Exclusive Interview: अब लोग मुझे नाम से भी जानते हैं और पास आकर सेल्फी खिंचाते हैं: दिब्येंदु भट्टाचार्य
Advertisement

Exclusive Interview: अब लोग मुझे नाम से भी जानते हैं और पास आकर सेल्फी खिंचाते हैं: दिब्येंदु भट्टाचार्य

Dibyendu Bhattacharya Interview: दिब्येंदु भट्टाचार्य को हिंदी सिनेमा की दुनिया में बीस साल से ज्यादा हुए हैं. मॉनसून वेडिंग से खुदा हाफिज 2 तक. ओटीटी पर वह सेक्रेड गेम्स (Sacred Games) से रॉकेट बॉय्ज (Rocket Boys) तक दिखे हैं. कितनी बदली है दो दशक में एंटरटेनमेंट की दुनिया. जानिए दिब्येंदु भट्टाचार्य से इस एक्सक्लूसिव बातचीत में.

 

Exclusive Interview: अब लोग मुझे नाम से भी जानते हैं और पास आकर सेल्फी खिंचाते हैं: दिब्येंदु भट्टाचार्य

Monsoon Wedding To Khuda Haafiz 2: आपको मुंबई आए 20 साल से ज्यादा हो गए. तब से अब तक बहुत कुछ बदल चुका है. पिछले दो-ढाई साल में तो ओटीटी की धूम है. एक्टर फिल्मों और टीवी पर निर्भर नहीं हैं. कैसे देखते हैं इस नए माहौल को.
-जब मैं एनएसडी से बिल्कुल नया पहली-पहली बार आया था, तब उत्साह बहुत था. वह काम आया. कहीं भी कूद गए, कहीं भी चढ़ गए. पहली फिल्म मिली थी, मॉनसून वेडिंग. मैं टेंटमकर था उसमें. बांसों पर ऊपर चढ़ गया था. खुद को साबित करना था. फिर देव डी, ब्लैक फ्राइडे, हजारों ख्वाहिशें ऐसी जैसी फिल्में करते-करते मैंने यही ध्यान रखा कि रोल छोटा हो, मगर उसमें कुछ बात हो. कहानी में उसकी जगह हो. टीवी पर मेरे जैसे चेहरे-मोहरे वाले के लिए ज्यादा कुछ नहीं था. सेटरडे सस्पेंस या क्राइम पैट्रोल जैसे एपिसोडिक सीरियलों में ही काम मिल सकता था. मगर मैंने कभी क्राइम पैट्रोल नहीं किया. मैं फिल्मों में कर रहा था. हालांकि साल में एक-दो ही फिल्में मिलती थीं. मैं ऐसी सिचुशनए में फंस गया था कि उन फिल्मों के कारण जानते सब थे, पर काम कोई नहीं देता था. तो मैं स्ट्रगलर रहा नहीं, लेकिन काम भी नहीं था. सात-आठ साल ऐसा समय गुजरा. तब एक्टिंग की क्लास लेता था, कभी मैनेजमेंट में जाकर मोटिवेशनल लेक्चर देता रहा. घर चलाने के लिए यह करना पड़ता है. लेकिन ओटीटी आने से चीजें बदल गई. एंटरटेनमेंट लोगों के निजी स्पेस में, निजी डोमेन में आ गया. सब्सक्रिप्शन लेकर कभी भी, कहीं भी, किसी भी स्थिति में देखा जा सकता है. साथ ही यह कंटेंट का जमाना है. प्लेटफॉर्म ढेर हैं. इसलिए जो डिजर्विंग हैं, उन्हें काम मिल रहा है. लेकिन डर यही है कि यह प्लेटफॉर्म में कही सिनेमा की तरह करप्ट न हो जाए.

-यह डर थोड़ा सही भी है क्योंकि जो हाउस फिल्में बनाते थे, टीवी सीरियल बनाते थे, लगभग वही ओटीटी प्लेटफॉर्मों के लिए कंटेंट बनाने उतर आए हैं.
-बात सही है. लेकिन यह ओपन स्पेस है. किसी का पर्सनल तो है नहीं. जो भी कर सकता है, वह आएगा. मगर ओटीटी कंटेंट ड्रिवन इंडस्ट्री है और कंटेंट ही किंग है. ऐसे में अच्छे एक्टरों और अच्छे तकनीशियनों की जरूरत तो रहेगी. बाकी जो खेल चलते हैं, वह चलेंगे. मगर वे हावी नहीं होना चाहिए.

