कौन से राज्य बढ़ा रहे थ्री लैंग्वेज फॉर्मूला की ओर कदम, ये लागू होने से स्कूलों में पढ़ाई के तरीके में होंगे कई बदलाव?
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कौन से राज्य बढ़ा रहे थ्री लैंग्वेज फॉर्मूला की ओर कदम, ये लागू होने से स्कूलों में पढ़ाई के तरीके में होंगे कई बदलाव?

NEP 2020: अगर ये फॉर्मूला लागू होने पर राज्य अपनी क्षेत्रीय भाषा के प्रचलन के हिसाब से फैसला लेंगे. ऐसे में इंग्लिश और रीजनल लैंग्वेज को बढ़ावा मिल सकता है. हालांकि, ये इस पर निर्भर करेगा कि कौन सा राज्य क्या फैसला लेता है.

 

कौन से राज्य बढ़ा रहे थ्री लैंग्वेज फॉर्मूला की ओर कदम, ये लागू होने से स्कूलों में पढ़ाई के तरीके में होंगे कई बदलाव?

Three Language Formula: इन दिनों अक्सर आपको थ्री लैंग्वेज फॉर्मूला वाली बात सुनने में आ रही होगी. अगर आपको यह टर्म नया लगता है तो बता दें कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है.  बहुत साल पहले बनी नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (National Education Policy) में इस तरीके से स्कूलों में पढ़ाई करवाने की बात कही गई थी, जिसमें वक्त के साथ कुछ बदलाव आए. फिर साल 2020 में आई नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP 2020) और उसके इम्प्लीमेंटशन की बात छिड़ी तो यह टर्म एक बार फिर चर्चा में है.

क्या है थ्री लैंग्वेज फॉर्मूला?
साल 1968 में आई नेशनल एजुकेशन पॉलिसी में कहा गया कि स्कूलों में पढ़ाने के लिए हिंदी और इंग्लिश के अलावा एक और लैंग्वेज होनी चाहिए. यह तीसरी भाषा मॉर्डन इंडिया की हो, जिसका इस्तेमाल हिंदी स्पीकिंग स्टेट्स स्कूलों में शिक्षा देने के लिए किया जाना चाहिए.

देश के ऐसे स्टेट्स जहां पर हिंदी प्राइमरी भाषा नहीं है वहां क्षेत्रीय और अंग्रेजी के अलावा हिंदी भाषा का भी इस्तेमाल होना चाहिए. जानकारी के मुताबिक यह फॉर्मूला कोठारी कमीशन द्वारा अल्टर किया गया, जिससे क्षेत्रीय भाषाओं को भी जगह मिल सके. 

एनईपी 2020 ने क्या कहा
नेशनल एजुकेशन पॉलिसी ने कहा कि थ्री लैंग्वेज फॉर्मूला के इम्प्लीमेंटेशन में फ्लेक्सिबिलिटी होनी चाहिए. ज्यादातर राज्य अपनी रीजनल लैंग्वेज को बढ़ावा देना चाहते हैं लेकिन ये ध्यान रखने के लिए कहा गया कि दो मुख्य भाषाएं भारतीय भाषाएं ही रहे तो ठीक है. एनईपी में इंग्लिश पर कम जोर देने की बात कही है.

स्टेट अपने हिसाब से करेगा फैसला
अगर थ्री लेंग्वेज फॉर्मूला लागू होता है तो हो सभी राज्य अपनी रीजनल लैंग्वेज या प्रचलन भाषा के मुताबिक फैसला ले सकेंगे. ऐसे में इस बीत की ज्यादा से ज्यादा संभावना जताई जा रही है कि कई जगहों पर हिंदी किनारे हो सकती है, क्योंकि वहां के लोग हिंदी आसानी से नहीं समझ पाते हैं. ऐसे में इंग्लिश और रीजनल लैंग्वेज को बढ़ावा मिल सकता है. हालांकि ये इस पर निर्भर करेगा कि कौन सा राज्य इस बारे में क्या फैसला लेता है.

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