Bheed Review: ये है लॉकडाउन की ब्लैक एंड व्हाइट रिपोर्टिंग; राजकुमार राव, पंकज कपूर और भूमि की है बढ़िया ट्यूनिंग
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Bheed Review: ये है लॉकडाउन की ब्लैक एंड व्हाइट रिपोर्टिंग; राजकुमार राव, पंकज कपूर और भूमि की है बढ़िया ट्यूनिंग

Raj Kumar Rao Film: अनुभव सिन्हा ने अपनी फिल्म भीड़ को रिलीज करने की वही तारीख चुनी, जब 2020 में कोरोना की रोकथाम के लिए पहला लॉकडाउन लगाने की घोषणा की थी. भीड़ व्यवस्था और सत्ता के साथ सामाजिक ऊंच-नीच और धर्म को मुद्दा बनाकर चलती है. लॉकडाउन का एक नया चेहरा सामने लाती है.

 

Bheed Review: ये है लॉकडाउन की ब्लैक एंड व्हाइट रिपोर्टिंग; राजकुमार राव, पंकज कपूर और भूमि की है बढ़िया ट्यूनिंग

Anubhav Sinha Film: हाल के वर्षों में मुल्क, थप्पड़, आर्टिकल 15 और अनेक जैसी फिल्में बनाने वाले लेखक-निर्देशक अनुभव सिन्हा अब कोविड-19 के दौरान देशव्यापी लॉकडाउन के बहाने सत्ता, समाज, वर्ग और जाति के संघर्ष को सामने लेकर आए हैं. 2020 में वह आज 24 मार्च का ही दिन था, जब देश में कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए पहले लॉकडाउन की घोषणा हुई थी. अनुभव सिन्हा ने फिल्म की रिलीज के लिए वही तारीख चुनी. सबसे खास बात यह कि उन्होंने अपनी बात कहने के लिए फिल्म का ब्लैक एंड व्हाइट माध्यम चुना. यह प्रतीकात्मक है. फिल्म का मुद्दा लॉकडाउन में उन लोगों की बेबसी है, जो रोजगार और रोजी-रोटी की तलाश में अपने गांव-कस्बों को छोड़कर नगरों और महानगरों में आते हैं. लेकिन लॉकडाउन की घोषणा के साथ जब उनकी दिहाड़ी ही खत्म हो गई तो लाखों की संख्या में वे पैदल ही वापस अपने घर-द्वार को लौट पड़े.

एक के बाद एक सवाल
114 मिनट की यह फिल्म शुरुआती दृश्य में ही चौंकाती है, जब घर को निकले 16 लोग पटरियों पर सोए रह जाते हैं और रेल उनके ऊपर से गुजर जाती है. फिल्म की कहानी लॉकडाउन की घोषणा के साथ शुरू होती है, जहां पुलिस प्रमुख यादव (आशुतोष राणा) अपने जूनियर सूर्य कुमार सिंह (राजकुमार राव) को उस थाने का इंचार्ज बनाता है, जो राज्य की सीमा के चैकपोस्ट पर है. सरकार ने लोगों के एक से दूसरे राज्य में जाने पर रोक लगा दी है. इसलिए किसी को चैकपोस्ट से गुजरने की इजाजत नहीं. यही चैकपोस्ट फिल्म का मंच है. यहीं सारा ड्रामा होता है. सूर्य कुमार किसी को भी पोस्ट पार करने नहीं देता. न पैदल इंसान, न बस और न कार. फिर वहां जमा होती भीड़ से समस्याएं शुरू होती हैं. इसी का नेतृत्व करता है बलराम त्रिवेदी (पंकज कपूर). वह खुद प्रवासी मजदूर है, लेकिन उसने अपने गांव में नहीं बताया कि वह महानगर में चौकीदार है. भीड़ की समस्याएं समय के साथ बढ़ती हैं क्योंकि भूख-प्यास का भोजन-पानी के अलावा क्या विकल्प हो सकता हैॽ भूखी-प्यासी भीड़ कुछ भी कर गुजर सकती है. चैकपोस्ट के पास एक मॉल है, जिसे लूट कर खाने-पीने का इंतजाम हो सकता है. त्रिवेदी मॉल लूटना चाहता है और तब पुलिस इंस्पेक्टर राम सिंह (आदित्य श्रीवास्तव) उसे गोली मार देना चाहता है, मगर सूर्य कुमार रोकता है. वह चाहता है कि सारी समस्या बातों से हल हो सकती है. लेकिन यहां भूख के साथ हिंदू-मुसलमान, अमीर-गरीब और ऊंची जाति-नीची जाति के सवाल भी उठाए गए हैं.

