन्नाटा' और 'बरेली की बर्फी' जैसी फिल्में बनाने वाली अश्विनी ने इस बार भी दिखा दिया है कि वह दर्शकों के दिलों को जीतना अच्छे से जानती हैं. अश्विनी का डायरेक्शन वाकई में कमाल है. सपने, रिश्ते और प्यार से सजी इस कहानी को अश्विनी ने बेहद ही शानदार तरीके से पर्दे पर उतारा है. मां के सपने और उसके हर ख़ास पल को अश्विनी ने दमदार बनाया है. अश्विनी ने एक मां, उसके सपने और संघर्ष की कहानी को दर्शकों सामने पेश किया और इस परीक्षा में अश्विनी पूरी तरह से टॉप करती हैं. अश्विनी अय्यर तिवारी ने निखिल महरोत्रा के साथ मिलकर शानदार डायलॉग्स लिखे हैं. फिल्म के स्क्रीनप्ले की जिम्मेदारी नितेश तिवारी ने ली और वह इसमें सबका दिल भी जीतते हैं.

संगीत
शंकर-एहसान-लॉय ने इस फिल्म का संगीत दिया है. फिल्म की कहानी के हिसाब से इसके गाने काफी अच्छे हैं. फिल्म के गानों को जावेद अख़्तर ने लिखा है. सभी गाने कहानी के हर भाव को पर्दे पर दिखाते हैं.

कमजोर कड़ी
फिल्म में थोड़ी-सी खामियां भी लगती हैं. कुछ सीन्स में फिल्म कमजोर नजर आती है हालांकि दमदार किरदारों के चलते वह कमी भी पूरी हुई है. फिल्म की लंबाई को थोड़ा छोटा किया जा सकता था.

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