-ओटीटी से कंटेंट की फ्रेशनेस की उम्मीद थी. लेकिन यहां भी भेड़चाल दिखती है. एक सीरीज चल गई तो बाकी भी वैसी ही बनाने लगे. सब्जेक्ट को लेकर बहुत एक्सप्लोर नहीं किया जा रहा.
-ओटीटी में शुरू में फ्रेशनेस थी, लेकिन हमारे यहां एक प्रॉब्लम है. एक दिल चाहता है हिट होती है तो हम पचास दिल चाहता है बनाने की कोशिश करते हैं. हम ओरीजनैलिटी देखने के बजाय इसे बिजनेस की तरह डील करते हैं. ओटीटी पर सीजन वन चल जाए तो तुरंत चिंता होती है कि सीजन टू कब और कैसे लाएं. अब चक्कर ये है कि पहले सीजन के लिए खूब रिसर्च होता है, साल-डेढ़ साल लगता है लिखने में. लेकिन रिलीज होकर थोड़ा चलते ही दूसरा सीजन कमीशन होता है और कहा जाता है कि दो महीने में स्क्रिप्ट लिखो. तब क्रिएटिव माइंड बिजनेस में तब्दील हो जाता है.

-थोड़े दिनों पहले हमने आपको महारानी 2 में देखा. इसके बाद और क्या आने वाला हैॽ
-महारानी 2 के बाद जल्दी ही जामतारा 2 रिलीज होने वाला है. आर या पार डिज्नी हॉटस्टार पर आएगा. और भी दो-तीन चीजें हैं. एक-दो फिल्मों में थोड़ा टाइम मैनेज करने की बात चल रही है.

-ओटीटी से पहले आप जाने-पहचाने चेहरे तो थे, लेकिन लोग नाम नहीं जानते थे. क्या ओटीटी के बाद स्थिति बदली हैॽ लोग नाम लेते हुए आपके पास आते हैंॽ
-हां, काफी हद तक. पहले लोग मुझे कभी दूर से, तो कभी चारों तरफ घूम कर देखते थे और फिर पूछते थे कि आप एक्टर हैं ना. आपका नाम क्या हैॽ तब स्क्रीन पर मैं कम दिखता था उन्हें. लेकिन अब मेरा काम भी काफी आया है तो वह मेरे कैरेक्टर के साथ मेरा नाम भी देखते, जानते हैं. ये ऑटोग्राफ का जमाना नहीं है, तो लोग आते हैं और सेल्फी खिंचाते हैं. अच्छा लगता है.

-आप कोलकाता से हैं, बंगाली है. बांग्ला सिनेमा या ओटीटी पर क्या काम कर रहे हैंॽ
-बांग्ला वाले मुझे काम नहीं देते. उन्हें लगता है कि मैं आउटसाइडर हूं. हिंदी भाषी हूं. मुझे नहीं पता कि वे मेरे साथ ऐसा क्यों करते हैं. लेकिन मैं सचमुच काम करना चाहता हूं. एक समय तो बहुत इच्छुक था क्योंकि मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं बांग्ला में काम करूं. पिछले साल मेरी मां गुजर गईं. अब पिताजी पूछते हैं कि क्या तुम्हें कोई बांग्ला में काम नहीं मिल रहा, तो मैं कहता हूं कि नहीं. हालांकि यह मेरा सोचा-समझा फैसला था कि मैं हिंदी में मुंबई आकर काम करना चाहता हूं. एनएसडी से पढ़ाई के बाद मैं एक साल कोलकाता में रहा था और मैंने कोशिश भी की थी, परंतु वहां जो स्क्रिप्ट मुझे ऑफर हुई उन्होंने मुझे बहुत रोमांचित नहीं किया.

ये ख़बर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर

 

Trending news