मानसिकता भीड़ की
बड़ी कहानी के स्तर पर भीड़ में बहुत कुछ नहीं है. यहां किरदार हैं, जिनकी छोटी-छोटी कहानियां मिलकर एक बड़ी कहानी बनती है. फिल्म उन्हीं तमाम बातों-घटनाओं को नए सिरे से सामने लाती है, जिन्हें लोगों ने कोरोना के दौर में देखा-सुना. सिन्हा इसमें खास तौर पर जाति के विमर्श को जोड़ते हुए भीड़ की मानसिकता पर भी सवाल उठाते हैं. लेकिन बहुत जल्द ही बातों को दोहराव शुरू हो जाता है और स्क्रिप्ट ढीली पड़ती जाती है. चूंकि बहुत सारी बातें आप जानते हैं, तो यहां कुछ ऐसा नहीं होता जो आपके दिल को छू ले. हां, कुछ संवाद जरूर रोचक हैं. कहानी में अपनी बेटी को हॉस्टल से लाने जाती अमीर मां (दीया मिर्जा), जूनियर डॉक्टर रेनू शर्मा (भूमि पेडनेकर) और टीवी रिपोर्टर विधि प्रभाकर (कृतिका कामरा) और अपने पिता को साइकिल पर बैठा कर सैकड़ों किलोमीटर ले जाने वाली युवती (अदिति सुबेदी) भी अहम भूमिकाएं निभाती हैं.

फिर से लॉक डाउन
भीड़ का असली तनाव राजकुमार राव और पंकज कपूर के किरदारों के बीच निकलकर आता है. यही तनाव कुछ हद तक दर्शक को बांधे रखता है. दोनों ही ऐक्टरों ने बढ़िया काम किया है. राव ने अपने किरदार ने न्याय किया है, जहां वह अपनी जाति छुपाते हुए आत्म संघर्ष करते नजर आते हैं. वह ऊंची जाति की डॉक्टर लड़की, रेनू से प्यार करते हैं. उनके किरदार में मानवीयता उभरकर आती है. वहीं पंकज कपूर के जातीय दंभ वाले किरदार की विडंबना भी सामने आती है, जब वह अपने ही लोगों से यह बात छुपाए रखता है कि महानगर उसकी स्थिति कितनी दयनीय है. भूमि की भूमिका छोटी है, मगर वह प्रभावित करती हैं. ब्लैक एंड व्हाइट में फिल्म खास असर नहीं छोड़ती. रंगीन में शायद असर बेहतर होता. अगर क्लोज-अप हिस्सों को छोड़ दें, तो अक्सर ब्लैक एंड व्हाइट में प्रभाव गायब हो जाता है. फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक जरूर बढ़िया है और कहानी के तनावों तथा संघर्ष को उभारता है. फिल्म में दो गाने भी हैं, परंतु वे याद नहीं रहते. अनुभव सिन्हा का निर्देशन अच्छा है, लेकिन कहीं-कहीं जरूर लगता है कि उन्होंने जल्दबाजी की है. साथ ही कुछ जगहों पर वह फिल्मकार के बजाय रिपोर्टर की तरह बात करने लगते हैं. इससे फिल्म पीछे छूट जाती है. अगर आप लॉकडाउन से पैदा हालात को एक फिल्म के रूप में देखना चाहते हैं, तो जरूर भीड़ को देख सकते हैं.

निर्देशकः अनुभव सिन्हा
सितारे : राजकुमार राव, भूमि पेडनेकर, पंकज कपूर, दीया मिर्जा, आशुतोष राणा, कृतिका कामरा, 
रेटिंग**1/2

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