पहली फिल्म से बर्बाद हुई एक्ट्रेस की जिंदगी, हीरो ने दलित रोजी के बालों पर लगा फूल चूमा तो गुस्साए लोग, जला दिया घर
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पहली फिल्म से बर्बाद हुई एक्ट्रेस की जिंदगी, हीरो ने दलित रोजी के बालों पर लगा फूल चूमा तो गुस्साए लोग, जला दिया घर

PK Rosy Controversy: पिता बचपन में गुजर गए तो रोजी ने घास बेचकर छोटी बहन और मां की जिम्मेदारी उठाई. दर-दर भटक रहे परिवार को रिश्तेदार घर ले आए. जाति छोटी थी, लेकिन सपने बड़े थे, सपना नायिका बनना. 

पहली फिल्म से बर्बाद हुई एक्ट्रेस की जिंदगी, हीरो ने दलित रोजी के बालों पर लगा फूल चूमा तो गुस्साए लोग, जला दिया घर

PK Rosy Life Facts: आज बात एक ऐसी नायिका, जिसके लिए हीरोइन बनना अपनी जिंदगी को जीते-जी नर्क जैसा साबित हुआ. पहली फिल्म के पहले ही शो के बाद भीड़ उसकी जान लेने पर आमादा हो गई, थिएटर और घर जला दिया गया. जिंदा रहने की जद्दोजहद में इस नायिका को शहर और परिवार छोड़कर गुमनाम होना पड़ा. कसूर सिर्फ ये था कि वो दलित थी. कोई नीची जाति की लड़की फिल्म की हीरोइन कैसे बन सकती है, भेदभाव और छुआछूत के आलम में लोगों ने उसकी जिंदगी तबाह कर दी. ये कहानी है भारत की पहली दलित नायिका पीके रोजी की जिनकी आज 120वीं बर्थ एनिवर्सरी है.

बचपन में घास काटती थीं रोजी

कहानी शुरू करते हैं 1903 से जब पीके रोजी उर्फ राजम्मा का जन्म नंदकोड, तिरुवनंतपुरम के एक गरीब दलित परिवार में हुआ. वही दलित और अछूता वर्ग जिसे तालाब, कुओं, मंदिरों में जाने की इजाजत नहीं थी. पिता बचपन में गुजर गए तो रोजी ने घास बेचकर छोटी बहन और मां की जिम्मेदारी उठाई. दर-दर भटक रहे परिवार को रिश्तेदार घर ले आए. जाति छोटी थी, लेकिन सपने बड़े थे, सपना नायिका बनना. अंकल की मदद से रोजी ने आर्ट स्कूल में डांस और अभिनय सीखा. समाज ने ताने देकर रोकने की तमाम कोशिशें कीं और दादाजी ने घर से निकाल दिया.  एक दिन मलयाली सिनेमा की पहली फीचर फिल्म विगथाकुमारम बना रहे जेसी डेनियल ने उसे अपनी हीरोइन बना लिया. 

दलित रोजी के साथ सेट पर छुआछूत होती रही. उसे खाना छूने और दूसरों के साथ बैठकर खाने तक की इजाजत नहीं थी.  आखिरकार फिल्म बनी जिसका प्रीमियर 23 अक्टूबर 1928 को कैपिटल थिएटर में हुआ. ऊंची जाति के लोगों ने दलित रोजी की फिल्म देखने से इनकार कर दिया. डर से डेनियल ने रोजी को ही प्रीमियर में आने से रोक दिया, क्योंकि दलित लड़की के साथ फिल्म देखना ऊंची जाति के लिए पाप था.  रोजी जिद में प्रीमियर पर पहुंचीं तो एडवोकेट मल्लूर गोविंदा ने साफ कह दिया, ये दलित लड़की होगी तो हम अंदर नहीं जाएंगे. रोजी ने सब्र का घूंट पिया और थिएटर के बाहर अगले शो का इंतजार करने लगी. 

लोगों ने जला दिया थिएटर, जला दिया रोजी का घर

रोजी फिल्म में अपर कास्ट नायर महिला के रोल में थी, जिससे भीड़ पहले ही गुस्से में थी. जैसे ही स्क्रीन पर हीरो रोजी के बालों में लगा फूल चूमता दिखा तो भीड़ ने स्क्रीन पर खूब पत्थर बरसाए. इससे भी गुस्सा शांत नहीं हुआ तो लोग रोजी को मारने दौड़ पड़े. रोजी जान बचाते हुए एक थिएटर में जाकर छिप गई. जिसे भीड़ ने आग लगा दी. घर भी आग में फूंक दिया गया. जान बचाकर रोजी देर रात तक ब्रिज के पास छिपी रही. एक लॉरी ड्राइवर केसावा पिल्लई से मदद मांगी तो वो शहर से दूर ले जाने को राजी हो गया. वो रोजी को नागरकोइल ले गया और उससे शादी कर ली. रोजी, राजम्मा बनकर गांव में गुमनाम जिंदगी जीने लगीं.  1987 में रोजी दुनिया से रुख्सत हो गईं. 

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